विलायत नहीं अब देश में पढ़ने की चाहत, 61 फीसद छात्रों ने स्थगित की विदेश जाने की योजना
मेरा सोनू इंजीनियरिंग पढ़ने विलायत जा रहा है हमारी बिटिया रानी का ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला हो गया है...भारतीय अभिभावकों को अगले कुछ समय तक शायद ही यह कहते देखा जाए।
विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता : मेरा सोनू इंजीनियरिंग पढ़ने विलायत जा रहा है, हमारी बिटिया रानी का ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला हो गया है...भारतीय अभिभावकों को अगले कुछ समय तक शायद ही यह कहते देखा जाए। दुनियाभर में फैले कोरोना के प्रकोप के कारण भारतीय छात्रों को भी अपनी उच्च शिक्षा संबंधी योजनाएं बदलनी पड़ रही हैं। विदेश जाने के बदले अब देशी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने की ओर उनका रुझान बढ़ रहा है। इसकी वजह भारत की तुलना में अन्य देशों में कोरोना की भयावह स्थिति है। भारतीय छात्र विदेश यात्रा, वहां अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा और रहने की व्यवस्था को लेकर दुविधा में हैं। लॉकडाउन से बिगड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण वे रोजगार और वेतन की संरचना को लेकर भी बेहद चिंतित हैं। शिक्षाडॉटकॉम की ओर से किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2020 में विदेश पढ़ने की योजना बनाने वाले 61 फीसद भारतीय छात्रों ने फिलहाल इसे स्थगित कर दिया है जबकि 26 फीसद ने ऑनलाइन क्लास करने की इच्छा जताई है।
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90 से अधिक देशों में पढ़ते हैं 750000 से ज्यादा भारतीय छात्र
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत से हर साल लाखों छात्र पढ़ाई करने विदेश जाते हैं। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 90 से अधिक देशों में 750000 से ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं। भारत इस मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। अमेरिका, संयुक्त राज्य, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड ऐसे देश हैं, जहां सबसे ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ने जाते हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों में बड़ी तादाद में भारतीय फैकल्टी भी हैं ।
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'भारत जैसी शिक्षा पद्धति कहीं नहीं, पर मजबूत करनी होगी आधारभूत संरचना
अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, स्वीडेन, जापान समेत विभिन्न देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में बतौर गेस्ट लेक्चरर आमंत्रित हो चुकीं कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी की प्रोफेसर रुबी साइन ने कहा-'भारतीय छात्र मुख्य रूप से मेडिकल की पढ़ाई करने इंग्लैंड और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अमेरिका जाते हैं। उन देशों में कोरोना के कारण अभी जिस तरह के हालात हैं, उसे देखते हुए अगले कुछ समय तक कोई वहां नहीं जाना चाहेगा। ऐसे में भारतीय शिक्षा संस्थानों की तरफ आकर्षण बढ़ना लाजिमी है। मैंने विभिन्न देशों में जाकर वहां की शिक्षा व्यवस्था को देखा है। भारत जैसी शिक्षा पद्धति कहीं नहीं है लेकिन इसकी आधारभूत संरचना मजबूत करनी होगी ताकि विदेश नहीं जाने वाले भारतीय छात्रों को इसमें समाहित किया जा सके।'
कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अमरनाथ ने कहा-'कोरोना के प्रभाव से उबरने में लंबा समय लगेगा। इस समय विदेश पढ़ने जाना बहुत संकटपूर्ण है। अमेरिका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में स्थिति बहुत खराब है। जहां तक भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बात है तो यह दूसरे देशों से किसी मायने में कम नहीं है। आम तौर पर उन्हीं परिवारों के बच्चे विदेश पढ़ने जाते हैं, जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं या फिर जिन्हें फेलोशिप मिल जाती है। वहीं एक वर्ग ऐसा भी है, जिसके लिए विदेश में पढ़ना 'स्टेटस सिंबल'है।'
नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर सेंट जेवियर्स कॉलेज के एक छात्र ने कहा-'मेरी मेडिकल की पढ़ाई के लिए अगले साल ऑस्ट्रेलिया जाने की योजना थी लेकिन अब देश के ही किसी प्रमुख शिक्षा संस्थान में दाखिला लेने का इरादा है।' इस बीच शिक्षाविदों के एक वर्ग का मानना है कि विदेश पढ़ने जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में अस्थायी रूप से कमी होगी। जैसे-जैसे कोरोना का प्रकोप कम होता जाएगा, इसे लेकर डर भी मिटता जाएगा और संख्या फिर से बढ़ने लगेगी। कोरोना का वैश्विक अर्थव्यस्था पर असर भी अल्पकाल के लिए ही पड़ेगा।