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West Bengal Post-poll violence case: चुनाव बाद हिंसा की सीबीआइ जांच के आदेश, कलकत्ता हाई कोर्ट से ममता सरकार को बड़ा झटका

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की घटनाओं की अदालत की निगरानी में CBI जांच का आदेश दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़ितों को मुआवजा देने का भी निर्देश दिया है।

By Priti JhaEdited By: Published: Thu, 19 Aug 2021 09:34 AM (IST)Updated: Thu, 19 Aug 2021 06:38 PM (IST)
West Bengal Post-poll violence case: चुनाव बाद हिंसा की सीबीआइ जांच के आदेश, कलकत्ता हाई कोर्ट से ममता सरकार को बड़ा झटका
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने राज्य में चुनाव बाद हिंसा की जांचकर उसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी थी।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। West Bengal Post-poll violence case: बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा मामले में गुरुवार को ममता सरकार को कलकत्ता हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा। हाई कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने हिंसा की निष्पक्ष जांच की मांग वाली जनहित याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाते हुए चुनाव बाद हिंसा मामले में हत्या एवं दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों की सीबीआइ जांच के आदेश दिए। इसके अलावा हिंसा से जुड़े अन्य मामलों की जांच के लिए कोर्ट ने एक विशेष जांच दल (एसआइटी) का भी गठन किया है। एसआइटी हिंसा के दौरान लूट, आगजनी, तोड़फोड़, हमले व अन्य मामलों की जांच करेगा।

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कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि दोनों जांच अदालत की निगरानी में की जाएगी। पीठ ने केंद्रीय एजेंसी से आगामी छह हफ्ते में अपनी जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को हिंसा पीड़ितों को अविलंब क्षतिपूर्ति देने का भी निर्देश दिया है। मुआवजा राशि पीड़ितों के सीधे बैंक खाते में देने को कहा है।बता दें, तीन अगस्त को हाई कोर्ट ने हिंसा से संबंधित जनहित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

हत्या, दुष्कर्म समेत अन्य गंभीर मामलों की जांच करेगी सीबीआइ

फैसले में कहा गया है कि हत्या, दुष्कर्म, संदिग्ध मौत सहित अन्य गंभीर मामलों की जांच सीबीआइ करेगी, जबकि अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण मामले की जांच एसआइटी करेगा। जांच कमेटी अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट को देगी।इसके लिए एक अलग खंडपीठ का भी गठन किया है।एसआइटी जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के एक अवकाशप्राप्त न्यायाधीश करेंगे।

तीन वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी एसआइटी के सदस्य

अदालत द्वारा गठित तीन सदस्यीय एसआइटी में बंगाल कैडर के तीन वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी को शामिल किया गया है।कोलकाता पुलिस के आयुक्त सोमेन मित्रा, बंगाल पुलिस में महानिदेशक (दूरसंचार) सुमन बाला साहु और आइपीएस रणवीर कुमार इसके सदस्य होंगे। एसआइटी हिंसा के दौरान लूट, आगजनी व अन्य मामलों की जांच करेगा।

हिंसा के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार, राज्य सरकार के इस दावे को किया खारिज

- बंगाल सरकार का यह तर्क कि चुनाव आयोग हिंसा के लिए जिम्मेदार था, क्योंकि तीन मई, 2021 तक चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण पुलिस उसके अधीन थी, इसको अदालत ने खारिज कर दिया। पीठ ने अपने फैसले में कहा, यह तर्क एकमुश्त खारिज करने के योग्य है। सिविल या पुलिस प्रशासन चुनाव प्रक्रिया के दौरान केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग के नियंत्रण में है। इसका मतलब यह नहीं है कि पुलिस कानून और व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए अपने सामान्य कर्तव्यों का निर्वहन बंद कर देती है।

मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को कोर्ट ने माना

पीठ ने राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के दौरान मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच के लिए 18 जून को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के चेयरमैन को एक विशेष समिति बनाकर जांच का आदेश दिया था‌‌। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में ममता बनर्जी सरकार को हिंसा के लिए दोषी माना था।उसने अपनी सिफारिशों में कहा था कि दुष्कर्म व हत्या जैसे मामलों की जांच सीबीआइ से कराई जाए और इन मामलों की सुनवाई बंगाल के बाहर हो। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अन्य मामलों की जांच भी कोर्ट की निगरानी में एसआइटी से कराई जानी चाहिए। मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को मान्यता देते हुए हाई कोर्ट ने कहा है कि शीघ्र ही हिंसा से संंबंधित मामले को सीबीआइ को स्थानांतरित कर दे।कोर्ट ने राज्य पुलिस व सरकार को हिंसा की जांच से संबंधित सभी दस्तावेज भी सीबीआइ को अविलंब मुहैया कराने को कहा है।

हिंसा पर मानवाधिकार आयोग की समिति ने की थी गंभीर टिप्पणी

गौरतलब है कि राजीव जैन की अध्यक्षता वाली समिति और एनएचआरसी के कई दलों ने बंगाल के विभिन्न इलाकों का दौरा कर शिकायतों की सच्चाई का पता लगाया। इसके बाद एनएचआरसी की समिति ने 13 जुलाई को हाई कोर्ट में सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट में बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति पर तल्ख टिप्पणी की थी। समिति ने कहा था कि भारी जनादेश के साथ जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार ने आंखें मूंद लीं थी, जब उसके समर्थक प्रतिद्वंद्वी भाजपा कार्यकर्ताओं पर अत्याचार किया और कथित तौर पर हिंसा में लिप्त थे।समिति ने यहां तक कहा था कि बंगाल में कानून का शासन नहीं बल्कि शासक का कानून है। बंगाल सरकार ने हालांकि आरोपों को बेतुका, निराधार और झूठा करार दिया था और कहा कि एनएचआरसी समिति का गठन “सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ पूर्वाग्रह से भरा” था। गौरतलब है कि दो मई को विधानसभा परिणामों की घोषणा के बाद, बंगाल के कई शहरों में हिंसा की घटनाएं हुई थी।

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भाजपा ने फैसले का किया स्वागत, बंगाल सरकार जाएगी सुप्रीम कोर्ट

- चुनाव बाद हिंसा मामले में हाई कोर्ट के फैसले का भाजपा ने स्वागत किया है। बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि चुनाव बाद हिंसा की घटनाएं लज्जाजनक हैं। इस फैसले से हिंसा पीड़ितों को न्याय और दोषियों को कड़ी सजा मिलेगी।भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश ने राज्य सरकार की पोल खोल दी है। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद व प्रवक्ता सौगत राय ने कहा कि मैं फैसले से नाखुश हूं। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, इसमें बार-बार सीबीआइ का हस्तक्षेप ठीक नहीं है। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए कि राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी।इधर, हाई कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार के अधिवक्ताओं की टीम की भी बैठक हुई है, इसमें फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया गया है। दूसरी ओर वादी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दिया है, ताकि एकतरफा सुनवाई न हो। बता दें कि बंगाल सरकार की ओर से हिंसा की घटनाओं की सीबीआइ जांच का विरोध किया गया था। ऐसे में हाई कोर्ट का यह फैसला उसके लिए बड़ा झटका है।

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