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वंदे मातरम पर गूगल भी गलत, एेतिहासिकता से हो रहा है खिलवाड़

वंदेमातरम पर हुए शोध के अनुसार इस गीत की ऐतिहासिकता से खिलवाड़ हो रहा है गूगल के अनुसार इसकी रचना 24 परगना जिले के कांतलपाड़ा गांव में हुई थी।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 11:19 AM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 11:31 AM (IST)
वंदे मातरम पर गूगल भी गलत, एेतिहासिकता से हो रहा है खिलवाड़
वंदे मातरम पर गूगल भी गलत, एेतिहासिकता से हो रहा है खिलवाड़

कोलकाता, प्रकाश पांडेय। अगर आप भारतीय हैं और शब्दों में रोमांच तलाश रहे हैं तो वंदे मातरम गाकर देखिए। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित हमारे राष्ट्रगीत को बीबीसी के सर्वेक्षण में पूरी दुनिया में दूसरा सबसे पसंदीदा गीत पाया गया है। इसका एक-एक शब्द और इससे जुड़ा एक-एक तथ्य भारतीयों के लिए क्या मायने रखता है, यह बताने की जरूरत नहीं है, हालांकि कुछ शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि वंदे मातरम गीत की ऐतिहासिकता के साथ खिलवाड़ हो रहा है। गूगल देखें और इतिहास खंगालें तो मिलता है कि इसकी रचना कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले के कांतलपाड़ा गांव में की गई थी जबकि लालगोला बंकिम स्मृति समिति के अध्यक्ष सुकुमार साहा का दावा है कि यह तथ्य गलत है।

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बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने यह रचना मुर्शिदाबाद के लालगोला में की थी। 1870 से 80 के दशक में अंग्रेजी हुकूमत ने देशभर में ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत को अनिवार्य कर दिया था। इस फैसले से खफा होकर बंकिम बाबू ने 1876 में वंदे मातरम गीत की रचना की थी, जिसे 1881 में उन्हीं के द्वारा रचित उपन्यास ‘आनंद मठ’ में समाहित व विस्तारित किया गया। दावे के समर्थन में पेश किए सबूत अपने दावे के समर्थन में सुकुमार साहा ने कहा कि रचनाकाल का आकलन करें तो पता चलता है कि वंदे मातरम की रचना से लेकर आनंद मठ की रचना तक बंकिम बाबू लालगोला में थे। लालगोला महाराज के जिस अतिथिगृह में उन्होंने इसकी रचना की थी, वह आज भी इसका गवाह है। उन्होंने उपन्यास में दर्ज कई स्थलों व तथ्यों के लालगोला में होने का भी दावा किया।

जारी है शोध

समिति के अनुरोध पर सुमन मित्रा नामक शोधकर्ता इसपर अनुसंधान कर रहे हैं। सुमन ने खुद भी उक्त अतिथिगृह का दौरा किया है। राज्य सरकार की अनदेखी के चलते जर्जर हो चुके अतिथिगृह की हालत से दुखी सुमन ने कहा कि यहां की दीवारें इस ऐतिहासिक तथ्य की गवाह हैं। गौरतलब है कि इस दावे की सत्यता की जांच का काम सबसे पहले विनय मित्र नामक व्यक्ति ने शुरू किया था, हालांकि बीच में ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके बाद सुकुमार साहा ने लालगोला बंकिम स्मृति समिति का गठन कर उनके काम को आगे बढ़ाया। 

शोधकर्ता की मानें तो...

शोधकर्ता सुमन मित्र की मानें तो 15 दिसंबर, 1873 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय बहरमपुर के डिप्टी कलेक्टर नियुक्त हुए। एक दिन वह अपनी पालकी से बैरक स्क्वायर ग्राउंड पहुंचे। वहां कर्नल डफीन अपने साथियों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे। उनकी पालकी के मैदान में आने से खफा डफिन ने बंकिम चंद्र को जोर का तमाचा मारा। बंकिम चंद्र ने डफीन के खिलाफ कोर्ट में मामला कर दिया। 16 दिसंबर, 1873 को वहां बतौर अतिथि मौजूद लालगोला के राजा राव श्री जगेंद्र नारायण रॉय की गवाही पर डफीन को दोषी करार दिया गया। 12 जनवरी, 1874 को बंकिम चंद्र मामला जीत गए व डफीन को माफी मांगनी पड़ी। बदले की आग में जल रहे डफीन ने बंकिम चंद्र की हत्या की साजिश रची लेकिन उन्हें इसकी सूचना मिल गई।

बंकिम चंद्र छुट्टी लेकर 3 फरवरी, 1874 को लालगोला के राजा राव श्री जगेंद्र नारायण रॉय के यहां चले आए। राजा साहब ने उन्हें जिस अतिथिगृह में रखा था, उसके बगल में नदी बहती थी और तट पर ही मां काली का मंदिर था। यह मंदिर लालगोला के स्मृति मार्ग में आज भी मौजूद है। बंकिम चंद्र अक्सर वहां जाया करते थे। मंदिर में मां काली की जंजीरों से जकड़ी प्रतिमा उन्हें दुखी कर देती थी। उन्होंने जब पुजारी से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मां की प्रतिमा लगातार धंस रही है इसलिए उनकी कमर में जंजीर बांध दी गई है। प्रतिमा देख उन्हें भारत माता के जंजीरों में जकड़े होने का ख्याल आता। सुमन का दावा है कि इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने पहले वंदे मातरम और फिर आनंद मठ की रचना लालगोला के उक्तअतिथिगृह में की।

जब बना मंत्र

बंगाल के विभाजन के समय हिंदू और मुसलमान दोनों ही इस गीत को पूरा गाते थे। 1906 से 1911 तक इस मंत्र ने लोगों को इतनी ज्यादा ताकत दी कि उनके जोश को देखते हुए अंग्रेजों को बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। कितने ही क्रांतिकारियों ने वंदे मातरम कहकर फांसी के फंदे को चूमा। सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने इस गीत को आत्मसात किया था।

वंदे मातरम का अर्थ

इसके दो छंदों का अर्थ- मैं आपकी वंदना करता हूं माता। आपके सामने नतमस्तक होता हूं। पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शांत, कटाई की फसलों के साथ गहरी। उसकी रातें चांदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं। उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है। हंसी की मिठास, वाणी की मिठास। माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।

राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह गीत गाया गया। उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे रहीमतुल्ला सयानी। अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेजी में और आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया।

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