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West Bengal Assembly Election 2021: बिहार में हार के बाद बंगाल में कांग्रेस की परेशानी

West Bengal Assembly Election 2021 कांग्रेस यहां वजूद बनाए रखने की चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में पार्टी को वहां एक मजबूत गठबंधन की भी जरूरत है। फिलहाल वामपंथी दलों ने कांग्रेस पर भरोसा जरूर दिखाया है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 05:19 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 05:19 PM (IST)
West Bengal Assembly Election 2021: बिहार में हार के बाद बंगाल में कांग्रेस की परेशानी
बिहार में हार के बाद बंगाल में कांग्रेस की परेशानी। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बिहार चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अब कांग्रेस के लिए बंगाल में मुश्किलें बढ़ सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कमजोर संगठन और नेताओं की कमी है। बंगाल में कांग्रेस के पास न तो कोई बड़ा चेहरा है और न ही जनाधार। कांग्रेस यहां वजूद बनाए रखने की चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में पार्टी को वहां एक मजबूत गठबंधन की जरूरत है। फिलहाल वामपंथी दलों ने कांग्रेस पर भरोसा जरूर दिखाया है, लेकिन फिर भी जिस हिसाब से भाजपा इस समय राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हुई है, उससे कांग्रेस-वामपंथी का गठबंधन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल से मुकाबले में कमजोर ही नजर आ रहा है।

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दरअसल, बिहार चुनाव में अब अपने ही कांग्रेस पर सवाल उठाने लगे हैं। महागठबंधन की हार के पीछे कांग्रेस पर दोष मढ़ा जा रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता शिवानंद तिवारी ने राहुल गांधी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि चुनाव जब अपने चरम पर था तो राहुल गांधी शिमला में बहन प्रियंका के साथ उनके घर पर पिकनिक मना रहे थे। शिवानंद तिवारी का यह बयान काफी कुछ कहता है। न सिर्फ राजद बल्कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी पार्टी नेतृत्व पर जमकर भड़ास निकाली है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि पार्टी ने शायद हर चुनाव में पराजय को ही अपनी नियति मान ली है।

कांग्रेस बिहार में राजद के नेतृत्व वाली महागठबंधन का हिस्सा थी। कांग्रेस पार्टी को 70 सीट दी गई थीं लेकिन पार्टी सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई, जबकि महागठबंधन एनडीए से मात्र 15 सीटें ही कम जीत पाया। महागठबंधन की हार के बाद अब कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ना भी शुरू हो गया है। ऐसे में बंगाल में अब कांग्रेस को भाव मिलना बेहद मुश्किल है, जहां एक तरफ तृणमूल तो दूसरी ओर भाजपा ने उसे तेजी से राजनीतिक हाशिए पर पहुंचा दिया है।

पिछले विधासभा चुनाव में कांग्रेस ने वाममोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो 44 सीट मिली थीं, लेकिन अधिक सीटों पर लड़ने के बावजूद वामपंथी को सिर्फ 32 सीटें मिली जिससे पार्टी के अंदर कांग्रेस के साथ समझौते को लेकर विरोध हुआ था। नतीजा, 2019 लोकसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा। अब राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दल फिर एक साथ आए हैं।

सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस के अंदर एक तबके का मानना था कि तृणमूल के साथ गठबंधन करना चाहिए लेकिन कांग्रेस ने उसी वक्त यह संभावना खत्म कर दी जब पार्टी ने अधीर चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। अधीर को ममता विरोधी कहा जाता है। साथ ही, वह अक्सर ही ममता सरकार के खिलाफ मुखर रहते हैं।

भाजपा के खिलाफ गठबंधन की सलाह

बिहार में वाम दलों को 19 में से 12 सीटें जिताने वाले सीपीआई (एमएल) के महासचिव ने दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा बंगाल में भाजपा के खिलाफ तृणमूल, लेफ्ट और कांग्रेस को एक साथ आने का सुझाव दिया है। दीपंकर ने कहा है कि वाम दलों को बंगाल और असम में भाजपा को ही नंबर एक दुश्मन मानते हुए भावी रणनीति बनानी चाहिए। इसके लिए जरूरत पड़ने पर तृणमूल कांग्रेस के साथ भी हाथ मिलाया जा सकता है। हालांकि वाममोर्चा चेयरमैन विमान बोस ने साफ कर दिया है कि बंगाल और बिहार में परिस्थितियां अलग है। इसीलिए गठबंधन का सवाल ही पैदा नहीं होता।


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