ईश्वर चंद्र विद्यासागर को श्रद्धा करनी है तो भारतीय संस्कृति के प्रति रखें निष्ठा: प्रहलाद सिंह पटेल
Ishwar Chandra Vidyasagarभारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा होगी पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर को सच्ची श्रद्धांजलि। केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने यह विचार व्यक्त किया।
कोलकाता, जागरण संवादाता। Ishwar Chandra Vidyasagar birth anniversary: भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा होगी पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर को सच्ची श्रद्धांजलि। केंद्रीय संस्कृति मंत्री प प्रहलाद सिंह पटेल ने यह विचार व्यक्त किया। पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की 200वीं जयंती के अवसर पर भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में पहुंचे पटेल ने विद्यासागर जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर उनके प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर को वास्तव में श्रद्धा नमन करना है तो हमें भारतीय संस्कृति के प्रति पूरी निष्ठा रखनी होगी। पटेल ने पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर को महान समाज सुधारक बताया।
उनके महान कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने के लिए बड़ा आंदोलन चलाया, लेकिन उसमें यदि ईश्वर चंद्र विद्यासागर आगे नहीं आते तो आंदोलन शायद सफल नहीं होता। इस अवसर पर प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी अरविंद मेनन, महासचिव संजय सिंह, जिला नेता राजेश राय सहित अन्य कई नेता व कार्यकर्ता उपस्थित थे। सभी ने पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की तस्वीर पर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।
पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर को महान समाज सुधारक
विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को मेदिनीपुर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह स्वतंत्रता सेनानी भी थे। ईश्वरचंद्र को गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने नारी शिक्षा और विधवा विवाह कानून के लिए आवाज उठाई और अपने कार्यों के लिए समाज सुधारक के तौर पर पहचाने जाने लगे, लेकिन उनका कद इससे कई गुना बड़ा था। उन्हें बंगाल में पुनर्जागरण के स्तंभों में से एक माना जाता है। उनके बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध ज्ञान होने के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज ने उन्हें 'विद्यासागर' की उपाधि प्रदान की थी। इसके बाद से उनका नाम ईश्वर चंद्र विद्यासागर हो गया था।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने इन स्कूलों को चलाने में आने वाले पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। स्कूलों के खर्च के लिए वह विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बांग्ला भाषा में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाते थे।
वर्ष 1855 ई. में जब उन्हें स्कूल-निरीक्षक/इंस्पेक्टर बनाया गया तो उन्होंने अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले जिलों में बालिकाओं के लिए स्कूल सहित अनेक नए स्कूलों की स्थापना की थी। वे विधवा-पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक थे।विधवा-पुनर्विवाह एवं स्त्री शिक्षा के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया था।उन्होंने संस्कृत कॉलेज में आधुनिक पश्चिमी विचारों का अध्ययन आरम्भ कराया था।विधवा-पुनर्विवाह को क़ानूनी वैधता प्रदान करने वाले अधिनियम को पारित कराने वालों में एक नाम उनका भी था।उन्होंने बंगाली भाषा के विकास में भी योगदान दिया था और इसी योगदान के कारण उन्हें आधुनिक बंगाली भाषा का जनक माना जाता है।