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सुंदरवन से विलुप्त हो रहे मैंग्रोव प्रजाति के पेड़-पौधे, दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव फॉरेस्ट के वजूद के लिए विशेषज्ञ इसे बता रहे गंभीर खतरा

दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव फॉरेस्ट के वजूद के लिए विशेषज्ञ इसे बता रहे गंभीर खतरा। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव फॉरेस्ट सुंदरवन से मैंग्रोव प्रजाति के पेड़-पौधे विलुप्त होते जा रहे हैं। मैंग्रोव पेड़-पौधे पर्यावरण का व्यापक तौर पर संरक्षण करते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 02:42 PM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 02:42 PM (IST)
सुंदरवन से विलुप्त हो रहे मैंग्रोव प्रजाति के पेड़-पौधे, दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव फॉरेस्ट के वजूद के लिए विशेषज्ञ इसे बता रहे गंभीर खतरा
मैंग्रोव पेड़-पौधे पर्यावरण का व्यापक तौर पर संरक्षण करते हैं।

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव फॉरेस्ट सुंदरवन से मैंग्रोव प्रजाति के पेड़-पौधे विलुप्त होते जा रहे हैं। मैंग्रोव पेड़-पौधे पर्यावरण का व्यापक तौर पर संरक्षण करते हैं। ये चक्रवात की तीव्रता को कम करने में भी बेहद प्रभावी हैं। सुंदरवन में एक समय गड़िया, कृपाल और लतासुंदरी के पेड़ प्रचुर संख्या में थे लेकिन अब मुश्किल से नजर आते हैं।

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विशेषज्ञों का कहना है कि सुंदरवन में ज्यादा से ज्यादा मैंग्रोव प्रजाति के पेड़-पौधे लगाए जाने चाहिए अन्यथा एक दिन इसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। विशेषकर नदियों के किनारे इन्हें लगाना होगा क्योंकि ये भूमि कटान को भी नियंत्रित करते हैं। विशेषज्ञों ने आगे कहा कि यह आपदा एक दिन में सामने नहीं आई है। मत्स्य पालन केंद्रों के निर्माण के लिए मैंग्रोव इलाकों में पेड़-पौधों को काटा गया है।

दक्षिण 24 परगना, जिसके अंतर्गत सुंदरवन का विस्तृत इलाका आता है, के जिला वन अधिकारी मिलन कांति मंडल ने बताया-'जो मैंग्रोव पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं, वे सुंदरवन के रिहायशी इलाकों में हैं। सुंदरवन के राष्ट्रीय उद्यान में मैंग्रोव पेड़-पौधे की विभिन्न प्रजातियों को संरक्षित करके रखा गया है। चूंकि वन विभाग की अनुमति के बिना पेड़ों को काटना गैरकानूनी है इसलिए हमने जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को लिखित तौर पर इसकी जानकारी दी है।

'कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पुनर्बसु चौधरी ने कहा-'किसी भी प्रजाति के पेड़-पौधों का विलुप्त होना इस बात का संकेत देता है कि प्रकृति को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है। चौधरी ने सुझाव देते हुए कहा कि सुंदरवन के जिन इलाकों में रोजाना ज्वार-भाटा की स्थिति होती है, वहां ज्यादा से ज्यादा केवड़ा और गेउड़ा के पेड़ लगाए जाने चाहिए क्योंकि ये भूमि का कटान रोकते हैं।

इसी तरह जिन इलाकों में महीने में दो बार ही ज्वार-भाटा देखने को मिलता है, वहां गर्जन प्रजाति के पेड़ लगाने चाहिए क्योंकि ये शक्तिशाली चक्रवात की तीव्रता को कम करने में मदद करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वनांचलों में प्राकृतिक नियमों से मैंग्रोव पेड़-पौधों का जन्म-मरण हो रहा है लेकिन रिहायशी इलाकों में उन्हें नष्ट किया जा रहा है। झरखाली के जैव पार्क में एक समय सभी प्रजाति के मैंगोव पेड़-पौधे देखने को मिलते थे लेकिन अभी वहां भी बहुत सारी प्रजातियां नजर नहीं आतीं। 


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