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आपातकाल की बात सुनते ही आज भी गुस्से से लाल हो जाते हैं 80 साल के जगदीश अग्रवाल ,11 महीने तक जेल में रहे बंद

आपातकाल -11 महीने तक सिलीगुड़ी और दार्जिलिंग की जेल में रहे बंद -मीसा और डीआरआई कानून के तहत की गई कार्रवाई -फांसी वाली कोठरी में बंद कर दी गई यातनाएं

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 09:59 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 10:14 AM (IST)
आपातकाल की बात सुनते ही आज भी गुस्से से लाल हो जाते हैं 80 साल के जगदीश अग्रवाल ,11 महीने तक जेल में रहे बंद
आपातकाल की बात सुनते ही आज भी गुस्से से लाल हो जाते हैं 80 साल के जगदीश अग्रवाल ,11 महीने तक जेल में रहे बंद

सिलीगुड़ी, अशोक झा। भारत की पहचान विश्व के सबसे बड़े संसदीय लोकतंत्र के रूप में है। इस गौरवमयी लोकतंत्र के इतिहास में ऐसे भी क्षण हैं जो कलंक के रूप में अंकित हैं। 25 जून 1975 का दिन ऐसा ही एक दिन है, जब भारत के लोकतंत्र, संसदीय व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। आज काग्रेस के पतन का कारण ही यही है। यह कहना है आपातकाल के दौरान सिलीगुड़ी ओर दार्जिलिंग के जेल में 11 माह तक बंदी रहे वरिष्ठ संघ कार्यकर्ता करीब 80 वर्षीय जगदीश अग्रवाल का। वे महावीर स्थान में अपने घर पर इन दिनों बीमार चल रहे हैं। सुनने की शक्ति कम हो गयी है। मशीन का सहारा लेते है।

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दैनिक जागरण से बात करते हुए आपातकाल की बात सुनते ही उन्हें गुस्सा आने लगा। उनका कहना है कि जिस दिन आपातकाल की घोषणा हुई संघ के प्रचारक देवव्रत उर्फ देबू दा के साथ मुझे ओर पंडित लंबोदर झा को पुलिस पकड़कर ले गई और जेल भेज दिया। प्रेस पर सेंसरशीप लगा दी गई। देश में मीसा (मैंटीनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) तथा डी.आई.आर. (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स) जैसे कानूनों का दुरुपयोग करते हुए लोगों को यातनाएं दी गईं। हमलोगों को पहले डीआरआई और फिर मीसा में  दार्जिलिंग  जेल में यातनाएं दी गई। फांसी वाली कोठरी में बंद कर रखा जाता था। वहां यातनाएं दी जाती थी।

आरोप था कि संघ की शाखाओं में सरकार के खिलाफ षड्यंत्र किया जा रहा है। सुदृढ़ संस्थाओं की हत्या की कोशिश तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाधी ने की। अपनी सत्ता को बचाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 352 का प्रयोग करते हुए देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। यह बात मरते दम तक नही भुलाया जा सकता है। पेशी के लिए कोर्ट आते थे तो मिलती थी सूचनाएं अग्रवाल का कहना था कि सरकार ने भले ही सभी सूचनाओं पर रोक लगा दी थी, परन्तु पेशी के दौरान देश की सभी गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती थी।

देश का जन मानस इंदिरा गाधी के नेतृत्व में काग्रेस पार्टी के निरकुंश और भ्रष्ट शासन से मुक्ति के लिए जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आदोलनरत था। इसी बीच 12 जून 1975 को दो बड़ी घटनाएं हुईं, जिसने इंदिरा गाधी और काग्रेस पार्टी की जड़ों को हिलाकर रख दिया। प्रथम गुजरात विधानसभा चुनाव में काग्रेस की करारी पराजय हुई और जनता ने जनता मोर्चा को भारी बहुमत से विजयी बनाया। द्वितीय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली से राज नारायण जी की याचिका पर निर्णय देते हुए इंदिरा गाधी को चुनाव कदाचार एवं भ्रष्ट आचरण का दोषी मानते हुए उनके चुनाव को निरस्त कर दिया और 6 वर्ष के लिए उनके चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लगा दी। इन घटनाओं से विचलित होते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी।

इस आपातकाल की घोषणा के लिए आधार दिया गया कि विपक्ष के बहुत बडे़ षड्यंत्र से देश को बचाने के लिए ऐसा किया गया है। हमलोगों को पता चल गया था कि जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे विपक्ष के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। लोगों के मूल अधिकारों को निरस्त कर दिया गया। अपने हित में बढ़ाया कार्यकाल हमारे संविधान निर्माताओं ने देश में लोकतात्रिक संसदीय प्रणाली के तहत प्रत्येक पाच वर्ष में लोकसभा का चुनाव करके जनता का जनादेश प्राप्त करने की जो बात कही थी, श्रीमती इंदिरा गाधी द्वारा उसे ही तोड़ने का कार्य किया गया और लोकसभा की अवधि को 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया।

जगदीश अग्रवाल का कहना है कि व्यक्तिगत हित के लिए श्रीमती गांधी ने ऐसा किया। उस समय तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग चुप रहा। इसी संशोधन की आड़ लेते हुए उस समय की जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपना कार्यकाल भी 5 वर्ष की जगह 6 वर्ष कर दिया। आज देश मे जो भी बड़ी समस्या है उसके पीछे कांग्रेस पार्टी और नेहरू गाधी है।

भाजपा नेता जेपी नड्डा ने किया सम्मानित भाजपा शासन में क्या उनके आपातकाल के योगदान को कभी याद किया गया के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि भाजपा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जब स्वास्थ्य मंत्री थे,तब उनको सम्मानित किया था। इस मंच पर सासद एसएस अहलूवालिया व भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह भी मौजूद थे। अग्रवाल का कहना है कि संघ का स्वयंसेवक एक सैनिक की भाति होता है आज भी अगर मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्हें कुछ करना पड़ा तो वह इससे पीछे नहीं हटेंगे।


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