पर्यावरण: ध्वनि प्रदूषण से बढ़ रहा बहरापन, शोर के कारण लोग हो रहे चिड़चिड़ाहट के शिकार
ध्वनि प्रदूषण की गंभीरता इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसको लेकर पूरे विश्व को चिंता है।
सिलीगुड़ी, अशोक झा। पांच जून को विश्व दिवस है। इसको लेकर सरकार, प्रशासन और स्वयंसेवी संगठन अपने अपने तरीकों से जनजागरूकता अभियान चलाएंगे। उसके बाद यह फिर एक वर्ष के लिए फाइलों में दफन हो जाएगा। वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण तो बार-बार नजर भी आ रहे है लेकिन एक और तरह का प्रदूषण भी इनमें कम खतरनाक नहीं है वह है ध्वनि प्रदूषण। प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ध्वनि प्रदूषण।
ध्वनि प्रदूषण से आज पूवरेत्तर के इस प्रवेश द्वार पर युवा को छोड़िए स्कूली बच्चे बहरापन के शिकार हो रहे है बल्कि वे मानसिक तनाव सहित अन्य शारीरिक परेशानियों से ग्रसित हो रहे है। ध्वनि प्रदूषण की गंभीरता इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसको लेकर पूरे विश्व को चिंता है।
यही कारण है कि पूरे विश्व में 26 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय ध्वनि प्रदूषण चेतना दिवस के रुप में मनाया जाता है। वाहनों के हॉर्न, औद्योगिक और शहरी ध्वनि प्रदूषण से होने वाले तेज शोर के कारण तेजी से बहरापन सामाजिक समस्या बन गयी है। संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था नैफ के संयोजक अनिमेष बसु और यातायात डीसीपी सुनील कुमार यादव का कहना है कि कार्रवाई तो हो रही है परंतु इसपर काबू नहीं पाया जा रहा है। इसके लिए जरुरी है जन जागरुकता अभियान का।
क्या है ध्वनि प्रदूषण: शोर व ध्वनि प्रदूषण से आशय है अनावश्यक, अनुपयोगी, असुविधाजनक कर्कश ध्वनि। शोर प्रदूषण दो प्रकार के होते है। प्राकृतिक व कृत्रिम। बादलों का गरजना, नदियों व झरनों का शोर, तूफान व भूकंप से होने वाले शोर प्राकृतिक शोर यानि प्रदूषण के स्त्रोत है। मानव कृत शोर में वाहन, कारखाने, धार्मिक आयोजन, उच्च क्षमता के गीत, संगीत,रेडियो, म्यूजिक प्लेयर, हॉर्न आतिशबाजी, लाउडस्पीकर आदि प्रमुख है। शोर का दुष्प्रभाव कान पर होता है।
औद्योगिकीकरण ने हमारे स्वास्थ्य औ जीवन को खतरे में डाल दिया है। क्योंकि सभी बड़े छोटे शहरों में उद्योग मशीनों का प्रयोग करते है। इसकी आवाज तेज होती है। कारखानों व उद्योगो में प्रयोग होने वाले उपकरण जैसे कम्प्रेशर, जेनरेटर, गर्मी निकालने वाले पंखे, मिल आदि है। इसके अलावा सामान्य सामाजिक उत्सव जैसे-शादी, पार्टी, पब, क्लब,डिस्क, पूजा स्थल, मंदिर मस्जिद में से निकलने वाले ध्वनि आवासीय इलाकों में शोर उत्पन्न करते है। शहरों मं यातायात के साधन, बाइक हवाईजहाज, ट्रेनों का आवागमन तेज शोर शोर मचाते है।
सामान्य निर्माणी गतिविधियों पर ध्यान दे तो भवनों, पुलों, खानों बांधों स्टेशन, भवन निर्माण में लगने वाले यंत्र भी ध्वनि प्रदूषण फैलाते है। यह सिद्ध हो गया है कि ध्वनि प्रदूषण भी वायु प्रदूषण का हिस्सा है। ध्वनि प्रदूषण अब औद्योगिक शहरीकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। इतना ही नहीं ध्वनि प्रदूषण के कारण पशुओं में भी तनाव पैदा करता है। इसके कारण कई पशु पक्षियां विलुप्त हो रहे है। कुछ विषेष प्रजाति की मछलियों की तो मृत्यु हो रही है।
इससे पड़ने वाले प्रभाव : डाक्टर पीएन सिन्हा का कहना है कि क्योंकि ध्वनि प्रदूषण श्रवण शक्ति का हस होता हे। इसके कारण चिडचिडापन, बहरापन, चमड़ी पर सरसराह, उल्टी जी मितलाना, चक्कर आना, और स्पर्श की कमी महसूस करने लगता है। यह ध्वनियों में रक्त प्रवाह को प्रभावित कर ह्दय संचालन की गति को तीव्र कर देता है। लगातार शोर खून के कोलस्ट्रोल की मात्र बढ़ा देता है। यह रक्त नलियों को सिकोड़ देता है। जिससे ह्दय रोगों की संभावना बढ़ जाती है। इसके कारण स्नायविक बीमारी, नर्वसब्रेक डाउन करता है।
शोर हवा के माध्यम से संचरण करता है। ध्वनि तीव्रता को नापने की निर्धारित इकाई को डेसीबल कहते है। कहते है कि 100 डेसीबल से अधिक की ध्वनि हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है। शहरों में 45 डेसीबल की ध्वनि को आदर्श माना है जबकि शहर में इन दिनों ठीक दोगुणा यानि 80 से 90 डेसीबल से अधिक मापा गया है। जानकारों की माने तो औद्योगिक क्षेत्रों में भी इसकी मात्र 75 डेसीबल होनी चाहिए। आवासीय क्षेत्रों में इसकी मात्र 55 डेसीबल होनी चाहिए। अस्पताल, पुस्तकालय, शिक्षण संस्थान, आदि को साइलेंट जोन बनाया गया है। यहां हॉर्न या शोर नहीं मचाना है।
नियमों का नहीं हो रहा पालन : में असुरक्षित आवाज के स्तर पर नियंत्रित करने के लिए लोगों के बीच में समान्य जागरुकता को बढ़ाना चाहिए। प्रत्येक नागरिक के द्वारा सभी नियमों को गंभीरता से माना जाना चाहिए। घर में या घर के बाहर जैसे क्लब, पार्टी, बार, डिस्को आदि में अनावश्यक शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों के प्रयोग को कम करना चाहिए। भारत के संविधान में जीवन जीने, सूचना प्राप्त करने, अपने धर्म को मानने और शोर करने के अधिकार प्रदान किए है।