West Bengal: पूर्व माओवादी नेता छत्रधर महतो को अपनी हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है एनआइए
बंगाल के शहरी विकास मंत्री व कोलकाता नगर निगम के प्रशासक फिरहाद हकीम ने गुरुवार को घोषणा की कि कोलकाता के जिन वार्डों में तृणमूल कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में पिछड़ गई थी वहां बढ़त दिलाने वाले पार्षदों को एक करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। पूर्व माओवादी नेता छत्रधर महतो की जमानत याचिका खारिज कराकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) उसे अपनी हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है। इस बाबत कलकत्ता हाईकोर्ट में आवेदन किया गया है, जिसपर विचार करते हुए मुख्य न्यायाधीश टीबी राधाकृष्णन और न्यायाधीश अरिजीत बंद्योपाध्याय की खंडपीठ ने छत्रधर से जुड़े मामले के सारे कागजात शुक्रवार को जमा करने को कहा है।
गौरतलब है कि पिछले साल 22 सितंबर को छत्रधर समेत पांच लोगों को एनआइ की विशेष अदालत में पेश करके अपनी हिरासत में लेने के लिए आवेदन किया गया था, जिसपर अदालत ने कहा था कि चूंकि छत्रधर समेत पांचों को झारग्राम की निचली अदालत जामनत दे चुकी है इसलिए जमानत खारिज कराने के लिए वहीं आवेदन करना होगा। 2009 में राजधानी एक्सप्रेस में अपहरण व 2007 में माकपा नेता प्रबीर महतो की हत्या के मामले में एनआइए छत्रधर से पूछताछ करना चाहती है। एनआइए के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि इस मामले की मजिस्ट्रेट की अदालत में सुनवाई नहीं हो सकती। विशेष अदालत या हाईकोर्ट में हो सकती है इसलिए निचली अदालत से मिली जमानत को अविलंब खारिज किया जाए।
वार्डों में पार्टी को बढ़त दिलाने वाले पार्षदों को एक करोड़ का इनाम देगी तृणमूल
बंगाल के शहरी विकास मंत्री व कोलकाता नगर निगम के प्रशासक फिरहाद हकीम ने घोषणा की कि कोलकाता के जिन वार्डों में तृणमूल कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में पिछड़ गई थी, वहां बढ़त दिलाने वाले पार्षदों को एक करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। फिरहाद की इस घोषणा की बंगाल भाजपा के प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने खून की सुपारी से तुलना की है। शमिक ने कहा कि तृणमूल राजनीतिक तौर पर दीवालिया हो चुकी है, तभी वह इस तरह का कांट्रैक्ट दे रही है। किसी की हत्या कराने के लिए जिस तरह से सुपारी दी जाती है, वोट में जिताने के लिए उसी तरह से कांट्रैक्ट दिया जा रहा है। शमिन ने आगे कहा कि इस तरह से रुपये देने की बात करना गैरकानूनी है। रुपये आखिर कहां से आएंगे? चुनाव आयोग को इस मामले में कड़ा कदम उठाना चाहिए।