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अब प्रोफेसर 65 और कुलपति 70 की उम्र में होंगे रिटायर: ममता

-गरिमामयी इतिहास को धूमिल न करें छात्र - मानसिक संकीर्णता का द्योतक है भेदभाव ---------------

By JagranEdited By: Published: Mon, 07 Jan 2019 11:36 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jan 2019 11:36 PM (IST)
अब प्रोफेसर 65 और कुलपति 70 की उम्र में होंगे रिटायर:  ममता
अब प्रोफेसर 65 और कुलपति 70 की उम्र में होंगे रिटायर: ममता

-गरिमामयी इतिहास को धूमिल न करें छात्र

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- मानसिक संकीर्णता का द्योतक है भेदभाव

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जागरण संवाददाता, कोलकाता : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने छात्रों और शोधकर्ताओं से गरिमामयी इतिहास को संरक्षित करने का आग्रह किया। उन्होंने छात्रों से कहा कि किसी भी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होकर राज्य की गरिमामयी इतिहास को धूमिल न करें। सोमवार को नजरुल मंच में आयोजित कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षात समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि, मैं छात्रों और शोधकर्ताओं से अनुरोध करती हूं कि वे हमारे गरिमामयी इतिहास को संरक्षित करने प्रयास करें और यह सुनिश्चित करें कि यह किसी राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं धूमिल न हो पाएं।

उन्होंने कहा कि किसी भी संस्थान की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए। इसके अलावा किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए। भेदभाव मानसिक संकीर्णता का द्योतक है। बंगाल की इस पवित्र भूमि में स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महान शख्सीयत ने जन्म लिया हैं। जो हमें एकजुट होने का संदेश देते हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने राज्य के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों और कुलपतियों की सेवानिवृत की उम्र को बढ़ाने का ऐलान किया। ममता बनर्जी ने कहा कि अब विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों को 65 साल और कुलपतियों को 70 साल की उम्र में सेवानिवृति दी जाएगी। इससे पहले प्रोफेसरों की सेवानिवृति उम्र 62 साल और कुलपतियों की 65 साल थी। दीक्षांत समारोह में उन्होंने कहा कि अध्यापक जितने अधिक अनुभवी रहेंगे, छात्रों को उनके ज्ञान का लाभ उतना ही अधिक मिलेगा, इसलिए राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है। ममता ने कहा कि पश्चिम बंगाल में और अधिक कॉलेज और विश्वविद्यालय खोले जाएंगे। उन्होंने प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में जारी अस्थिरता का जिक्र करते हुए कड़ी निंदा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रेसिडेंसी जैसे विख्यात विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय परिसर से बाहर करना पड़ता है। इससे विश्वविद्यालय का सम्मान धूमिल हुआ है। यह शर्मनाक है। छात्रों को इस तरह की राजनीति नहीं करनी चाहिए जो उन्हें दूसरों को अपमानित करना सिखाता हो। उल्लेखनीय है कि प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के हिन्दू हॉस्टल में आवास मुहैया कराने की माग पर छात्रों ने लगातार आंदोलन किया था। इस दौरान पड़ने वाले दीक्षांत समारोह में किसी भी अध्यापक या कुलपति को विश्वविद्यालय परिसर में घुसने नहीं दिया। इसकी वजह से नंदन में दीक्षांत समारोह करना पड़ा था। इससे खफा कुलाधिपति राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी समारोह में शामिल नहीं हुए थे।


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