तारीखों से बदलती गई तस्वीरें
- 1952 से लेकर 1971 तक हर चुनाव में बढ़ती गई सीटों की संख्या -पहले लोकसभा चुनाव में संसदीय क्ष
- 1952 से लेकर 1971 तक हर चुनाव में बढ़ती गई सीटों की संख्या
-पहले लोकसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र थे 26 पर सीटों की संख्या थी 34
-एक नहीं दो और तीन-तीन सीटों वाले हुआ करते थे एक संसदीय क्षेत्र
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जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता
17वीं लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। हर छोटे-बड़े दल व उनके नेता चुनावी तैयारी में व्यस्त हैं। आम लोगों की जुबां पर भी आम चुनाव की ही चर्चा है। सरकार किसकी बनेगी, प्रधानमंत्री कौन होंगे? परंतु, इन सबके बीच यदि भारत के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो तारीखों ने किस तरह तस्वीरें बदली है जिससे आज की युवा पीढ़ी ही नहीं, बल्कि लाखों लोग अनजान होंगे। यूं ही भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधार स्तंभ नहीं कहा जाता। आजादी के बाद से भारत में चुनावों ने एक लंबा रास्ता तय किया है, लेकिन चुनाव हमेशा से स्वतंत्र भारत के महत्वपूर्ण राजनीतिक व सास्कृतिक पहलू बने रहे हैं। यदि भारत के चुनावी इतिहास की चर्चा हो तो पश्चिम बंगाल की अनदेखी नहीं की जा सकती। क्योंकि, एक समय इसी बंगाल से देश की सत्ता संचालित होती थी।
जब हम बंगाल में लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालते हैं, तो कई ऐसे तथ्य सामने आते हैं, जो आश्चर्य चकित करने वाले हैं। छठी लोकसभा के लिए 1977 में हुए चुनाव से लेकर अब तक हम सभी जानते हैं कि बंगाल में लोकसभा सीटों की संख्या 42 है। जिस पर जीत के लिए राजनीतिक पार्टियां हर चुनाव में हर दाव-पेंच आजमाते हैं। इस बार फिर ऐसा ही कुछ है।
परंतु, जब हम आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो काफी स्थिति बदली हुई दिखती है। सीटों की संख्या, संसदीय क्षेत्र, वोटिंग प्रतिशत सब कुछ काफी बदला हुआ है। बात पहले हम 1952 में हुए प्रथम लोकसभा चुनाव की करते हैं। इस वर्ष हुए लोस चुनाव में सीटों 34 थीं, लेकिन संसदीय क्षेत्र की संख्या महज 26 ही थी। उस वक्त जनसंख्या व भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर सीटें बांटी गई थी। ऐसे में कुछ ऐसे संसदीय क्षेत्र थे जिसमें तीन और दो लोकसभा सीटें होती थी तो कुछ में एक।
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कुछ इस तरह बदलती सीटों की संख्या
आजादी के बाद जब वर्ष 1952 में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ तो बंगाल के 26 संसदीय क्षेत्रों में 34 लोस सीटों के लिए मतदान हुए थे। उस समय एस सीट वाली संसदीय क्षेत्र की संख्या 19 थी, जबकि दो सीटों वाली लोस क्षेत्र की संख्या 6 थी और तीन सीटों वाली संसदीय क्षेत्र की संख्या एक थी। उस वक्त बंगाल में वोटरों की संख्या 1,25,00475 करोड़ था और 77,14,023 लोगों ने वोट डाले थे। वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए चुनाव हुआ तो बंगाल में सीटों की संख्या 36 हुई और संसदीय क्षेत्र की संख्या 28 थी। इनमें एकल सीट वाले संसदीय क्षेत्र की संख्या 20, दो सीटों वाले लोस क्षेत्र की संख्या आठ की गई थी। तीन सीटों वाले संसदीय क्षेत्र को समाप्त कर दिया गया। इस वर्ष वोटरों की कुल संख्या 1,52,16,532 थी और 1,04,40,099 लोगों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। तीसरी लोकसभा के लिए 1962 में जब चुनाव हुए तो लोकसभा सीटों व संसदीय क्षेत्रों की संख्या समान कर दी गई। उक्त वर्ष बंगाल की 36 संसदीय क्षेत्रों में 36 सीटों के लिए मतदान हुए थे। उस समय राज्य में वोटरों की संख्या 1,80,05,635 पहुंच गई थी, लेकिन मात्र 97,36,148 लोगों ने ही मताधिकार का इस्तेमाल किया था। चौथी लोकसभा के लिए वर्ष 1967 में चुनाव हुआ था। उसी वक्त बंगाल में लोकसभा सीटों की संख्या 40 हो गई। वोटरों की संख्या 2,02,04,169 थी और पहली बार 1,28,62,092 वोटरों ने मताधिकार इस्तेमाल किया। इसके बाद 1971 में भी 40 सीटों के लिए हुए चुनाव हुए। वर्ष 1977 में सीटों की संख्या 42 कर दी गई और 17वीं लोकसभा के लिए भी इतनी ही सीटों के लिए चुनाव होंगे। हालांकि, इन अब लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्या 6.98 करोड़ पहुंच चुकी है।