बंगाल की सियासत में बड़ा बदलाव, जहां कभी लगते थे लाल सलाम के नारे... आज वहां जय श्रीराम की गूंज
पार्टी अध्यक्ष होने के नाते शाह ने अपने लिए सबसे कठिन राज्य बंगाल और उसमें भी सबसे सख्त वामपंथी जमीन नक्सलबाड़ी को चुना। उस समय शाह ने पार्टी के राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से कहा था कि यह अभियान राज्य के सबसे कठिन क्षेत्र से वह शुरू करना चाहते हैं।
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। West Bengal Assembly Election 2021 विधानसभा चुनाव का नतीजा चाहे जो भी हो, ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनें या फिर भाजपा अथवा वाममोर्चा-कांग्रेस-इंडियन सेक्युलर फ्रंट के संयुक्त मोर्चा को सत्ता मिले, इन सबके बीच अहम बात यह है कि भाजपा ने बंगाल की सियासत को बदल दिया है। यह बदलाव शहरों के साथ-साथ गांवों तक में जय श्रीराम, भारत माता की जय और वंदे मातरम के जयघोष से महसूस किया जा सकता है। चुनाव से पहले ही भाजपा अपनी वैचारिक लड़ाई बंग भूमि पर काफी हद तक जीत चुकी है। भगवा ब्रिगेड ने मुस्लिम तुष्टिकरण से लेकर ध्रुवीकरण और बांग्लादेश से आए मतुआ संप्रदाय को नागरिकता देने की बातें कहकर उन्हें बंगाल में पहचान की राजनीति की मुख्यधारा में लाकर खड़ा कर दिया है।
जयश्रीराम से हिंदुत्व और भारत माता की जय व वंदे मातरम से राष्ट्रवाद को धार दिया गया है। तुष्टिकरण और मतुआओं के माध्यम से पहचान की राजनीति जैसे दो अहम मुद्दे ममता बनर्जी ने अपने हाथों से ही भाजपा को सौंपा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भुनाना खूब आता है। वहीं, पर्दे के पीछे से भाजपा के अन्य नेता वॉट्सऐप और फेसबुक अभियानों से बार-बार घुसपैठ व गायों की तस्करी जैसे मुद्दों को हवा देकर लोगों के बीच माहौल बनाने में सफल रहे हैं। इसी का नतीजा है कि चाय की दुकानों से लेकर टीवी स्क्रीन तक पर अब चुनावी व सियासी बहस और विमर्श हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के बिना संभव नहीं हो पा रहा है।
बंगाल में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के क्रम में अप्रैल, 2017 में नक्सलबाड़ी इलाके में आदिवासी गीता महाली के घर भोजन करते अमित शाह (मध्य में)। साथ में, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष। फाइल
यही कारण है कि शीतलकूची में केंद्रीय बलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों की धाíमक पहचान कुछ मिनट में ही सार्वजनिक हो गई। इसलिए भाजपा के एक नेता ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि जिस तरह से वोट लूट व हमले की कोशिश हुई थी, उसमें चार नहीं, बल्कि आठ लोगों को मार दिया जाना चाहिए था। ऐसे ही चुनावी मशीनें काम करती हैं, कभी जोर से तो कभी चुपचाप। प्रधानमंत्री मोदी चुनावी सभाओं में जब बोलते हैं तो 2019 तक उनका नारा होता था ‘चुपचाप कमल छाप’ और अब कह रहे हैं, ‘अबकी बार जोर से कमल छाप।’ इसके निहितार्थ और विचार को समझने की जरूरत है।
जिस बंग भूमि पर जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ, उसी धरती पर पहली बार भाजपा ने वैचारिकी की लड़ाई में काफी हद तक जीत दर्ज की है और सत्ता की दौड़ में कांग्रेसी व वामपंथी विचारों और प्रभाव को निस्तेज कर कांग्रेस से ही निकली सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के सम्मुख खड़ी है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि विदेशों से आयातित (कार्ल मार्क्स, लेनिन, माओ की नीतियां, विचार व आदर्श) नीतियों, विचारों और आदर्शो पर चलने वाली वामपंथी पार्टयिां बंगाल की धरती पर खूब फले-फूले, लेकिन हिंदुत्व व स्वदेशी सोच वाले जनसंघ की राजनीति हाशिए पर रही। भाजपा वही पार्टी है, जिसकी बुनियाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ से रखी थी। यह वक्त का ही चक्र है कि हाशिये पर रही भाजपा आज बंगाल की सत्ता के दौड़ में शामिल है और विदेश से आयातित विचारों-आदर्शो व नीतियों पर चलने वाली वामपंथी पार्टयिां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं।
एक बार फिर से बंगाल करवट बदल रहा है। इसका अहसास 2019 के आम चुनाव में ही हो गया था। भाजपा ने प्रदेश की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की थी और वोट शेयर 42 फीसद था। क्या यह सब अचानक हुआ है? यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब तलाशने के लिए फ्लैश बैक में जाना होगा। वर्ष 2017 में ओडिशा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी जिसे संबोधित करने के महज 10 दिनों बाद ही भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बंगाल पहुंच थे। वह भी उस जगह, जहां से चारू मजूमदार ने 1967 में सशस्त्र नक्सल आंदोलन की शुरुआत की थी। अमित शाह उत्तर बंगाल के नक्सलबाड़ी इलाके में पहुंचे थे। वहीं से बंगाल सहित पूरे देश में भाजपा का विस्तार अभियान शुरू हुआ था। लक्ष्य रखा गया था कि भाजपा के शीर्ष नेताओं से लेकर निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक को लोगों के घर-घर तक जाना है।
पार्टी अध्यक्ष होने के नाते शाह ने अपने लिए सबसे कठिन राज्य बंगाल और उसमें भी सबसे सख्त वामपंथी जमीन नक्सलबाड़ी को चुना। उस समय शाह ने पार्टी के राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से कहा था कि यह अभियान राज्य के सबसे कठिन क्षेत्र से वह शुरू करना चाहते हैं। उसी वर्ष 25 अप्रैल से 21 सितंबर तक पांच महीने में शाह ने देशभर में लगभग 42 हजार किमी की यात्रा की थी। शाह ने उसी समय अपने हाथों में बंगाल की कमान संभाल ली थी। पार्टी व संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ मतदाता सूची के ‘पन्ना प्रमुख’ को लेकर हर 10 बूथों पर एक ‘शक्ति केंद्र’ स्थापित किया। इसी का नतीजा है कि नक्सलबाड़ी में जहां कभी लाल सलाम के नारे लगते थे, आज वहां जय श्रीराम और भारत माता की जय के नारे बुलंद हो रहे हैं। यही तो बंगाल की सियासत में बड़ा बदलाव है और भाजपा की वैचारिक जीत।
[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]