Move to Jagran APP

Bengal Chunav 2021: बालीगंज सीट पर मंत्री को मिल रही वकील व डाक्टर से चुनौती, हैट्रिक के लिए जद्दोजहद कर रही तृणमूल

Bengal Election 2021 कोलकाता की बालीगंज सीट पर सातवें चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है। इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता व हेवीवेट मंत्री सुब्रत मुखर्जी एक बार फिर मैदान में हैं। भाजपा ने यहां से एडवोकेट लोकनाथ चटर्जी को मैदान में उतारा है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 21 Apr 2021 10:34 AM (IST)Updated: Wed, 21 Apr 2021 10:34 AM (IST)
Bengal Chunav 2021: बालीगंज सीट पर मंत्री को मिल रही वकील व डाक्टर से चुनौती, हैट्रिक के लिए जद्दोजहद कर रही तृणमूल
बालीगंज सीट पर सातवें चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है।

कोलकाता, राजीव कुमार झा। बालीगंज सीट कोलकाता की महत्वपूर्ण सीटों में से एक है। यहां सातवें चरण में 26  अप्रैल को मतदान होना है। इस सीट पर दो बार से लगातार जीतते आ रहे तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता व हेवीवेट मंत्री सुब्रत मुखर्जी एक बार फिर मैदान में हैं। राज्य में 2011 में ममता बनर्जी की अगुवाई में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही मुखर्जी मंत्री हैं। पंचायत व ग्रामीण विकास जैसे अहम विभाग का दायित्व लंबे समय से उनके पास है। 

loksabha election banner

 यहां तक कि राज्य के वरिष्ठ नेताओं में से एक मुखर्जी को खुद ममता भी अपना राजनीतिक गुरु मानती हैं। मगर इस बार मुखर्जी की राह भी आसान नहीं है। क्योंकि इस बार उन्हें भाजपा व माकपा से कड़ी टक्कर मिल रही है। भाजपा ने यहां से एडवोकेट लोकनाथ चटर्जी को मैदान में उतारा है। वहीं, माकपा प्रत्याशी डाक्टर फुवाद हलीम भी संयुक्त मोर्चा की नाव पर सवार होकर जीत के लिए ताल ठोक रहे हैं। हलीम को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता दिवंगत हाशिम अब्दुल हमीम माकपा शासनकाल में लगातार 29 वर्षो तक (1982-2011) बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं। हालांकि तृणमूल प्रत्याशी मुखर्जी भी एक मजे हुए राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन इस बार उन्हें वकील व डाक्टर से कड़ी चुनौती मिल रही है।

 15 वर्षो से इस सीट पर तृणमूल का है कब्जा 

इस सीट पर पिछले 15 वर्षो यानी 2006 से तृणमूल का कब्जा है। 2016 में सुब्रत मुखर्जी लगातार दूसरी बार यहां से विधायक बने थे। उन्होंने कांग्रेस के कृष्णा देवनाथ को 15,225 वोटों से हराया था। मुखर्जी को 70,083 वोट मिले थे। भाजपा यहां तीसरे स्थान पर रही थी और 20 हजार से अधिक वोट मिले थे। इससे पहले 2011 में मुखर्जी ने माकपा प्रत्याशी डा. फुवाद हलीम को यहां से हराया था। 2011 में भी भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी और उसे मात्र 5188 वोट मिले थे। इससे पहले 2006 में तृणमूल ने पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी। ममता सरकार में मंत्री जावेद अहमद खान ने 2006 में जीत दर्ज की थी। 

 1971 से 2001 तक माकपा का रहा है दबदबा

 इस सीट पर पहली बार साल 1957 में वोट डाले गए थे, जिसमें सीपीआइ प्रत्याशी को जीत मिली थी। बाद के चुनावों में यहां सबसे अधिक माकपा का दबदबा रहा और साल 1971 से लेकर 2001 तक उसने इस सीट पर अपना कब्‍जा जमाए रखा।

 जीत-हार तय करने में हिंदीभाषी व मुस्लिम मतदाता का अहम रोल 

इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग 20 फीसद हिंदीभाषी मतदाता हैं, जबकि बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता भी हैं। हार-जीत तय करने में इनका अहम रोल है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था और माकपा को पीछे धकेल दूसरे पायदान पर कब्जा जमाया था। अब जीत के लिए इस बार भाजपा यहां पूरा जोर लगा रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.