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चार राज्यों में BJP की बंपर जीत से कैसे बिगड़ गया ममता-केसीआर का खेल

आंध्र प्रदेश के जगनमोहन रेड्डी हों या फिर ओडिशा के नवीन पटनायक ये दोनों नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन करते रहे हैं। ऐसे में कोई दिक्कत नहीं होने वाली है। यह भी ममता और केसीआर को पता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 15 Mar 2022 12:07 PM (IST)Updated: Tue, 15 Mar 2022 12:07 PM (IST)
चार राज्यों में BJP की बंपर जीत से कैसे बिगड़ गया ममता-केसीआर का खेल
उम्मीदों पर फिरा पानी : ममता बनर्जी और के. चंद्रशेखर राव। फाइल

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। आगामी राष्ट्रपति चुनाव को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी बड़े ही सुनियोजित तरीके से गोटियां सजा रही थीं। उन्होंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) समेत विभिन्न क्षेत्रीय दलों के नेताओं से बातचीत कर इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को एकजुट करना शुरू कर दिया था। ममता अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के अनुसार रणनीति बना रही थीं। परंतु भाजपा के पक्ष में लोगों के जनादेश से उनकी पूरी रणनीति को पलीता लग गया।

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ममता से चर्चा करने के बाद लामबंदी के लिए केसीआर ने मुंबई से लेकर झारखंड तक का दौरा किया था। पर जिस तरह से चार राज्यों में भाजपा की वापसी हुई, उससे ममता-केसीआर का पूरा खेल ही बिगड़ गया। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में जीत के साथ ही वोटों के मामले में भाजपा सहयोगी दलों के साथ इतनी मजबूत हो गई है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने में दिक्कत नहीं होगी।

वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में कांग्रेस की सीटें काफी कम हो गई हैं। पंजाब में जहां कांग्रेस की सीटें कम हुई हैं, वहीं आम आदमी पार्टी (आप) का उदय हुआ है। बावजूद इसके भाजपा इस स्थिति में है कि सभी क्षेत्रीय दल एकजुट हो जाएं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति चुनाव में सांसद और विधायक मतदान करते हैं, जिसमें कुल वोटों की संख्या 10,98,882 है। किसी को राष्ट्रपति बनाने के लिए 5,49,442 वोट चाहिए। लोकसभा में भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है। आगामी कुछ दिनों में छह राज्यों की 13 राज्यसभा सीटों के लिए भी चुनाव होना है। इन राज्यों की (पंजाब को छोड़कर) विधानसभाओं में भाजपा विधायकों की जितनी संख्या है, उससे वह अधिकांश राज्यसभा सीटें जीत सकती है। इसके बाद राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 100 के पार पहुंच जाएगी और राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटों की संख्या भी बढ़ जाएगी।

10 मार्च के पहले तक ममता-केसीआर को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में भाजपा हारेगी और राष्ट्रपति चुनाव से ही पासा पलट जाएगा। वोट कम होने पर भगवा कैंप को क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मदद के लिए बात करनी होगी। ऐसे में क्षेत्रीय दलों को अपनी पसंद के उम्मीदवार के लिए भाजपा के साथ सौदेबाजी का मौका मिल जाएगा। यही वजह थी कि ममता केसीआर से लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार से बात कर विपक्षी एकता पर जोर दे रही थीं। वहीं केसीआर विपक्षी दलों को एकजुट करने के सिलसिले में पहले मुंबई गए, जहां महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री व शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और फिर झारखंड जाकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी। इसी उम्मीद के साथ ही दिल्ली में 10 मार्च के बाद राजग विरोधी क्षेत्रीय दलों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने की भी तैयारी थी, ताकि विपक्ष को एकजुट कर राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा पर दबाव बनाया जा सके। पर ऐसा न हो सका। 

दूसरी ओर इन नतीजों ने राष्ट्रपति चुनाव ही नहीं, तृणमूल सुप्रीमो के विपक्ष का चेहरा बनने की उम्मीदों को भी तगड़ा झटका दिया है। इसकी सबसे बड़ी वजह पंजाब में आप की जीत है। इससे अरविंद केजरीवाल का राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ गया है। पिछले आठ माह से कांग्रेस के विकल्प और विपक्ष के मुख्य चेहरे के रूप में तृणमूल की ओर से ममता को प्रचारित किया जा रहा था। बंगाल में भाजपा के विजय रथ को रोकने के बाद से तृणमूल सुप्रीमो विपक्ष के चेहरे के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन अब दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ दल के नेता के रूप में केजरीवाल ममता को पछाड़ सकते हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि एक तो वह हिंदी भाषी, आइआइटी इंजीनियर और पूर्व राजस्व अधिकारी हैं, दूसरा दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को हटाकर सत्ता में आए हैं। इसीलिए ममता के लिए कांग्रेस का विकल्प बनने का रास्ता बंद होने लगा है।

राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल


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