Move to Jagran APP

Bengal Politics: अर्जुन सिंह के तृणमूल में जाने के पीछे राजनीतिक के अलावा भी अन्य कई कारण

अर्जुन सिंह के तृणमूल में जाने के पीछे राजनीतिक के अलावा भी अन्य कई कारण हैं। 165 से अधिक मामले अर्जुन पर चल रहे उनके लोगों पर भी कई मामले दर्ज हैं। दिलीप घोष ने भी स्वीकारा कि कई दबावों के कारण ही उन्होंने तृणमूल में जाकर सरेंडर किया है।

By Priti JhaEdited By: Published: Tue, 24 May 2022 12:55 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2022 12:58 PM (IST)
Bengal Politics: अर्जुन सिंह के तृणमूल में जाने के पीछे राजनीतिक के अलावा भी अन्य कई कारण
अर्जुन सिंह के तृणमूल में जाने के पीछे राजनीतिक के अलावा भी अन्य कई कारण

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बंगाल में रविवार को भाजपा को बड़ा झटका मिला और पार्टी के सांसद अर्जुन ​सिंह ने तृणमूल का दामन थाम लिया। इसे लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है। वहीं भाजपा का कहना है कि अर्जुन सिंह को हर सुख सुविधा देने के बावजूद धोखा मिला। यहां उल्लेखनीय है कि अर्जुन सिंह पिछले कुछ समय से भाजपा से नाराज चल रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने अर्जुन सिंह के संबंध में कहा, ‘अर्जुन सिंह काे हमने कोलकाता नगर निगम, आसनसाेल, भवानीपुर चुनावों की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन उन्होंने हरवा दिया। अपने जिन लोगों को भी वह पार्टी में लेकर आये थे, उन सबको हमने जिला में विभिन्न पदों पर जिम्मेदारियां दी थीं। उनके सभी लोगों को हमने टिकट दिया था, उसके लिए हमारे कार्यकर्ता नारा​ज हो गये थे, लेकिन जिन्हें हमने टिकट दिया वे सभी तृणमूल में चले गये थे। हमारे पास चुनाव लड़ने के लिए सिम्बल तक नहीं था। एक पूरे हिस्से का अब अंत हो गया है, पार्टी बैरकपुर में नये सिरे से शुरुआत करेगी। हमारे कार्यकर्ताओं पर अब बम पड़ेंगे, लेकिन उसके लिए हम तैयार हैं ।

loksabha election banner

165 मामले हैं अर्जुन पर

अर्जुन सिंह के तृणमूल में जाने के पीछे राजनीतिक के अलावा भी अन्य कई कारण हैं। सूत्रों का कहना है कि लगभग 165 से अधिक मामले अर्जुन पर चल रहे हैं। ना केवल अर्जुन बल्कि उनके लोगों पर भी कई मामले दर्ज हैं। इस संबंध में दिलीप घोष ने भी स्वीकारा कि कई दबावों के कारण ही उन्होंने तृणमूल में जाकर सरेंडर किया है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अत्याचारों के कारण ऐसा हुआ है। यहां उल्लेखनीय है कि अर्जुन सिंह की पीठ एक तरह से दीवार से सट चुकी थी। उनके आय के स्त्रोत भी लगभग बंद हो चुके थे।

वहीं, तमाम पुलिसिया मामलों से वह जर्जरित हो गये थे, उनके पास कार्यकर्ताओं का भी अभाव हो गया था। सबसे बुरी हार उनकी भाटपाड़ा के नगरपालिका चुनाव में हुई थी। ऐसे में राजनीतिक रूप से पुनर्जीवित होने के लिए यही एक रास्ता उनके पास बचा था। पहले आस थी कि भाजपा सत्ता में आयेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और आखिरकार वह तृणमूल में शामिल हो गये। जूट के मुद्दे पर बढ़ी पार्टी से दूरियां जूट के मुद्दे पर अर्जुन सिंह की पार्टी से दूरियां बढ़ गयी थीं। जूट की मूल्य सीमा तय किये जाने का उन्होंने विरोध जताया था, इसके अलावा टैरिफ कमीशन का भुगतान नहीं किये जाने को लेकर भी वह नाराज चल रहे थे।

उन्हें केंद्रीय कपड़ा मंत्री ने दिल्ली में बुलाकर बैठक भी की थी, मूल्य सीमा भी केंद्र द्वारा हटा ली गयी, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। केंद्र के फैसले का स्वागत जताने के एक दिन बाद पुनः अर्जुन सिंह ने प्रदेश भाजपा के संगठन पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि यहां नेताओं को पेन दी जाती है मगर स्याही नहीं दी जाती यानी काम करने का मौका नहीं मिलता है। इस पर दिलीप घोष ने कहा कि जूट श्रमिकों का ख्याल अर्जुन को पहले क्यों नहीं आया। जिस तृणमूल ने जूट श्रमिकों की दयनीय हालत की, उसी तृणमूल में जाकर वह जूट उद्योग को बचाना चाहते हैं।

केंद्रीय नेतृत्व द्वारा मनाने की सभी कोशिशें विफल केंद्रीय नेतृत्व ने अर्जुन सिंह को मनाने की कई कोशिशें की, लेकिन सब विफल रहा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी अर्जुन सिंह के साथ बैठक की थी। कपड़ा मंत्री से उनकी बैठक हुई, जूट की मूल्य सीमा केंद्र ने हटा ली, लेकिन यह सब अर्जुन को नहीं रोक पाया। कोलकाता में भी विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने उनके साथ बैठक कर उन्हें मनाने की कोशिश की थी, लेकिन आखिरकार अर्जुन सिंह ने तृणमूल में जाना ही सही समझा। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.