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सारधा चिटफंट फंड घोटाले में ईडी ने फिल्म अभिनेत्री व तृणमूल सांसद शताब्दी राय से की पूछताछ

Satabdi Roy. सारधा चिटफंट फंड घोटाले में ईडी ने फिल्म अभिनेत्री व तृणमूल सांसद शताब्दी राय से की पूछताछ

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 05:52 PM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 05:52 PM (IST)
सारधा चिटफंट फंड घोटाले में ईडी ने फिल्म अभिनेत्री व तृणमूल सांसद शताब्दी राय से की पूछताछ
सारधा चिटफंट फंड घोटाले में ईडी ने फिल्म अभिनेत्री व तृणमूल सांसद शताब्दी राय से की पूछताछ

कोलकाता, जेएनएन। सारधा चिटफंट फंड घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गुरुवार को बांग्ला फिल्म अभिनेत्री व तृणमूल सांसद शताब्दी राय से पूछताछ की। अधिकारियों ने लगभग तीन घंटे तक उनसे सवाल-जवाब किया। शताब्दी राय चिटफंड कंपनी सारधा समूह की ब्रांड एंबेसडर थीं। जिसके लिए उन्होंने कंपनी से मोटी रकम ली थी। ईडी ने उन्हें बुधवार को ही बुलाया था लेकिन वह दिल्ली में थीं, जिसकी वजह से हाजिर नहीं हो पाईं।  

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जानें, क्या है चिटफंड मामला

चिट फंड्स एक्ट 1982 में ऐसी कंपनियों को परिभाषित किया गया है। इसके अलावा राज्यों में बने कानून इस बिजनेस को नियंत्रित करते हैं। चिट फंड बचत का एक तरीका है, जो लोगों को आसान कर्ज उपलब्ध कराने के साथ ही उनके निवेश पर ज्यादा रिटर्न देता है। बैंक से कर्ज लेने के लिए आम तौर पर कई छोटी-मोटी लेकिन जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करना होता है, लेकिन चिट फंड में इसकी कोई बाध्यता नहीं होती। निवेश के अन्य विकल्पों के मुकाबले चिट फंड में ज्यादा रिटर्न मिलता है और कई बार यही लालच लोगों के नुकसान का कारण भी बनता है।

ऐसे हुई सारदा ग्रुप की शुरुआत

2000 के शुरुआती महीनों में कारोबारी सुदीप्तो सेन ने सारदा ग्रुप की शुरुआत की, जिसे सेबी ने बाद में कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम के तौर पर वर्गीकृत किया। सारदा ग्रुप ने चिट फंड की तर्ज पर ज्यादा रिटर्न का लालच देकर छोटे निवेशकों को आकर्षित किया। अन्य पोंजी स्कीम (चिट फंट कंपनी) की तरह कंपनी ने एजेंट के बड़े नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए छोटे लोगों से पैसों की उगाही की और इसके लिए एजेंट को 25 फीसद तक का कमीशन दिया गया। कुछ ही सालों में सारदा ने करीब 2,500 करोड़ रुपये तक की पूंजी जुटा ली। स्कीम का दायरा ओडिशा, असम और त्रिपुरा तक फैला, जिसमें करीब 17 लाख से अधिक लोगों ने पैसे लगाए।

सैकड़ों निवेशकों ने दर्ज कराया था मामला

2012 में सेबी ने इस समूह को लोगों से पैसा जुटाने के लिए मना किया। 2013 तक आते-आते ग्रुप की हालत खराब होने लगी। कंपनी के पास आने वाली पूंजी की मात्रा, खर्च हो रही पूंजी से कम हो गई, और फिर अप्रैल 2013 में यह धराशायी हो गई। कोलकाता के विधाननगर पुलिस स्टेशन में सैंकड़ों निवेशकों ने शिकायत दर्ज कराई। सुदीप्तो सेन ने 18 पन्नों का पत्र लिखकर बताया कि कैसे नेताओं ने उनसे जबरन गलत जगह निवेश कराया। सेन के खिलाफ एफआईआर हुई और आखिरकार उन्हें 20 अप्रैल 2013 को गिरफ्तार कर लिया गया।

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