जॉब ने बना दी जोड़ी, लव और अरेंज्ड मैरिज की जगह अब 'प्लांड मैरिज' ने ले ली है
उच्च शिक्षा प्राप्त लोग अब धर्म व संप्रदाय को ज्यादा तरजीह न देकर ऐसे जीवनसाथी की इच्छा रखते हैं, जिनकी विचारधारा उनसे मिलती हो।
कोलकाता,विशाल श्रेष्ठ। सदियों से कहावत चली आ रही है कि जोडि़यां ऊपर आसमान में बनती हैं लेकिन इस जेट युग में रब नहीं, जॉब जोडि़यां बना रहा है। भिन्न नौकरी वालों में शादी-ब्याह और जीवनसाथी को लेकर भिन्न खयालात देखने को मिल रहे हैं। नतीजतन, अंतर-जातीय विवाह के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं।
मैट्रीमोनियल साइट शादी डॉटकॉम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गौरव रक्षित ने बताया कि फाइनेंस, मार्केटिंग एवं मीडिया जैसे क्षेत्रों से जुड़े लोग शादी-ब्याह के मामले में सबसे खुले विचारों के हैं। इन पेशों से जुड़े 70 फीसद सिंगल्स शादी के मामले में संप्रदाय को खास तवज्जो नहीं दे रहे। वे एक समझदार जीवनसाथी चाहते हैं।
वहीं डॉक्टरी के पेशे से जुड़े लोग समान पेशे वाले से ही शादी करना चाहते हैं ताकि वे पहले से ही एक-दूसरे की जीवनशैली से अच्छी तरह से वाकिफ हों। जहां तक आइटी पेशेवरों की बात है तो इसमें मिश्रित रूख देखने को मिल रहा है। इस पेशे से जुड़ीं 60 फीसद महिलाएं अपने संप्रदाय के पुरूष से शादी करने की इच्छा रखती हैं। पुरूषों के मामले में यह दर 50-50 फीसद है।
एक वरिष्ठ सरकारी विवाह पंजीकरण अधिकारी ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि शादी-ब्याह के मामले में जॉब अब निश्चित रूप से अहम भूमिका अदा कर रहा है। सिर्फ आर्थिक सुरक्षा के लिहाज से नहीं बल्कि इससे एक सोच भी पैदा होती है। नौकरी की प्रकृति, कार्य क्षेत्र, कार्यालय के माहौल व सहकर्मियों का व्यक्ति विशेष की विचारधारा पर काफी प्रभाव पड़ता है।
उच्च शिक्षा प्राप्त व प्रमुख क्षेत्रों में अच्छी नौकरी करने वाले ज्यादातर लोग अब धर्म व संप्रदाय को ज्यादा तरजीह न देकर ऐसे जीवनसाथी की इच्छा रखते हैं, जिनकी विचारधारा उनसे मिलती हो। उनके घरवाले भी अब दूसरे संप्रदाय वाले को दामाद-बहू के रूप में सहजता से स्वीकार कर रहे हैं।
संस्कृति को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है बंगाली संप्रदाय
हालांकि जहां तक बंगाली संप्रदाय की बात है, तो वह अब भी शादी-ब्याह के मामले में अपनी संस्कृति को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। मैट्रीमोनियल साइट के जरिए अपना जीवनसाथी पाने वाली पौलमी राय ने बताया-'मैंने अपनी अब तक की जिंदगी कोलकाता में बिताई है। मेरा एक बड़ा परिवार है इसलिए जब मैंने अपने लिए जीवनसाथी की तलाश शुरू की थी, तब संस्कृति मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक था।
मैंने महसूस किया था कि अगर मैं और मेरा जीवनसाथी एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के होंगे तो मेरा शादी के बाद का जीवन सफर काफी आसान हो जाएगा। मैं जीवनसाथी चुनने का निर्णय भी खुद से लेना चाहती थी।'
शादीडॉटकॉम के सर्वेक्षण के मुताबिक बंगाली संप्रदाय के अधिकांश लोग अपने ही धर्म और भाषा बोलने वाला जीवनसाथी चाहते हैं। 71 फीसद सिंगल्स अपने धर्म वाला जीवनसाथी चाहते हैं, हालांकि समान धर्म वाले जीवनसाथी की चाहत रखने पर भी वे समान संप्रदाय को लेकर बहुत ज्यादा हठधर्मी नहीं हैं। वहीं 60 फीसद दूसरे संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाले से भी शादी करने को तैयार हैं।
हालांकि 90 फीसद अपनी मातृभाषा वाला जीवनसाथी ही चाहते हैं। यह उनका जीवनसाथी चुनने का सबसे प्रमुख मानदंड है। इस मामले में तमिलनाडु दूसरे, केरल तीसरे और दिल्ली चौथे स्थान पर है। इससे इतर शेष भारत में 60 फीसद लोग ही अपनी मातृभाषा बोलने वाले से विवाह करने की इच्छा रखते हैं। 84 फीसद सिंगल्स भिन्न पेशे वाला जीवनसाथी चाहते हैं। वहीं बंगाल के 86 फीसद सिंगल्स अपने ही शहर की लड़के-लड़की से शादी करने की इच्छा रखते हैं।
ऑनलाइन विवाह पंजीकरण के मामले में बंगाल शीर्ष पांच राज्यों में
रक्षित ने बताया कि पश्चिम बंगाल ऑनलाइन विवाह पंजीकरण के मामले में शीर्ष पांच राज्यों में शुमार है। शाही-ब्याह अब महज पारंपरिक रीति-रिवाज नहीं रह गया है, सही जीवन साथी तलाशने की जिम्मेदारी परिवार से अब शादी करने जा रहे लोगों ने अपने हाथों में ले ली है। भावी जीवनसाथी को लेकर अपेक्षाएं भी बदलती जा रही हैं। लव और अरेंज्ड मैरिज की जगह अब 'प्लांड मैरिज' ने ले ली है।