Bengal Violence: बंगाल हिंसा पर कलकत्ता हाई कोर्ट सख्त, सभी पीड़ितों के केस दर्ज करने का आदेश
हिंसा के मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि वह पीड़ितों के सभी मामले प्राथमिकी के रूप में दर्ज करे। साथ ही राज्य सरकार को पीड़ितों के लिए चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने शुक्रवार को सख्त रुख अख्तियार करते हुए पुलिस को आदेश दिया कि वह हिंसा पीडि़तों के सभी मामले प्राथमिकी के रूप में दर्ज करे। अदालत ने राज्य सरकार को सभी पीड़ितों (घायलों) के लिए चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने और राशन कार्ड न होने पर भी प्रभावितों के लिए राशन सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा का आरोप लगाने वाली कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसी पीठ ने उक्त निर्देश दिए। हिंसा की जांच के लिए हाई कोर्ट के निर्देश पर गठित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक समिति द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर अदालत ने यह निर्देश दिया है।
पीठ ने इसके साथ ही भाजपा कार्यकर्ता अभिजीत सरकार के शव का कोलकाता के कमांड अस्पताल में फिर से पोस्टमार्टम कराने का आदेश भी दिया, जिनकी चुनाव के बाद की हिंसा में भीड़ द्वारा कथित रूप से हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा अदालत ने हिंसा की जांच के लिए मौके पर गए एनएचआरसी के सदस्यों पर 29 जून को कोलकाता के जादवपुर इलाके में हुए हमले पर भी सख्त रवैया अपनाया है। पीठ ने टीम के दौरे के दौरान बाधाओं को रोकने में विफल रहने के लिए दक्षिण कोलकाता के पुलिस उपायुक्त राशिद मुनीर खान को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए? पीठ ने इसके साथ ही राज्य के मुख्य सचिव को चुनाव बाद हुई हिंसा से संबंधित सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के भी निर्देश दिए हैं।एनएचआरसी समिति द्वारा प्रस्तुत अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर पीठ ने यह निर्देश दिए हैं। पीठ ने कुछ क्षेत्रों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को भी नोटिस जारी किया है कि हिंसा को रोकने में विफल रहने पर उनके खिलाफ अवमानना का मामला क्यों न चलाया जाए।
एनएचआरसी की जांच को 13 जुलाई तक बढ़ाया
पीठ ने इसके अलावा चुनाव बाद हिंसा की एनएचआरसी की जांच को 13 जुलाई तक बढ़ा दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई भी अब 13 जुलाई को ही होगी। अदालत ने राज्य सरकार को जो भी निर्देश दिए हैं, उसकी कार्रवाई के संबंध में 13 जुलाई को स्टेटस रिपोर्ट भी पेश करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि हाई कोर्ट के आदेश पर मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच कर रही एनएचआरसी की समिति ने इससे पहले हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा और पीडि़तों से बातचीत के बाद 30 जून को पिछली सुनवाई के दौरान पीठ के समक्ष सीलबंद लिफाफे में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपी थी।
अदालत ने हिंसा की बात को माना
वहीं, सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने चुनाव के बाद हिंसा की बात को माना है और पाया कि ममता बनर्जी सरकार गलती पर है और मुकर रही है, जब लोग मर रहे थे और नाबालिग लड़कियों को भी नहीं बख्शा गया। कई लोगों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। कई लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, यहां तक कि दूसरे राज्य जाना पड़ा। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और जस्टिस आई.पी. मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि एनएचआरसी के अध्यक्ष द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट के अवलोकन से प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता द्वारा लिया गया स्टैंड साबित होता है कि चुनाव के बाद हिंसा हुई है। रिपोर्ट में कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या, महिलाओं के साथ दुष्कर्म व बर्बरता आदि का जिक्र है, जिसका याचिकाकर्ता द्वारा दावा किया गया है।
भाजपा का दावा, 41 कार्यकर्ताओं की हो चुकी है हत्या
गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा का दावा है कि चुनाव नतीजों के बाद से अब तक हिंसा में उसके 41 कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। हालांकि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस हिंसा में हाथ होने से इन्कार करती रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई बार कह चुकी हैं कि भाजपा द्वारा बढ़ा चढ़ाकर हिंसा को पेश किया जा रहा है।