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दूसरों का दर्द उधार लेने में गुजार दी जिंदगानी

doctor. इन्होंने अपनी जिंदगी के 40 साल झुग्गी-बस्तियों और फुटपाथ पर बसर करने वालों के इलाज में गुजार दिए।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 12:13 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 12:13 PM (IST)
दूसरों का दर्द उधार लेने में गुजार दी जिंदगानी
दूसरों का दर्द उधार लेने में गुजार दी जिंदगानी

कोलकाता, विनय कुमार। जिन फिरंगियों ने छल-कपट से भारत को गुलाम बनाकर सदियों यहां राज किया, आजादी के 25 साल बाद उन्हीं के देश से एक नौजवान यहां आया और उसने फिर से यहां राज जमा लिया- लेकिन इस बार लोगों के दिलों पर। छल-कपट से नहीं बल्कि नि:स्वार्थ सेवा की भावना से।

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ये शख्स हैं ब्रिटिश चिकित्सक डॉ. जैक प्रेगर, जिन्होंने अपनी जिंदगी के 40 साल कोलकाता की झुग्गी-बस्तियों और फुटपाथ पर बसर करने वालों के इलाज में गुजार दिए। अब 88 साल के हो चुके डॉक्टर जैक ने मानव सेवा के ध्येय के साथ 'कलकत्ता रेस्क्यू' नामक संस्था की नींव रखी थी, जो अब तक करीब पांच लाख लोगों को चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर चुकी है। जैक को 'ग्रैंडफादर ऑफ स्ट्रीट मेडिसीन' भी कहा जाता है।

भारत आकर उन्होंने मुख्य रूप से कुष्ठ रोग और एड्स जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज करना शुरू किया था। कलकत्ता रेस्क्यू के विभिन्न केंद्रों पर नि:शुल्क सेवाएं प्रदान की जाती हैं। इसके साथ ही यह संस्था शिक्षा, हस्तकला, नारी सशक्तीकरण और पेयजल को लेकर भी काम कर रही है।

25 जुलाई, 1930 को इंग्लैंड के मैनचेस्टर में एक यहूदी परिवार में जन्मे जैक ने अपने अभियान की शुरुआत बांग्लादेश से की थी। जैक बताते हैं कि बचपन में उन्होंने युद्ध का खौफनाक मंजर अपनी आंखों से देखा था। युद्ध में सेना के हाथों मौसी की जान गंवाने का दर्द आज भी उनके जेहन में ताजा है। 1971 के युद्ध के दौरान बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में जाकर उन्होंने इलाज करना शुरू किया। शिविर में अधिकतर लोग पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) के थे, जो उर्दू व बांग्ला बोलते थे। भाषागत समस्या से निपटने के लिए उन्होंने ये दोनों भाषाएं सीखीं। 1972 में उन्होंने गरीबों के लिए 90 बेड वाला क्लीनिक खोला। इसके बाद वह भारत आए।

मदर टेरेसा ने कहा था..

कोलकाता में छह महीने तक मिशनरीज ऑफ चैरिटी के लिए काम किया। मदर टेरेसा ने जैक की सराहना करते हुए कहा था- मैंने जैक के कायरें को बांग्लादेश में देखा और महसूस किया कि उनमें गरीबों की सेवा करने की ललक है।

मिल चुके हैं कई पुरस्कार व सम्मान 

जैक को उनके नेक कायरें के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों व सम्मान से नवाजा जा चुका है, जिनमें इंडिया एनजीओ अवार्ड (2009), फिलेनोथ्रोपिस्ट ऑफ द ईयर (2017) और गाइड स्टार प्लेटिनम अवार्ड (2018) प्रमुख हैं। टीबी मरीजों के लिए विशेष कार्य करने के लिए विश्र्व स्वास्थ्य संगठन भी जैक को सम्मानित कर चुका है।

कोलकाता मेरे दिल के करीब..

डॉ. जैक ने कहते हैं, कोलकाता में 40 वसंत कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। यह शहर मेरे दिल के करीब है। यहां के लोगों से जो प्यार मिला, उसे ताउम्र याद रखूंगा। इसी वर्ष 10 जनवरी को ही मैंने अपने क्लीनिक के निकट ही अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा केंद्र शुरू किया है। जीवन का ध्येय जरूरतमंदों की सेवा करना रहा है।

जिंदगी में ये मायने नहीं रखता कि आपने जिंदगी को कितना जीया, बल्कि ये मायने रखता है कि आपने कितनों को जिंदगी दी।

-डॉ. जैक प्रेगर. संस्थापक, कलकत्ता रेस्क्यू।

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डॉक्टर जैक ने अपना संपूर्ण जीवन बेघरबार लोगों की सेवा और भलाई में लगा दिया। दुनिया को ऐसे ही महान लोगों की जरूरत है, जो मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं।

-जयदीप चक्रवर्ती, सीईओ, कलकत्ता रेस्क्यू।


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