ममता सरकार नेताजी को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में किताबों में शामिल करने पर कर रही है विचार
नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच खींचतान चल रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गणतंत्र दिवस की परेड में नेताजी पर बनाई गई बंगाल की झांकी शामिल नहीं किए जाने को लेकर निशाना साधा है
राज्य ब्यूरो, कोलकाताः नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और भाजपा की सियासी लड़ाई में एक नया मोड़ जल्द आ सकता है। क्योंकि, बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर नई योजना बना रहे हैं। ममता सरकार के शिक्षा मंत्री ने राज्य के शिक्षा विभाग की सिलेबस कमेटी को नेताजी को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में पाठ्य पुस्तक में शामिल करने के लिए समीक्षा करने का निर्देश दिया है।
ब्रात्य ने सोमवार को संवादताता सम्मेलन में कहा कि साल 1943 में नेताजी ने दक्षिण पूर्व एशिया के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली थी। यह ध्यान रखना होगा कि उस समय अखंड भारत था। पराधीन भारत था। उन्होंने औपनिवेशिक काल के दौरान ऐसा किया था और अपनी कैबिनेट बनाई थी। हम पाठ्यक्रम समिति से कहेंगे कि इससे पाठ्यक्रम में कोई राजनीतिक या अस्थाई प्रभाव पड़ता है या नहीं। यहां पाठ्यक्रम समिति के अध्यक्ष भी हैं। हम उन्हें इस मामले पर विचार करने के लिए कहेंगे। यहां बताते चलें कि कुछ माह पहले ही संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि आजाद हिंद फौज के प्रथम सरकार के नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहले प्रधानमंत्री थे।
बता दें कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच खींचतान चल रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गणतंत्र दिवस की परेड में नेताजी पर बनाई गई बंगाल की झांकी शामिल नहीं किए जाने को लेकर निशाना साधा है और केंद्र सरकार पर पक्षपात करने का आरोप लगाया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच मचे घमासान के बीच बंगाल के शिक्षा मंत्री ने नेताजी को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में ‘मान्यता’ देने के विचार और नेताजी के संघर्ष को मान्यता देने की प्रक्रिया को तेज करने की बात कह कर नया विवाद पैदा कर दिया है।
इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार ने देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में विभिन्न तरीकों से नेताजी के योगदान को स्वीकार करती नजर आई थी। पराधीन भारत के बाहर नेताजी द्वारा बनाई गई आजाद हिंद सरकार आजादी के लिए देश के संघर्ष में आजाद हिंद सरकार का एक निर्विवाद योगदान रहा है।