Kolkata Durga Puja 2020: यहां भगवान शिव की गोद में विराजती हैं देवी दुर्गा!
कोलकाता के लाहाबाड़ी की दुर्गापूजा है बेहद अनूठी जगत जननी के रूप में की जाती हैं उनकी पूजा लाहाबाड़ी की दुर्गा प्रतिमा का निर्माण जन्माष्टमी के दो-तीन दिन बाद से ही शुरू हो जाता है। लाहाबाड़ी की कुलदेवी अष्ट धातु की बनी सिंहवाहिनी हैं।
कोलकाता , राज्य ब्यूरो। कोलकाता के लाहाबाड़ी की दुर्गापूजा अनूठी है। यहां देवी दुर्गा भगवान शिव की गोद में विराजती हैं और जगत जननी के रूप में पूजी जाती हैं। लाहाबाड़ी की दुर्गा प्रतिमा का निर्माण जन्माष्टमी के दो-तीन दिन बाद से ही शुरू हो जाता है। सबसे पहले मिट्टी से छोटे गणेश का निर्माण कर उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद जब भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा तैयार की जाती है तो छोटे गणेश को बड़े गणेश के पेट में घुसा दिया जाता है।
लाहाबाड़ी की कुलदेवी अष्ट धातु की बनी सिंहवाहिनी हैं। मिट्टी की दुर्गा प्रतिमा के साथ चार दिन उनकी भी पूजा होती है। लाहाबाड़ी की दुर्गा प्रतिमा की 10 भुजाएं नहीं होतीं, वे हर गौरी के रूप में हैं और भगवान शिव की गोद में विराजती हैं। अष्टधातु की मूर्ति का नाम 'जय जय मां' है। पूजा के दिनों में ठाकुर घर से निकालकर उनकी पूजा की जाती है। पूजा खत्म होने के बाद उन्हें फिर से ठाकुर घर में रख दिया जाता है।
लाहाबाड़ी को लेकर कथा प्रचलित है कि अष्टधातु की मूर्ति को डकैत जंगल में फेंककर चले गए थे। काफी दिनों तक मूर्ति जंगल में पड़ी हुई थी। लाहा परिवार के प्रमुख नव कृष्ण लाहा की पत्नी को देवी दुर्गा ने सपने में आकर जंगल से उनकी मूर्ति को लाहाबाड़ी में लाकर प्रतिष्ठित करने का आदेश दिया था। तब से लाहाबाड़ी में उनकी पूजा हो रही है। लाहाबाड़ी की पूजा 226 साल पुरानी है।षष्ठी के दिन बोधन के समय कुलदेवी सिंहवाहिनी को चांदी के सिंहासन में विराजमान कर उनकी पूजा की जाती है। वैष्णव परिवार होने के कारण यहां पशु बलि की प्रथा नहीं है बल्कि कुम्हड़ा और खीरे की बलि दी जाती है।
लाहाबाड़ी की अष्टमी की संधि पूजा भी काफी मशहूर है। जब तक संधि पूजा चलती है, तब तक लाहाबाड़ी की महिलाएं दोनों हाथों में और सिर पर मिट्टी के पात्र में धूनि जलाकर रखती हैं। पूजा में भोग के तौर पर केवल मिठाइयां दी जाती हैं। 21 तरह की मिठाइयों का भोग चढ़ाया जाता है।