नए CDS अनिल चौहान की स्कूली शिक्षा कोलकाता से हुई, चीन व पूर्वोत्तर से जुड़े मामलों का माना जाता है एक्सपर्ट
नए सीडीएस अनिल चौहान सेना में महत्वपूर्ण पदों पर 40 साल की शानदार सेवा के बाद पिछले साल 31 मई को पूर्वी कमान के प्रमुख रहते सेवानिवृत हुए थे जिसका मुख्यालय कोलकाता में ही है। मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले चौहान का कोलकाता से गहरा लगाव रहा है।
राजीव कुमार झा, कोलकाता : कोलकाता में सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेवानिवृत्त) को देश के अगले चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में नियुक्त किया गया है। वे पहले सीडीएस रहे जनरल जनरल बिपिन रावत की जगह लेंगे, जिनका पिछले साल हेलिकाप्टर दुर्घटना में निधन हो गया था। नए सीडीएस नियुक्त हुए चौहान सेना में महत्वपूर्ण पदों पर 40 साल की शानदार सेवा के बाद पिछले साल 31 मई को पूर्वी कमान के प्रमुख (कमांडर) रहते सेवानिवृत हुए थे, जिसका मुख्यालय कोलकाता में ही है।
हाईलाइटर
- कोलकाता में पूर्वी कमान के प्रमुख रहते पिछले साल हुए थे रिटायर
- कोलकाता के ही केंद्रीय विद्यालय में हुई है स्कूली शिक्षा
- चौहान के पूर्वी आर्मी कमांडर रहते पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद में आई थी भारी गिरावट
- बालाकोट एयर स्ट्राइक की रणनीति से भी जुड़े रहे हैं चौहान
मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले चौहान का कोलकाता से गहरा लगाव रहा है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के फोर्ट विलियम स्थित केंद्रीय विद्यालय में ही हुई है। उनके पिता भी सेना में थे। चौहान बांग्ला भी अच्छी तरह जानते और समझते हैं। उन्होंने एक साक्षात्कार में भी कहा था कि जब वे दूसरी व तीसरी कक्षा में थे बांग्ला किताब मंगाकर इसे पढऩे व सीखने की कोशिश करते थे। वहीं, लेफ्टिनेंट जनरल चौहान के पूर्वी कमान के प्रमुख रहते कई उपलब्धियां भी हैं।
चौहान के कार्यकाल में पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद में आई बड़ी गिरावट
उनके कार्यकाल में पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद में बड़ी गिरावट आई, जिसके फलस्वरूप कई पूर्वोत्तर राज्यों में सेना की तैनाती में भी कमी आई। चौहान ने एक सितंबर 2019 को पूर्वी सेना की कमान संभाली थी। वे करीब 20 महीने पूर्वी कमान के प्रमुख के पद पर रहे। सेना के इस महत्वपूर्ण कमान पर सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों से चीन के साथ लगने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की रक्षा का दायित्व है।
बालाकोट एयर स्ट्राइक की रणनीति से भी जुड़े रहे हैं चौहान
पूर्वी कमान की जिम्मेदारी संभालने से पहले चौहान नई दिल्ली में सैन्य अभियान के महानिदेशक (डीजीएमओ) थे। बतौर डीजीएमओ वह आपरेशन सनराइज के मुख्य शिल्पी भी थे जिसके तहत भारत और म्यांमार की सेना ने दोनों देशों की सीमाओं के पास उग्रवादियों के विरूद्ध समन्वित अभियान चलाया।
सेना के टाप कमांडरों में से एक रहे चौहान, पाकिस्तान के खिलाफ बालाकोट में एयर स्ट्राइक की रणनीति से भी जुड़े थे। अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना के साथ जमीन को लेकर जब विवाद हुआ था उस वक्त भी पूर्वी कमान की सेना ने लेफ्टिनेंट जनरल चौहान के ही नेतृत्व में भारत-चीन सीमा पर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में अपना साहस व इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया था।
चीन व पूर्वोत्तर से जुड़े मामलों का माना जाता है एक्सपर्ट
चौहान को चीन व पूर्वोत्तर से जुड़े मामलों का एक्सपर्ट भी माना जाता है। उनको इस क्षेत्र का व्यापक अनुभव है। राष्ट्र की सेवा के लिए चौहान को समय-समय पर परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, सेना मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया। उनके साथ कोलकाता में काम करने वाले कर्नल रैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पूर्वी आर्मी कमांडर पद से सेवानिवृत्ति के बाद चौहान परिवार सहित अपने गृह शहर देहरादून चले गए थे। चौहान ने सेवानृवित्ति के बाद अपने गृह शहर में बसने और सुरक्षा संबंधी मामलों पर लिखने के लिए समय देने की इच्छा व्यक्त की थी।
2010 में चौहान की लिखी किताब भी हुई थी प्रकाशित
चौहान ने एक किताब भी लिखी है, आफ्टरमैथ आफ ए न्यूक्लियर अटैक, जो 2010 में प्रकाशित हुई थी। अधिकारी के अनुसार, चौहान बहुत ही शांति मिजाज के व्यक्ति हैं और कभी भी किसी पर गुस्सा नहीं होते थे। इतने उच्च पद पर रहते भी वह कभी किसी को नहीं डांटते थे। वहीं, काम के मामले में वह उतने ही सख्त हैं। चौहान फिलहाल नेशनल सिक्युरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के मिलिट्री सलाहकार के रूप में भी कार्यरत हैं।