यहां मंदिर की सेवा करते हैं मुस्लिम
-300 साल पुराने शिव मंदिर की देखरेख जुटे हैं मुस्लिम -बांग्लादेश की सीमा से सटे मुर्शिदाबाद क
-300 साल पुराने शिव मंदिर की देखरेख जुटे हैं मुस्लिम
-बांग्लादेश की सीमा से सटे मुर्शिदाबाद का एक गांव है मिसाल
-सिर्फ देखरेख ही नहीं उत्सव व त्योहारों के लिए चंदा भी जुटाते हैं
जागरण न्यूज नेटवर्क, कोलकाता: पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ वर्षो में सांप्रदायिक तनाव व संघर्ष भी हुए।परंतु, इसी बंगाल का एक गांव आपसी भाईचारा, सौहार्द व सद्भाव का मिसाल है। वह ही बांग्लादेश की सीमा से सटे मुर्शिदाबाद जिले जहां मुस्लिम आबादी 75 फीसद है। इसी जिले का एक सामाजिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल है। यहा पिछले 300 से भी ज्यादा वषरें से गाव के मुस्लिम एक मंदिर की देखरेख कर रहे हैं। वह न सिर्फ शिव मंदिर में दैनिक व्यवस्था देख रहे हैं, बल्कि अलग-अलग त्योहारों, उत्सवों और मंदिर के नवीनीकरण के लिए चंदा भी एकत्रित करते हैं।
इस गाव में कहीं भी धर्म की दीवारें देखने को नहीं मिलेगी। यह गाव मुर्शिदाबाद का भट्टाबटी है। यहा टेराकोटा शिव मंदिर में भगवान शिव बाबा रतनेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं। लालबाग सदर घाट से भट्टाबटी गाव की दूरी महज 5 किमी है। यहा जब दान के लिए पर्चे छाप जाते हैं तो उस पर अनंत हाजरा और असीम दास जैसे हिंदू भक्तों के साथ नूर सलीम, सादेक और अजरुल के नाम भी देखने को मिलते हैं।
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मंदिर की देखरेख करते है अजरुल व सदक शेख
मंदिर की देखरेख मुख्य रूप से अजरुल शेख, सदक शेख के साथ अनंत हाजरा और असीम दास कर रहे हैं। बताते हैं कि 1494 में जब सुल्तान अलालुद्दीन हुसैन शाह पश्चिम बंगाल के शासक बने थे तो कम से कम 1200 ब्राह्मण परिवार कर्नाटक से बंगाल आकर रहने लगे थे। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि मंदिर का निर्माण किसने कराया था लेकिन ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय कनुनगो जयनारायण के परिवार के किसी सदस्य ने इस मंदिर को बनवाया था।
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मंदिर की हालत फिलहाल ठीक नहीं
काफी पुराना होने की वजह से मंदिर की हालत फिलहाल ठीक नहीं है। मंदिर का असली शिवलिंग जिसकी ऊंचाई करीब 5 फीट थी, वह एक बार चोरी हो गया था। बाद में इसे नवग्राम पुलिस ने ढूंढ निकाला था। सुरक्षा कारणों की वजह से मंदिर का शिवलिंग अब पुलिस की कस्टडी में ही है। मंदिर कमिटी के अकाउंट कीपर अनंत हाजरा बताते हैं, हम बहुत गरीब हैं। कई हिंदू परिवारों ने गाव छोड़ दिया है। बिना मुस्लिम परिवारों की मदद और सहयोग से इस मंदिर में पूजा-पाठ और दूसरे कामों का होना भी संभव नहीं था। वहीं अबुल शेख कहते हैं कि धर्म कभी भी इस गाव के साझा सद्भाव के लिए खतरा नहीं बना है। यहा किसी के बीच कोई भेदभाव नहीं है। इसलिए वह पूरे दिल से भगवान शिव की पूजा करते हैं। लेखक अबुल बशर भी कहते हैं कि इस तरह की सद्भावना कोई असाधारण बात नहीं है। उनके अनुसार, उनके जैसे लोग बाउल और फकीर जैसे दर्शनशास्त्रियों से प्रभावित हैं जो खुले विचारों वाले थे।