जंगलमहल में फिर सक्रिय हो रहे है माओवादी!
- बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में माओवादियों की बढ़ती सक्रियता से सुरक्षाबलों की चिंताएं बढ़ी
- बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में माओवादियों की बढ़ती सक्रियता से सुरक्षाबलों की चिंताएं बढ़ी
- एक सशस्त्र गिरोह के विभिन्न इलाकों में देखे जाने के बाद जिला प्रशासन व खुफिया एजेंसियां सतर्क
जागरण संवाददाता, कोलकाता : अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में झारखंड से लगे सीमावर्ती जंगलमहल इलाके में माओवादियों ने एक बार फिर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। 2011 में शीर्ष माओवादी नेता किशनजी की मौत के बाद बंगाल में माओवादियों का सफाया हो गया था लेकिन जंगलमहल के नाम से कुख्यात पश्चिम मेदिनीपुर, झारग्राम, पुरुलिया व बांकुड़ा जिलो में करीब सात वर्षो की चुप्पी के बाद माओवादियों के दोबारा सक्रिय होने की खबरों ने सरकार व सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार, भूमिगत संगठन भाकपा (माओवादी) के पश्चिम बंगाल समिति के सचिव असीम मंडल उर्फ आकाश की अगुवाई में एक सशस्त्र गिरोह के विभिन्न इलाकों में देखे जाने के बाद जिला प्रशासन व खुफिया एजेंसियां सतर्क हो गई है। जानकारी के मुताबिक, इस साल जून और जुलाई में झारखंड में सुरक्षाबलों के सात जवानों की हत्या के बाद वहां माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज होने के बाद इस गिरोह के बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में शरण लेने का अंदेशा है। वहीं, अब माओवादी नेता आकाश के नेतृत्व में इलाके में माओवादी एक बार फिर लामबंद होने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, 2011 में सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में किशनजी समेत कई शीर्ष नेताओं के मारे जाने के बाद आकाश संगठन की पश्चिम बंगाल समिति का अकेला जीवित सदस्य है।
इधर, गौर करने वाली बात यह भी है कि पिछले दिनों इस इलाके का दौरा करने वाले केंद्रीय रिर्जव पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक राजीव भटनागर ने भी माना था कि राज्य के पश्चिमी इलाकों में माओवादी गतिविधियां तेज हुई है। उन्होंने यहां तक कहा था कि झारग्राम में माओवादियों के दोबारा लामबंद होने की खबरें भी मिल रही है। पहले बंगाल के चार जिले माओवाद प्रभावित जिलों की सूची में थे लेकिन केंद्र की ओर से जारी ताजा सूची में केवल झारग्राम का ही नाम है।
दूसरी तरफ, इस साल मई में हुए पंचायत चुनाव में जंगलमहल के सीमावर्ती इलाकों में भाजपा को बड़ी कामयाबी मिली थी। उसके बाद इस इलाके में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हिंसक संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी है। खासकर झारग्राम व पुरुलिया में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जंगलमहल इलाके में बने नए राजनीतिक समीकरणों का माओवादी फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। वहीं, एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि 1990 के दशक के आखिर में भी इस इलाके में इसी तरह के राजनीतिक फेरबदल की वजह से माओवादियों को अपने पांव जमाने में सहायता मिली थी। 2010-11 के दौरान तो किशनजी के नेतृत्व में माओवादियों ने झारग्राम के अलावा पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया व बांकुड़ा के ज्यादातर हिस्सों पर अपनी पकड़ बना ली थी। हालांकि किशनजी की 2011 में मौत के बाद इस क्षेत्र में सक्रिय माओवादी संगठन रातों रात बिखर गया था।