Move to Jagran APP

Lok Sabha Election 2019: पश्चिम बंगाल में सियासी खूनी खेल का इतिहास बहुत पुराना है

पश्चिम बंगाल में सियासी खूनी खेल का इतिहास बहुत पुराना है। पिछले छह दशकों से सत्तारूढ़ दल और विपक्ष में जारी सियासी घमासान में खून बहता आ रहा है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 01:54 PM (IST)Updated: Thu, 02 May 2019 01:54 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: पश्चिम बंगाल में सियासी खूनी खेल का इतिहास बहुत पुराना है
Lok Sabha Election 2019: पश्चिम बंगाल में सियासी खूनी खेल का इतिहास बहुत पुराना है

कोलकाता, दीपक भट्टाचार्य। पश्चिम बंगाल में सियासी खूनी खेल का इतिहास बहुत पुराना है। पिछले छह दशकों से सत्तारूढ़ दल और विपक्ष में जारी सियासी घमासान में खून बहता आ रहा है।

loksabha election banner

चुनावी मौसम में तो सियासी लड़ाई इतनी बढ़ जाती है कि रक्तपात की कोई सीमा नहीं होती। यह सिलसिला तब शुरू हुआ था, जब बंगाल में कांग्रेस सत्तारूढ़ पार्टी थी और विपक्ष में वामदल थे। उस समय होने वाले संघर्ष में काफी खून बहता था। उसी दौर में नक्सलबाड़ी आंदोलन और उसे दबाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा उठाए गए कदम किसी से छिपे नहीं हैं। कांग्रेस व वामदलों के बीच सियासी हिंसा का दौर 1977 तक चला। वामदलों का आरोप होता था कि कांग्रेस हमले व हत्या करा रही है।

1977 में जब वाममोर्चा की सरकार बनी तब कांग्रेस विपक्ष में रही। तब तक माकपा के लोगों पर हमले व हत्या के आरोप लगते रहे। 1998 में जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बनीं, तब तृणमूल का यही आरोप था कि माकपा हत्याएं करा रही है।

माकपा पर 50 हजार लोगों की हत्याओं का आरोप लगाती रही है कांग्रेस और तृणमूल

तृणमूल व कांग्रेस के कई नेता कहते हैं कि वाममोर्चा के 34 वषरें के शासन में 50,000 सियासी हत्याएं हुई थीं। 2011 के बाद जब तृणमूल सत्ता में आई, तब से तृणमूल पर हिंसक राजनीति के आरोप लग रहे हैं। पहले माकपा व कांग्रेस का आरोप होता था कि तृणमूल चुनाव जीतने के लिए हिंसा कर रही है। 2014 के बाद जब भाजपा का बंगाल में उत्थान हुआ तो अब भाजपा का वही आरोप सत्तारूढ़ दल तृणमूल पर है, जो कभी माकपा व कांग्रेस पर लगा करता था।

सत्ता बदली पर हिंसा का वही रंग

बंगाल में हिंसा की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि सत्ता के शिखर पर पहुंचते ही सत्तारूढ़ दल वही करने लगता है, जिसका उसने विरोध कर कुर्सी पाई थी। वाममोर्चा का किला ढहने की सबसे बड़ी वजह हिंसा ही रही है। हिंसा से ही ऊब कर लोगों ने सत्ता परिवर्तन किया था लेकिन आज भी स्थिति नहीं बदली। इस समय हालात ये हैं कि हर चुनाव में हिंसा हो रही है और आरोप सत्तारूढ़ दल पर लग रहा है। इस सियासी हिंसा में कई ऐसे मौके भी आए हैं, जब सरेआम कानून की खिल्ली उड़ी और पुलिस तमाशबीन बनी रही। यही वजह है कि बंगाल में तैनात किए गए विशेष चुनाव पर्यवेक्षक अजय वी नायक को कहना पड़ा कि राज्य पुलिस पर लोगों को भरोसा नहीं है।

सिंगुर-नंदीग्राम में हुई हिंसा सत्ता परिवर्तन का कारण बनी

34 वर्षो तक बंगाल की सत्ता पर काबिज रही माकपा ने नंदीग्राम व सिंगुर में हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया। उसी का नतीजा रहा कि उन्हें लोगों ने सत्ता से हटा दिया। अब भाजपा से लेकर कांग्रेस व अन्य दलों के नेता भी कह रहे हैं कि तृणमूल ने चुनावी हिंसा के मामले में कम्युनिस्टों को भी पीछे छोड़ दिया है। पंचायत चुनाव की हिंसा को भला कौन भूल सकता है।

बदस्तूर जारी है हिंसा का दौर

बंगाल में सियासी हिंसा के इतिहास पर गौर करें तो पता चलेगा कि वाममोर्चा के शासन में होने वाली राजनीतिक हिंसा की घटनाएं आज भी बदस्तूर जारी हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2016 में बंगाल में सियासी हिंसा की कुल 91 घटनाएं हुईं जबकि किसी न किसी रूप में 205 लोग इसका शिकार बने थे। 2015 में कुल 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जिनमें कुल 184 लोगों को नुकसान पहुंचा था। 2013 में सियासी झड़पों में कुल 26 लोगों की जानें गई थीं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.