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West Bengal : शिक्षा-संस्कृति में परिवर्तन के लिये आवश्यक है तत्परता व लगन : डॉ.गिरीश्वर मिश्र

भारतीय संस्कृति संसद की ओर से कोलकाता में आभासी माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति और आज का समय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित। इसे कार्यरूप में परिणत करना एक बड़ी चुनौती है। तत्परतालगन एवं संकल्प से ही क्रियान्वयन संभव है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 07:44 AM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 01:51 PM (IST)
West Bengal : शिक्षा-संस्कृति में परिवर्तन के लिये आवश्यक है तत्परता व लगन : डॉ.गिरीश्वर मिश्र
कोलकाता में आभासी माध्यम से 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति और आज का समय' पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। 'नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा- संस्कृति को बदलने के लिए सकारात्मक प्रयास सराहनीय है, लेकिन इसे कार्यरूप में परिणत करना एक बड़ी चुनौती है। तत्परता,लगन एवं संकल्प से ही क्रियान्वयन संभव है। अर्थकारी शिक्षा के स्थान पर संस्कार एवं जीवन मूल्यों की सीख देने वाली शिक्षा ही समाज को सही दिशा दे सकती है।' ये विचार हैं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ गिरीश्वर मिश्र के, जो भारतीय संस्कृति संसद द्वारा आभासी (वर्चुअल) माध्यम से 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति और आज का समय' पर कोलकाता में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे।

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पहले सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि नई शिक्षानीति विद्यार्थियों को अपनी परंपरा, संस्कृति और ज्ञान के आधार पर उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखने में सक्षम है। रटंत विद्या के स्थान पर तर्कपूर्ण चिंतन पर जोर देकर मैकाले के भूत से मुक्त होने का आग्रह प्रशंसनीय है। नैतिक, व्यावसायिक एवं पर्यावरण केंद्रित शिक्षा पर बल एक दूरदर्शितापूर्ण कदम है।

दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता तथा कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बल्देव भाई शर्मा ने लोक परंपरा और राष्ट्र निर्माण पर बोलते हुए कहा कि शिक्षा लोक- संस्कार से अभिसिंचित होती है तब विद्या बनती है।लोकजीवन की संवेदना तथा परंपरा के प्रेरक प्रसंगों से जुड़कर ही शिक्षा विद्या के रूप में प्रतिष्ठित होगी। लोक संस्कार से समन्वित शिक्षा आज के समय की आवश्यकता है। नेशनल लाइब्रेरी के पूर्व महानिदेशक डॉ अरुण चक्रवर्ती ने कहा कि पुस्तक एवं पुस्तकालय की महत्ता पर जोर देकर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

दो सत्रों में आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ जिसे स्वर दिया मीता गाड़ोदिया ने। संस्थाध्यक्ष डॉ बिट्ठलदास मूंदड़ा ने आभासी पटल पर उपस्थित विशिष्ट वक्ताओं एवं श्रोताओं का अभिनंदन किया। इस गोष्ठी का कुशल संचालन किया संस्था के साहित्य विभाग की संयोजिका डॉ तारा दूगड़ ने। धन्यवाद ज्ञापन किया क्रमशः विजय झुनझुनवाला एवं राजगोपाल सुरेका ने। इस संगोष्ठी में पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी,डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी, डॉ राजीव रावत, महावीर बजाज, अनिल ओझा नीरद, राजेश दूगड़ सहित देश के अनेक राज्यों से गणमान्य लोग आभासी माध्यम से जुड़े हुए थे। 


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