भर रही है अंटार्कटिक ओजोन होल, आइआइटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं का दावा
क ओर जहां विश्व भर में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉíमंग पर बहस जारी है, वहीं आइआइटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने पर्यावरण प्रेमियों को र्हिषत होने का एक कारण दिया है।
सुरेन्द्र प्रसाद, खड़गपुर । एक ओर जहां विश्व भर में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉíमंग पर बहस जारी है, वहीं आइआइटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने पर्यावरण प्रेमियों को र्हिषत होने का एक कारण दिया है। आइआइटी खड़गपुर में महासागरों, नदियां, वायुमंडल और भूमि विज्ञान (कोरल) केंद्र के एक शोध दल ने नए आंकड़ों के साथ यह दावा किया है कि अंटार्कटिक ओजोन होल भरने के पथ पर है।
शोधकर्ताओं ने 1979 से 2017 तक का आंकड़ा एकत्र किया है, जो यहा दर्शाता है कि 1987 से अंटार्कटिक से ओजोन की भराव में कमी आई थी, वहीं 2001-2017 की अवधि में 12-21 किलोमीटर के दायरे में संतृप्ति की हानि में काफी कमी आई। यह विगत चार दशकों में अपनी तरह का पहला ऐसा शोध है, जो अंटार्कटिक ओजोन के संतृप्ति की हानि का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है। आइआइटी खड़गपुर के प्रोफेसर जयनारायण कुट्टीपुरा ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि हमने विगत चार दशकों के ओजोन परत की कमी का अध्ययन 1988 और 2002 के गर्म र्सिदयों को छोड़कर प्रत्येक वर्ष र्सिदयों के दौरान किया।
हालांकि हमारा विश्लेषण 2001-17 की अवधि के दौरान लगातार विभिन्न डेटासेट में ओजोन हानि संतृप्ति की घटना में स्पष्ट कमी दर्शाता है। यह अध्ययन ओजोन रिकवरी मामले में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के तौर पर उभरा है। प्रो. कुट्टीपुरा ने आइआइटी केजेपी कोरल टीम के पंकज कुमार, प्रजीता जे. नायर व पी.सी. पांडेय के साथ यह अध्ययन किया था, जिसे हाल में नेचर द्वारा प्रतिष्ठित जनरल एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमोसफेयरिक साइंस में प्रकाशित किया गया।
भारतीय स्टेशन मैत्री से माप सहित अंटार्कटिक के स्टेशनों के लिए दशकों से शरद ऋतु से वसंत ऋतु तक विभिन्न ऊंचाइयों के लिए डेटा एकत्र किया गया। हाल के वर्षों में ओजोन हानि संतृप्ति में कमी डेटा प्रसार में 20-60 फीसद आंकी गई। ओजोन कोरल के प्रो. पी.सी. पांडेय कहते हैं कि फिलहाल रिकवरी प्रक्रिया बहुत धीमी है और प्री-ओजोन छेद के स्तर पर वापस आने में कुछ और दशक लगेंगे। ओजोन रिकवरी का उJव उन ऊंचाइयों पर भी स्पष्ट है, जहां निकट ओजोन को नुकसान होता है।