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अल्पसंख्यकों के तृणमूल के समर्थन में खड़े होने के आसार

धर्मनिरपेक्ष व सेकुलर उम्मीदवार पहली पसंद - भाजपा की ताकत को रोकने की कवायद राज्य ब्यूरो कोलक

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 09:11 AM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 09:11 AM (IST)
अल्पसंख्यकों के तृणमूल के समर्थन में खड़े होने के आसार
अल्पसंख्यकों के तृणमूल के समर्थन में खड़े होने के आसार

धर्मनिरपेक्ष व सेकुलर उम्मीदवार पहली पसंद

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- भाजपा की ताकत को रोकने की कवायद

राज्य ब्यूरो, कोलकाता: सांप्रदायिक दंगा की घटनाओं में वृद्धि समेत कई मुद्दों पर ममता बनर्जी सरकार से क्षुब्ध होने के बावजूद अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग पश्चिम बंगाल में भाजपा की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए तृणमूल कांग्रेस के समर्थन में खड़े हो सकते हैं। चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को अल्पसंख्यकों का वोट मिलना तय माना जा रहा है। राज्य की कई लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। बंगाल में 34 वषरें तक सत्ता में रहने वाले वाममोर्चा के विकल्प के रूप में तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई तो उसमें अल्पसंख्यकों की अहम भूमिका थी।

ऑल बंगाल माइनरिटी यूथ फेडरेशन के महासचिव मोहम्मद कमरुज्जमा ने कहा कि राज्य में सांप्रदायिक दंगों में इजाफा समेत कई मुद्दों पर ममता सरकार से नाराजगी होने के बावजूद अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य में तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान करेंगे। सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध लड़ने वाली बंगाल में तृणमूल कांग्रेस विश्वसनीय पार्टी है। भाजपा के विरुद्ध तृणमूल सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे ज्यादा मुखर हैं।

कमरुच्जमा के संगठन माइनरिटी यूथ फेडरेशन का राज्य में मुस्लिम युवाओं पर प्रभाव है। कमजरुजमा का मानना है कि अल्पसंख्यकों को सबसे मजबूत धर्मनिरपेक्ष पार्टी व सेकुलर उम्मीदवार को वोट देना चाहिए। वह खुद अल्पसंख्यक मतदाताओं से इसकी अपील करेंगे। रेड रोड मे ईद की नमाज पढ़ाने वाले महानगर के विशिष्ट इमाम काजी फजलूर्रहमान ने कहा कि अल्पसंख्यकों के समर्थन से धर्मनिरपेक्ष और लोकतात्रिक उम्मीदवार ही जितेंगे। इसके अतिरिक्त महानगर के प्रतिष्ठित नाखोदा मस्जिद के इमाम शफीक कासमी ने भी कहा कि अल्पसंख्यकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके मतों का विभाजन न हो और केवल एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतात्रिक उम्मीदवारों को ही जिताने में वे मददगार हो। राज्य में 30 प्रतिशत अल्पसंख्यक मतदाता 16-18 लोकसभा सीटों मेंनिर्णायक भूमिका अदा करेंगे।

दक्षिण बंगाल में रायगंज, कूचबिहार, बालुरघाट, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण, मुर्शिदाबाद और दक्षिण बंगाल में डायमंड हार्बर, उलबेरिया, हावड़ा, बीरभूम, कांथी, तमलुक और जयनगर जैसी सीटों पर हार जीत में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करने की स्थिति में हैं। पिछले चार वषरें में राज्य में हुए कई दंगों से अल्पसंख्यकों का एक वर्ग बहुत नाराज है। 2018 में जारी केंद्रीय गृह मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार पश्चिम बंगाल में 2015 के बाद से साप्रदायिक हिंसा तेजी से बढ़ी। राज्य में 2015 में साप्रदायिक हिंसा की 27 घटनाएं हुई थी। 2017 में वह बढ़कर लगभग दोगुनी से अधिक 58 हो गई। 2017 में बशीरघाट के दंगे और 2018 में आसनसोल में दंगे हुए। तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में सांप्रदायिक दंगों के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया था। उसने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए भाजपा पर साप्रदायिक जुनून को भड़काने का भी आरोप लगाया था।

नगरविकास मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा कि अल्पसंख्यक ममता बनर्जी सरकार द्वारा किए गए विकासमूलक कायरें से वाकिफ हैं। बंगाल साप्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है। लेकिन भाजपा राज्य में गड़बड़ी फैलाना चाहती है।

आजादी के बाद अल्पसंख्यकों ने राज्य में हिंदू महासभा और जनसंघ जैसे संगठनों के विरुद्ध व काग्रेस के पक्ष में मतदान किया। लेकिन साठ के दशक के बाद बाद से राज्य के अल्पसंख्यक वामपंथी दलों की ओर झूकते गए। उन्होंने धीरे-धीरे वामपंथी ताकतों की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और वाममोर्चा ज्योति बसु के नेतृत्व में कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरा और सत्ता पर काबिज हो गया। माकपा के नेतृत्व वाला वाममोर्चा ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई ऐस विकासमूलक काम किए जिससे अल्पसंख्यकों को बहुत फायदा हुआ। आपरेशन बर्गा से भूमिहीन किसानों को भूमि मिली। इसमें अधिकांश अल्पसंख्यक भूमिहीन लाभान्वित हुए। वाममोर्चा ने अल्पसंख्यकों के बीच अपना समर्थन और आधार मजबूत किया। लेकिन 2008 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद राज्य में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर एक निराशाजनक तस्वीर आई। ममता बनर्जी की अगुवाई में सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला। 2011 में ममता ने 34 वर्षीय वाम मोर्चा शासन को उखाड़ फेंका तो उसमें अल्पसंख्यकों की भी अहम भूमिका थी।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि राज्य सरकार की नीतिया राज्य में एक विशिष्ट समुदाय के हितों की रक्षा के लिए है। इससे बहुसंख्यक समुदाय में गुस्सा पनप रहा है। बहुसंख्यकों को अब लग रहा है कि केवल भाजपा ही उनके हितों की रक्षा कर सकती है।


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