महाश्वेता देवी पर बनीं फिल्म 'महानंदा', फिल्म निर्माता ने फिल्म के हिट होने की जताई उम्मीद
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मशहूर बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी पर फिल्म बनाने वाले निर्माता अरिंदम सील ने फिल्म के हिट होने की उम्मीद जताई।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मशहूर बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी पर फिल्म बनाने वाले निर्माता अरिंदम सील ने फिल्म के हिट होने की उम्मीद जताई। शील ने कोलकाता में पत्रकारों से कहा कि फिल्म 'महानंदा' एक बायोपिक नहीं बल्कि बंगाल के संथाल और सावर जनजातियों के अधिकारों के लिए महाश्र्वेता देवी के संघर्ष पर आधारित होगी।
ज्ञानपीठ के अलावा रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता रहीं महाश्वेता का 2016 में निधन हो गया था। शील ने कहा कि यह फिल्म महाश्र्वेता देवी की राजनीतिक विचारधारा, आदिवासियों के अधिकारों के लिए उनके काम और राज्य की शहरी आबादी के बीच चेताना बढ़ाने पर केंद्रित होगी।
उन्होंने बताया कि अभिनेत्री गार्गी राय चौधरी ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है। अरिंदम सील ने बताया कि फिल्म काल्पनिक चरित्र 'महानंदा' के इर्द-गिर्द घूमेगी जिसमें महाश्र्वेता देवी के जीवन और व्यक्तित्व की समानता होगी।
शील ने कहा कि महाश्र्वेती देवी अमर्त्य सेन और सौरभ गांगुली की तरह एक बंगाली आइकन हैं, लेकिन शायद उन्हें उनकी पहचान नहीं मिली। इस फिल्म के जरिए हम खासकर बंगालियों में उनकी शख्सियत व काम को महसूस कराना चाहते हैं। यह फिल्म जल्द ही रिलीज होने की उम्मीद है।
साहित्यकार महाश्वेता देवी जीवन परिचय
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, बांंग्ला भाषा की कलम थामे उम्दा साहित्य का सृजन करने वालीं प्रसिद्ध साहित्यकार और समाज सेविका महाश्वेता देवी बांग्ला साहित्य की इस महान साहित्यकार का जन्म 14 जनवरी सन 1926 में ढाका में उस वक्त हुआ, जब वह भारत का ही हिस्सा था। महाश्वेता देवी ने एक साहित्यिक परिवार में जन्म लिया, जिसका असर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ताउम्र दिखाई दिया। उनके पिता मनीष कटक एक कवि और उपन्यासकार थे, और उनकी माता धारीत्री देवी एक लेखिका और समाज सेविका थीं। महाश्वेता देवी में साहित्य और समाज की समझ अपने परिवार में संस्कारों के साथ पाई।
काफी कम उम्र में लेखन की शुरुआत करने वालीं महाश्वेता देवी ने अपने साहित्यिक सफर के दौरान कई पत्रिकाओं में लघुकथाएं लिखी और बाद में उपन्यास की रचना की और नाती नामक उपन्यास लिखा। हालांकि 1956 में प्रकाशित झांसी की रानी, महाश्वेता देवी की प्रथम रचना थी, जिसे लिखने के बाद उन्हें अपने भावी कथाकार होने का आभास हुआ था। अर्थात शुरुआत में महाश्वेता देवी के लेखन की मूल विधा कविता थी जो बाद में कहानी और उपन्यास में बदल गई।
बंग्ला और हिन्दी भाषा को मिलाकर अग्निगर्भ, जंगल के दावेदार, 1084 की मां, माहेश्वर, ग्राम बंग्ला, अमृत संचय, आदिवासी कथा, ईंट पर ईंट, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, घहराती घटाएं, जकड़न, जली थी अग्निशिखा, मातृछवि, मास्टर साब, मीलू के लिए स्त्री पर्व, कृष्ण द्वादशी, आदि उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं। अपने संपूर्ण जीवन में महाश्वेता देवी ने 40 से अधिक कहानी संग्रह और सैकड़ों उपन्यास लिखे। महाश्वेता देवी की कुछ रचनाएं हिन्दी में भी काफी पसंद की गईं, लेकिन उनकी मूल भाषा बांग्ला ही रही।
अपने जीवनकाल में ज्ञानपीठ, पद्मभूषण, साहित्य अकादमी एवं अन्य सम्माननीय पुरस्कार से सम्मानित महाश्वेता देवी ने अपने जीवन में कई अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण किरदार निभाए। उन्होंने पत्रकारिता से लेकर लेखन, साहित्य, समाज सेवा एवं अन्य कई समाज हित से जुड़े किरदारों को बखूबी निभाया। महाश्वेता देवी ने अपने जीवन में न केवल बेहतरीन साहित्य का सृजन किया बल्कि समाज सेवा के विभिन्न पहलुओं को भी समर्पण के साथ जिया। उन्होंने आदिवासियों के हित में भी अपना अमूल्य सहयोग दिया। जीवन भर किए गए अपने सृजन और सदकार्यों की महक को दुनिया में बिखेरकर, 90 सालों तक बंग्ला साहित्य की बगिया को पोषित करने वाली महाश्वेता देवी अंतत: 28 जुलाई 2016 इस दुनिया को अलविदा कह गईंं।