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Narada case: जस्टिस बिंदल को हटाने की मांग बार काउंसिल की नहीं, सीजेआइ को भेजा गया जवाबी पत्र

नारद मामले में हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को हटाने की मांग को लेकर राज्य बार काउंसिल में विभाजन स्पष्ट हो गया। एक ओर जहां अध्यक्ष व बजबज से तृणमूल विधायक अशोक देब ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बिंदल को पद को हटाने की मांग कर रहे हैं

By Vijay KumarEdited By: Published: Mon, 28 Jun 2021 06:56 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jun 2021 06:56 PM (IST)
Narada case: जस्टिस बिंदल को हटाने की मांग बार काउंसिल की नहीं, सीजेआइ को भेजा गया जवाबी पत्र
जस्टिस राजेश बिंदल को हटाने के मुद्दे पर बार काउंसिल बंटा

राज्य ब्यूरो, कोलकाताः नारद मामले में हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को हटाने की मांग को लेकर राज्य बार काउंसिल में विभाजन स्पष्ट हो गया। एक ओर जहां अध्यक्ष व बजबज से तृणमूल विधायक अशोक देब ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बिंदल को पद को हटाने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी ओर बार काउंसिल का एक बड़ा गुट ने स्पष्ट कर दिया वे अध्यक्ष से सहमत नहीं हैं। उन्होंने इस आशय का एक पत्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश(सीजेआइ) एनवी रमना को भी भेजा।

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इससे पहले रविवार को अशोक ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था। छह पन्नों के पत्र में उन्होंने आरोप लगाया था कि नारद मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक न्यायाधीश की भूमिका संतोषजनक नहीं है। उधर, तृणमूल की ओर से न्यायाधीश कौशिक चंद को भाजपा के करीबी होने का आरोप लगाया था। इसीलिए जस्टिस चंद की पीठ से नंदीग्राम मामले को हटाने की मांग करते हुए ममता की ओर से याचिका दायर की गई, लेकिन जस्टिस बिंदल ने उसे नजरअंदाज कर दिया यह आरोप भी देब ने लगाया है। इसीलिए जस्टिस बिंदल को तत्काल हटाने की भी मांग की।

उनके पत्र पर विवाद के बीच, बार काउंसिल के चार सदस्यों कैलाश तमोली, समीर पाल, रवींद्रनाथ भट्टाचार्य और मिहिर दास ने सोमवार को मुख्य न्यायाधीश रमना को अलग से पत्र भेजा है। जिसमें कहा गया है कि बार काउंसिल के अध्यक्ष द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को हटाने की मांग वाला पत्र वास्तविक मुद्दे से कहीं अधिक घृणित और जटिल है। पत्र हास्यास्पद है और बार काउंसिल के बहुमत सदस्य उससे असहमत हैं।

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अध्यक्ष के खिलाफ मुखर हुए बार काउंसिल के सदस्य

इतना ही नहीं, पत्र में आगे लिखा गया है कि बार काउंसिल का उस पत्र से कोई लेना-देना नहीं है। अशोक ने परिषद सदस्यों से परामर्श किए बिना पत्र भेजा। बार काउंसिल के लेटर हेड को पत्र भेजने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। बार काउंसिल के पास जज को हटाने के लिए पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। कुछ पदाधिकारी तृणमूल के हाथों की कठपुतली बनकर बार काउंसिल को पार्टी कार्यालय में तब्दील कर दिया है। बार काउंसिल के सदस्य और पत्र के हस्ताक्षरकर्ता समीर पाल ने कहा कि बार काउंसिल के किसी भी लेटरहेड में अशोक स्तंभ नहीं हो सकता है। परंतु, अध्यक्ष ने ऐसा किया है। हो सकता है कि उन्होंने इसे विधायक के रूप में इस्तेमाल किया हो, लेकिन बार काउंसिल के सदस्य के रूप में नहीं कर सकते। यह पहली गलती है। समीर ने यह भी शिकायत की कि अध्यक्ष ने बार काउंसिल की कोई बैठक नहीं बुलाई।

अप्रत्याशित रूप से उन्होंने एक दल के लिए काम किया है। उन्होंने बंगाल के वकीलों के वोट जीते हैं। इसीलिए उन्हें शक्तिशाली की बात नहीं सुननी चाहिए। निश्चित रूप से दबाव में है। किसी को खुश करना चाहते हैं। हमने उनसे पत्र वापस लेने को कहा है। लोग गलती कर सकते हैं। उन्हें पत्र वापस लेना चाहिए।


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