सात वर्ष की उम्र में खेल के दौरान लगी रीढ़ में चोट, एक दशक से वेंटिलेशन पर जिंदगी की जंग लड़ रहा सोनू
18 वर्षीय सोनू को सात वर्ष की उम्र में खेलने के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। सोनू को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि यह चोट इतनी गंभीर होगी।
जागरण संवाददाता, कोलकाता । 18 वर्षीय सोनू को सात वर्ष की उम्र में खेलने के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। सोनू को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि यह चोट इतनी गंभीर होगी। अस्पताल में भर्ती नाबालिग सोनू अब बालिग हो गया लेकिन आज भी वह वेंटिलेशन पर जिंदगी की जंग लड़ रहा है।
सोनू यादव हावड़ा के सलकिया का रहने वाला है। वर्ष 2007 में खेलने के दौरान उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी। उसके बाद सोनू को बांगुर इंस्टीट्यूट आफ न्यूरो साइंस में भर्ती कराया गया था। जहां आज भी उसका इलाज चल रहा है। जांच में पता चला कि सोनू की चोट काफी गंभीर है। जांच के बाद आपरेशन भी किया गया लेकिन उससे कोई अधिक लाभ नहीं हुआ।
डाक्टरों ने बताया कि चोट लगने की वजह से श्वास लेने की प्रक्रिया को स्वभाविक रखने वाली नस बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है। डॉक्टरों का कहना है कि सोनू को वेंटिलेटर से हटाया नहीं जा सकता। तब से आइसीयू ही सोनू की दुनिया है। सबसे अहम बात यह है कि जिंदगी की इस कड़वी सच्चाई के बारे में सोनू जानता है। इसलिए उसने आइसीयू को अपनी दुनिया के रूप में स्वीकार कर लिया है।
सोनू का कहना है कि अस्पताल के लोग काफी अच्छे हैं। वे लोग उसे टॉम एंड जेरी और छोटा भीम कार्टून दिखाते हैं। पसंदीदा अभिनेता के बारे में पूछने पर सोनू ने बताया कि सलमान खान उसके फेवरेट है। अपने घर जाने की बात पर सोनू का कहना है कि वह घर तो जाना चाहता है लेकिन उसके सामने एक सवाल मंडराने लगता है कि जाएं तो जाएं कैसे?. सोनू के लिए वेंटिलेशन बहुत जरूरी है। अतएव उसके परिवार की माली हालत काफी लचर है। ऐसे में वे वेंटिलेशन का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। ऐसे ही तमाम सवालों के सामने सोनू की इच्छा दम तोड़ देती है।
11 साल वेंटिलेशन पर रहने के बाद भी सोनू की शारीरिक स्थिति स्थिर है। वह ठीक से बैठ नहीं सकता इसलिए व लेटे हुए ही पास के रोगियों से बातचीत करता है। सोनू कहता है कि इतने दिनों से अस्पताल में रहने की वजह से यहां के डाक्टरों और कर्मचारियों के साथ उसका रिश्ता काफी मजबूत हो गया है। सोनू के स्वास्थ्य के बारे में आइसीयू प्रमुख अनिता पहाड़ी बताती है कि यहां सोनू का काफी ख्याल रखा जाता है। उसके लिए हमेशा 24 घंटे डाक्टर उपलब्ध रहते हैं। क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही से खतरा बढ़ने की उम्मीद है।
इसलिए आकस्मिक खतरे से निपटने के लिए यह व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि अस्पताल के सभी लोग उससे प्यार करते हैं। कभी-कभी घर जाने के लिए सोनू जिद करता है तथा मां को याद करते हुए रोने लगता है। लेकिन उनके घर जाने के रास्ते में परिवार की आर्थिक तंगी रोड़ा बनकर सामने खड़ी हो जाती है। सोनू के परिवार की आर्थिक स्थिति वैसी नहीं है कि वे वेंटिलेशन का खर्च उठा सके। यद्यपि वह अपने बेटे को जिंदा देखकर ही खुश है। आज भी सोनू के परिवार की आंखे ऐसे शख्स की जुगत में है, जो उन्हें वेंटिलेटर मुहैया करा सके।