भारतीय भाषाओं को बचाने के लिए आगे आएगा संघ
भारत में विलुप्त हो रहीं भाषाओं को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काम करेगा।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। भारत में विलुप्त हो रहीं भाषाओं को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काम करेगा। इसी माह नागपुर में संपन्न हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दौरान इसका प्रस्ताव लिया गया। यह कहना था उत्तर बंगाल संघ चालक ऋषिकेश साहा का।
वे मंगलवार को उत्तर बंगाल संघ कार्यालय माधव भवन में पत्रकारों से बात कर रहे थे। उनके साथ उत्तर बंगाल के सह प्रांत कार्यवाह तरुण कुमार पंडित मौजूद थे। साहा ने बताया कि प्रतिनिधि सभा में स्पष्ट कहा गया कि भाषा किसी भी व्यक्ति एवं समाज की पहचान का एक महत्वपूर्ण घटक है। भाषा ही लोगों की पहचान होती है। भाषा कोई भी हो, उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। परिवार और समाज में अपनी भाषा का प्रयोग करें। विविध भाषाओं व बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक बड़ी चुनौती बन गई है। इसलिए जरूरी है कि भाषाओं का संरक्षण और संवर्द्धन किया जाए। सभी शासकीय तथा न्यायिक कार्यो में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जाए, इसका भी विशेष ध्यान देना होगा।
राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा समेत संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में ही होने लगी हैं। यह स्वागत योग्य है। संघ चाहता है कि अंग्रेजी भाषा की प्राथमिकता न रखते हुए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। नाटकों, संगीत, लोक कलाओं आदि को भी ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रीय स्तर पर प्रचारित करते हुए उसे बचाने की कोशिश हो। जब पूछा गया कि इसके लिए क्या संघ की ओर से कोई ठोस योजना बनाई गई है तो साहा ने कहा कि संघ लगातार अपने स्वयंसेवकों, उनसे जुड़े संगठनों के माध्यम से भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए काम करेगा।
इसका कोई यह अर्थ न निकाले कि हम विदेशी भाषाओं का तिरस्कार करते हैं। हम चाहते है कि विदेशी भाषाओं को उतना ही महत्व दिया जाए, जितना उसके बिना किसी कार्य में बाधा आ रही हो। राजनीति में दिलचस्पी के सवाल के जबाव में तरुण कुमार पंडित और ऋषिकेश साहा ने कहा कि संघ आज भी किसी दल विशेष में दिलचस्पी नहीं लेता। हां, वह लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने और युवाओं में चरित्र निर्माण करता आ रहा है। इन दिनों देश में ऐसी ही विचारधारा के लोग ज्यादा सत्ता पर बैठे हैं, इसलिए संघ उसके केंद्र में नजर आता है। अगर हिदुत्व का झंडा वामपंथी फहराए और राष्ट्र को आगे ले जाना चाहे तो संघ उसके साथ भी कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है। उदाहरण के तौर पर केरल में भाजपा की सरकार नहीं है, परंतु सबसे ज्यादा संघ का काम केरल में है।
ममता बनर्जी द्वारा संघ को पसंद नहीं किए जाने के मुद्दे पर कहा कि जहां संघ को चुनौतियां मिलती हैं, वहीं ज्यादा और तेजी से संगठित होकर संघ आगे बढ़ता है। त्रिपुरा इसका ज्वलंत उदाहरण है। उत्तर बंगाल में तेजी से बढ़ा है संघ संघ के दोनों पदाधिकारियों ने बताया कि हालिया छह वर्षो में उत्तर बंगाल में 50 नई शाखाएं खुली हैं। दो हजार से ज्यादा नए युवा आरएसएस से जुड़े है।
वर्तमान में उत्तर बंगाल में 827 शाखाएं चल रहीं हैं। बाल स्वयंसेवकों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हुई है। रेडी फॉर सोशल, जिसमें समरसता को जोड़ा गया है। इसके माध्यम से 1083 प्रकल्प चल रहे हैं। समाज को सेवा के माध्यम से जोड़ा जा रहा है। गांव-गांव तक इसकी शाखाएं पहुंचें, यही संघ का मूलमंत्र है।