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सफलता का श्रेय अपने सहयोगियों को देना ही रामत्व है : डॉ. कृष्ण गोपाल

सामान्य जीवन में असामान्य जीवन का प्रकटीकरण करना ही रामत्व है। कहीं अत्याचार होते देखकर उसके लिए संघर्ष करने वाले के साथ खड़े होना ही रामत्व है। हमारे लोक में युगों- युगों से प्रवहमान है। सत्यं वद धर्मं और रामत्व की पराकाष्ठा है।

By Priti JhaEdited By: Published: Mon, 31 May 2021 09:18 AM (IST)Updated: Mon, 31 May 2021 09:18 AM (IST)
सफलता का श्रेय अपने सहयोगियों को देना ही रामत्व है : डॉ. कृष्ण गोपाल
सफलता का श्रेय अपने सहयोगियों को देना ही रामत्व है

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। ' राम देवत्व को लेकर अवतरित हुए हैं, महामानव है किन्तु उन्होंने विजय का यश स्वयं नहीं लिया बल्कि अपने सहयोगियों को दिया। विफलता का श्रेय स्वयं को लेना तथा विजय का श्रेय अपने सहयोगियों को देना ही रामत्व है। रामत्व को समझना है तो हम राम के जीवन,आचरण, व्यवहार एवं परिवार को देखें। अपने परिवार के अन्तर्मन को समझना रामत्व है। अपने मैं को मिटाना रामत्व है। ' ये विचार व्यक्त किए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह एवं प्रखर चिंतक डॉ कृष्ण गोपाल ने, जो वनवासी कल्याण आश्रम,श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय, राजस्थान परिषद,वन बंधु परिषद, भारतीय संस्कृति संवर्द्धन समिति, कलकत्ता पिंजरापोल सोसाइटी, राम शरद कोठारी स्मृति संघ सहित कोलकाता महानगर की 34 संस्थाओं के संयुक्त आयोजन 'अहं राम: अस्मि - मैं राम हूं' प्रबोधनमाला के त्रिदिवसीय प्रवचन श्रृंखला के समापन सत्र को अपनी ओजस्वी वाणी में बतौर प्रधान वक्ता संबोधित कर रहे थे। इस प्रबोधन माला का उद्देश्य सब में रामत्व भाव का जागरण करना है।

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डॉ.कृष्ण गोपाल ने कहा कि सामान्य जीवन में असामान्य जीवन का प्रकटीकरण करना ही रामत्व है। कहीं अत्याचार होते देखकर उसके लिए संघर्ष करने वाले के साथ खड़े होना ही रामत्व है। हमारे लोक में युगों – युगों से प्रवहमान है। सत्यं वद धर्मं और रामत्व की पराकाष्ठा है। स्वयं समर्थ होते हुए भी दूसरों के विचारों को महत्त्व देना रामत्व की श्रेणी में आता है। गलती को क्षमा करके उसको अपनाना रामत्व है।

राम ने अपने आचरण से लोकमानस का मार्गदर्शन किया। राम ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। कोई उपदेश नहीं दिया। राम और राम कथा के प्रत्येक पात्र ने अपने अपने आचरण द्वारा रामत्व की सही परिभाषा स्थापित की। कठिन समय का हिम्मत से सामना करना राम है। प्रभु राम का चरित एक ऐसा आदर्श है जो हमॆं हर कालखंड में व्यावहारिक लगता है। रामचरित के विभिन्न आयाम हमारे चित्त में गहराई से बैैैठे हुए हैं।संकट की घड़ी में धैर्य को नहीं त्यागना राम ने अपने आचरण द्वारा स्थापित किया। राम के चरित्र के अनुसार जीना , यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है। राम के जीवन के विभिन्न घटनाक्र्म हमारे जीवन में आनंद भरकर हमें वैसा अनुकरण करने की सीख देते हैं।राम की सरलता, सहजता, सहनशीलता , सुभगता जीवन को अवसाद से बाहर आने की प्रेरणा देती हैं। भीषण विपत्तियों में भी हमें अशांत नहीं होने देती , ऐसा है राम का आचरण।

प्रबोधमाला के अपने दिव्य , सामयिक और अलौकिक संबोधन में माननीय कृष्णगोपाल जी ने आगे कहा कि जो सिद्ध है वह राम है। जो विचलित नहीं होता वह राम है।जो सहमति बनकर चले वह राम है। अपने देश और समाज को युद्ध में बिना डाले युद्ध जीतना ही राम का जीवन कौशल है। राम का जीवन सिखाता हैकि हम उदार मन से वार्ता करते रहें। राम महामानव हैं , क्योंकि अपने से छोटों को भी महानता देते हैं। यदि हमारे हृदय में रामत्व जीवित है तो हम क्षमा करना सीख जाते हैं।राम का रामत्व शून्य से ब्रह्मांड को खड़ा करता है। पुरुषार्थी राम निराशा में आशा का संचार करता है। राम को देखने के लिए राम के आचरण को देखना चाहिए ।

देश और विदेश से फ़ेसबुक एवं यूट्यूब के माधय्म से हज़ारों की संख्या में लोगों ने जुड़कर कार्यक्र्म को गौरवमय बनाया। कार्यक्रम का कुशल संचालन किया स्नेहलता बैद जी ने। शंकरलाल अग्रवाल, जितेंद्र चौधरी, डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी, महावीर बजाज, राजेश अग्रवाल, अरुण प्रकाश मल्लावत, रमेश सरावगी, सुरेंद्र चमड़िया महेश मोदी , गोपाल बंका, बिमल मल्लावत, संजय रस्तोगी सक्रिय रहे।


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