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Cyclone Amphan Effect : ...और यूं दूर शहर से आया 'बेगाना' बन गया सुंदरवन का अपना!

एम्फन से मची तबाही के बाद से पीड़ितों की मदद में जुटे हुए हैं राजेश साव सुंदरवन में तैयार किया है इको विलेज करीब 150 परिवारों की चलती है इससे जीविका

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 03:37 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 03:37 PM (IST)
Cyclone Amphan Effect : ...और यूं दूर शहर से आया 'बेगाना' बन गया सुंदरवन का अपना!
Cyclone Amphan Effect : ...और यूं दूर शहर से आया 'बेगाना' बन गया सुंदरवन का अपना!

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। घूमने आया था एक शहर, बन गया वही मेरा घर...! 46 साल के राजेश साव पर ये पंक्तियां बिलकुल सटीक बैठती हैं। राजेश 2005 में अपने भाई के साथ कोलकाता से सुंदरवन घूमने आए थे। यहां के लोगों से उन्हें इस कदर मोहब्बत हुई कि यहीं के हो गए। राजेश ने कड़ी मेहनत से यहां एक इको विलेज तैयार किया, जिससे आज सुंदरवन के करीब 150 परिवारों की जीविका चल रही है।

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राजेश हर सुख-दुख में इलाके के लोगों के साथ खड़े रहते हैं। सुपर साइक्लोन 'एम्फन' से मची तबाही के बाद से वे पीड़ितों की मदद में जुटे हुए हैं। एम्फन ने सुंदरवन के कई द्वीपों को भारी क्षति पहुंचाई हैं। राजेश ने दो द्वीपों के टूटे तटबंधों की तुरंत मरम्मत कराई और पीड़ित परिवारों में प्लास्टिक शीट्स बांटीं ताकि वे अपने घर की टूटी छत को ढंक सके।

राजेश ने कहा-'सुपर साइक्लोन के अगले ही दिन मैं अपनी बोट लेकर विभिन्न द्वीपों का जायजा लेने निकल पड़ा था। मैंने देखा कि गोसाबा द्वीप के उत्तरडांगा और मोल्लाखाली द्वीप में कई तटबंध तूफान से टूट गए थे। उनकी अविलंब मरम्मत जरुरी थी वरना खेतों में पानी घुसने से फसलों को भारी नुकसान पहुंच सकता था। मैंने अपने स्तर पर आर्थिक योगदान किया और अपने परिचितों,  इको विलेज में आकर ठहरने वाले मेहमानों से फंड जुटाकर उनकी मरम्मत कराई। दोनों द्वीपों के लोगों में 285 प्लास्टिक शीट्स भी बांटे।  मैंने अपने द्वीप सातजेलिया के सुकुमारी गांव के प्रभावित लोगों में भी प्लास्टिक शीट्स बांटे। हम इसे चालू रखेंगे क्योंकि मानसून आ रहा है और प्लास्टिक शीट्स ऐसे मौसम में बहुत काम आता है।'

राजेश ने सुपर साइक्लोन से पहले लॉकडाउन के समय जरूरतमंद लोगों में अनाज भी बांटा था।

राजेश ने कहा-'मैं मानता हूं कि दूसरों का भला करने से ही मेरा भी भला होगा। लेने से कहीं ज्यादा सुख देने में है, बशर्ते इसमें किसी तरह का स्वार्थ न हो। इस सुखद अहसास को रुपये में नहीं तोला जा सकता।'

मूल रूप से बिहार के बेगुसराय जिले के बरौनी इलाके के रानी गांव के रहने वाले राजेश की परवरिश और शिक्षा कोलकाता में हुई ।

सुंदरवन से जुड़ाव के बारे में उन्होंने कहा-'मैं 2005 में अपने भाई के साथ घूमने के इरादे से सुंदरवन आया था। मुझे यहां आकर इतना अच्छा लगा कि ठान लिया कि यहीं कुछ करूंगा, जिससे यहां के लोगों का भी भला हो ।मैंने यहां होमस्टे का कांसेप्ट शुरू किया। सैलानियों के सुंदरवन के गांवों के घरों में ठहरने की व्यवस्था की, ताकि वे यहां की सहज-सरल ग्रामीण जीवनशैली से अवगत हो सके। इसके बाद 2010 में बोट में सैलानियों के ठहरने की व्यवस्था की और 2012 में सुकुमारी गांव में इको विलेज टूरिज्म शुरू किया। गांव के 30 परिवारों को इससे सीधे तौर पर रोजगार मिल रहा है जबकि सुंदरवन के करीब 150 परिवारों की इससे जीविका चल रही है।'

राजेश ने एक दशक पहले साइक्लोन 'आइला' के समय भी सुंदरवन के लोगों की काफी मदद की थी। चूंकि सुंदरवन साइक्लोन की आशंका वाले क्षेत्रों में शामिल है इसलिए राजेश यहां पौधारोपण पर काफी जोर दे रहे हैं। दो साल पहले उनके प्रयास से लगाए गए दो हजार पौधे आज छोटे से वन में तब्दील हो चुके हैं।

राजेश ने कहा-'अब तो सरकार भी कह रही है कि मैंग्रोव फॉरेस्ट ही साइक्लोन से बचा सकते हैं ।' राजेश के पिता भोला प्रसाद साव और माता सुशीला देवी दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं, हालांकि दूसरी की सेवा करने की उनसे मिली सीख अभी ही राजेश में जीवित है । राजेश के परिवार में पत्नी सबिता साव और बेटा यश है। 


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