कोलकाता एयरपोर्ट के विस्तार को लेकर केंद्र के साथ ममता का रार
केंद्र की मोदी सरकार के साथ बंगाल की ममता सरकार का टकराव खत्म नहीं हो रहा।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : केंद्र की मोदी सरकार के साथ बंगाल की ममता सरकार का टकराव खत्म नहीं हो रहा। अब कोलकाता स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार को लेकर टकराव शुरू हो गया है। बंगाल सरकार ने एयरपोर्ट के विस्तार के लिए जमीन देने से साफ इन्कार कर दिया है। दरअसल, प्रतिवर्ष कोलकाता एयरपोर्ट पर यात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में यात्रियों की सुविधा के लिए एयरपोर्ट के विस्तार की आवश्यकता है। इसके लिए एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने कोलकाता के आसपास जमीन उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार से अनुरोध किया था, लेकिन कुछ दिन पहले बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने एयरपोर्ट अथॉरिटी के चेयरमैन अरविंद सिंह को साफ कह दिया कि कोलकाता में जमीन का प्रबंध करना संभव नहीं है। राज्य सरकार ने इसके बदले विकल्प के तौर पर दुर्गापुर में अंडाल एयरपोर्ट का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया लेकिन केंद्र इसे मानने को तैयार नहीं है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कहना है कि यह मुमकिन नहीं है, क्योंकि कोलकाता से अंडाल की दूरी काफी अधिक है। केंद्र व राज्य सरकार के बीच इस टकराव से अब कोलकाता एयरपोर्ट के विस्तार का मामला लटकता दिख रहा है। इस बारे में एयरपोर्ट अथॉरिटी का कहना है कि वह जमीन की व्यवस्था नहीं कर सकता। राज्य सरकार को ही इसकी व्यवस्था करनी होगी। -----------------
यात्रियों की संख्या के मद्देनजर विस्तार जरूरी
इस समय कोलकाता एयरपोर्ट के टर्मिनल की क्षमता सालाना दो करोड़ 60 लाख यात्रियों की है। इस समय दो करोड़ 30 लाख यात्री आवाजाही कर रहे हैं। कोलकाता एयरपोर्ट के निदेशक कौशिक भट्टाचार्य का कहना है कि आने वाले समय में वर्तमान टर्मिनल का ही विस्तार किया जाएगा। रनवे और टर्मिनल की क्षमता को थोड़ा बढ़ाया जा सकता है, जो कुछ वर्षों तक चल सकता है। उन्होंने कहा कि 2014 तक इस एयरपोर्ट से एक करोड़ यात्रियों की आवाजाही थी, जो पिछले पांच वर्षो में बढ़कर दोगुनी से अधिक हो गई है। एयरपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि अगर इसी तरह यात्रियों की संख्या बढ़ती रही तो एयरलाइंसों को जगह उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक एयरपोर्ट की आवश्यकता होगी। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद समेत कई बड़े शहरों में वैकल्पिक एयरपोर्ट की तैयारी का काम शुरू हो चुका है, सिर्फ कोलकाता को लेकर समस्या है। अरविंद सिंह का कहना है कि पिछले साल दिसंबर में ही केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस बाबत वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बंगाल के मुख्य सचिव से बात की थी। उस समय भी राज्य सरकार की ओर से जमीन नहीं देने की बात कही गई।
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कोलकाता से 180 किमी दूर है अंडाल
सिंह का कहना है कि विकल्प के तौर पर अंडाल के बारे में राज्य की ओर से कहा जा रहा है। वह कोलकाता से करीब 180 किलोमीटर दूर है। दुनिया में कहीं भी वैकल्पिक एयरपोर्ट तैयार हो रहा है तो उसकी दूरी मुख्य एयरपोर्ट से 50-60 किलोमीटर की होती है ताकि यात्रियों को मुख्य एयरपोर्ट से उतरकर वहां पहुंचने में सहूलियत हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि अंडाल विकल्प नहीं बन सकता है। वहीं, केंद्र के इस तर्क पर बंगाल सरकार ने कोलकाता से अंडाल तक हाई स्पीड कॉरीडोर बनाने का भी प्रस्ताव दिया है ताकि काफी कम समय से कोलकाता से अंडाल आ- जा सके, लेकिन सिंह का कहना है कि यह भी संभव नहीं है। केंद्र का कहना है कि हाई स्पीड कॉरीडोर के लिए भी जमीन चाहिए। साथ ही इसमें पैसा भी काफी लगेगा। एयरपोर्ट अथॉरिटी का आरोप है कि विस्तार के मुद्दे के समाधान के लिए जब उन्होंने मुख्य सचिव को फोन किया तो उन्होंने रिसीव नहीं किया, साथ ही मैसेज का भी कोई जवाब नहीं दिया।
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पहले भी जमीन अधिग्रहण को लेकर रही है खींचतान
यह पहली बार नहीं है, जब केंद्रीय योजनाओं के लिए ममता सरकार ने जमीन देने को लेकर हाथ खड़े किए हैं। इससे पहले उत्तर बंगाल के रायगंज में एम्स के लिए भी राज्य सरकार ने जमीन देने से मना कर दिया था। इसके बाद राज्य सरकार के मन मुताबिक इस परियोजना को नदिया जिले के कल्याणी में स्थानांतरित करना पड़ा, जहां एम्स का निर्माण जारी है। इसके अलावा डानकुनी-लुधियाना फ्रेड कॉरीोर का मामला भी जमीन के लिए लंबे समय तक अटका रहा, हालांकि बाद में राज्य सरकार दोगुनी भाव पर जमीन खरीदने को तैयार हुई। वहीं, कोलकाता में कई मेट्रो परियोजनाओं का काम भी जमीन अधिग्रहण के चलते अटका पड़ा है।
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भूमि आंदोलन से ही सत्ता की सीढ़ी चढ़ी हैं ममता
बंगाल में वामपंथी शासनकाल में किसानों से जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष करके ही ममता सत्ता की सीढ़ी चढ़ी हैं। उन्होंने सिंगुर व नंदीग्राम आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसके बाद 2011 में सत्ता पर काबिज हुईं। ममता पहले ही कह चुकी हैं कि वह जबरन जमीन अधिग्रहण नहीं करेंगी, हालांकि अपनी परियोजनाओं के लिए उन्होंने बाद में इस नीति में बदलाव किया लेकिन केंद्र के मामले में ममता का रूख अभी भी सख्त है।