बंगाल में कोरोना मरीजों की बढ़ती तादाद के मुकाबले अस्पतालों में बेड की भारी कमी
आंकड़ों के लिहाज से राज्य में कोरोना के मरीजों का इलाज करने के लिए कुल 81 अस्पताल हैं इनमें से 27 सरकारी हैं और इसके दोगुने यानी 54 निजी अस्पताल।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। पश्चिम बंगाल में कोरोना मरीजों की बढ़ती तादाद के मुकाबले अस्पतालों में बेड की कमी हो गई है। संक्रमितों और स्वस्थ होने वालों के आंकड़ों में अंतर बढ़ने की वजह से ज्यादातर अस्पतालों में कोई बिस्तर खाली नहीं है। आंकड़ों के लिहाज से राज्य में कोरोना के मरीजों का इलाज करने के लिए कुल 81 अस्पताल हैं। इनमें से 27 सरकारी हैं और इसके दोगुने यानी 54 निजी अस्पताल।
इनमें कुल 11,239 बेड हैं। लेकिन पॉजीटिव मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ने की वजह से इनको कहीं बिस्तर नहीं मिल रहा है। नतीजतन हल्के या बिना लक्षण वाले मरीजों को या तो घर में होम क्वारंटाइन की सलाह दी जा रही है या फिर उन्हें सरकारी क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया जाता है। सरकार ने ऐसे मरीजों के लिए कुछ सेफ हाउस भी बनाए हैं, जिनके घर में होम क्वारंटाइन संभव नहीं है। कोलकाता के तमाम कोविड अस्पतालों को जोड़ लें, तो आईसीयू के महज 948 बेड हैं, जबकि वेंटिलेटरों की संख्या महज 395 है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कम तादाद में आईसीयू और वेंटिलेटरों के साथ इस महामारी का मुकाबला संभव नहीं है।
मामला बेकाबू होता देख कर सरकार ने अब कुछ निजी व सरकारी अस्पतालों को बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की सलाह दी है। लेकिन मरीजों के मुकाबले यह तादाद ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है।विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने शुरुआत से ही कोरोना से निपटने की कोई ठोस योजना नहीं बनाई।कभी अचानक अनलॉक, तो कभी सप्ताह में दो दिन सख्त लॉकडाउन जैसे फैसलों से साफ है कि वह तय नहीं कर पा रही है कि संक्रमण रोकने के लिए क्या करना चाहिए।
उसने बार-बार कई कमिटियों का गठन किया और कई बार प्रोटोकॉल में बदलाव किया।इसके अलावा मरीजों के इलाज और मृतकों के अंतिम संस्कार की कोई ठोस प्रक्रिया नहीं बनाई गई। इसी वजह से राज्य में मृतकों के परिजनों की नाराजगी अकसर सामने आती रहती है। विशेषज्ञ डॉक्टर कहते हैं, "सरकार की पिछली गलतियों से सबक लेकर अब भी कमियों को दुरुस्त करने की पहल करनी चाहिए। लेकिन फिलहाल सरकार के रवैए से इसका कोई संकेत नहीं मिल रहा है।" उनका कहना है कि सरकार रोजाना मरीजों और मृतकों के आंकड़े बता कर ही अपनी जिम्मेदारी खत्म मान लेती है। ऐसे में आम लोग लंबे समय तक स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का खामियाजा भुगतने के लिए अभिशप्त रहेंगे।