Bengal Assembly Election 2021: बिहार विधानसभा चुनाव ने दिखाई बंगाल विजय की राह
Bengal Assembly Election 2021 बंगाल के माकपा और कांग्रेस के नेता भी संयुक्त शक्ति के साथ नई रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं ताकि तृणमूल और भाजपा दोनों के विकल्प के रूप में तीसरी ताकत के रूप में उभरा जा सके।
जयकृष्ण वाजपेयी। Bengal Assembly Election 2021 कोरोना काल में बिहार की सत्ता के लिए हुए महासंग्राम के नतीजों ने देश के सियासी दलों को कई सबक दिए हैं। अब कुछ माह बाद बंगाल में भी चुनावी रण शुरू होने वाला है, इसीलिए बिहार विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए यहां की सियासी पार्टियां अपनी रणनीति को नए सिरे से दुरुस्त करने में जुट गई हैं। जिस तरह से बिहार में चुनावी संग्राम हुआ और फिर नतीजे को लेकर आखिरी वक्त तक असमंजस की स्थिति बनी रही, उसने नेताओं को अपनी रणनीति में बदलाव करने को बाध्य कर दिया है।
यही वजह है कि बंगाल की सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस हो या फिर कड़ी टक्कर दे रही भाजपा या फिर वाममोर्चा और कांग्रेस, सभी चुनाव की घोषणा से पहले ही अपनी-अपनी रणनीति को फुलप्रूफ करने में जुटे हैं। कांग्रेस की वजह से बिहार में जो हुआ, उसे लेकर बंगाल के कुछ कामरेड अभी से आशंकित हैं, क्योंकि बंगाल में वामपंथी दल कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
बिहार चुनाव में कई बातें हुई हैं, जो सियासी दलों को यह सोचने को विवश कर रही हैं कि अब सिर्फ कोरे लोकलुभावन घोषणाओं से वोट नहीं मिलेंगे। प्रलोभन से काम नहीं चलेगा। आम जनता को खुश करने के लिए सिर्फ वादे और भरोसा देने से जनादेश नहीं मिलने वाला। काम करना होगा। अब गरीब और निम्न मध्यम वर्ग को सिर्फ बिजली, पानी, सड़क देने से काम नहीं होगा। बेरोजगार युवाओं को रोजगार, नौकरी, सुरक्षा, गरीबों को आर्थिक सुरक्षा, मकान और गरीबी से बाहर निकालने वाली ईमानदार सरकार चाहिए। कृषि ऋण माफी, बेरोजगारी भत्ता और खैरात का झुनझुना पकड़ाने से वोट नहीं मिलेंगे। बिहार चुनाव में सारे एग्जिट पोल धराशायी हो गए। आम वोटरों ने उन्हें अपना वोट दिया, जिनमें उन्हें उम्मीद दिखी कि वे ही उसे पूरा कर सकते हैं। यही कारण है कि मतगणना के अंतिम समय तक मतदाता का मिजाज समझना मुश्किल हो रहा था। फिर ऐसा परिणाम सामने आया कि बंगाल में किन मुद्दों पर चुनावी रण लड़ा जाए, इस पर सियासी दलों को नए सिरे से विचार करने को मजबूर कर दिया।
भाजपा बिहार चुनाव में मिली सफलता के बाद बंगाल में सत्ता संग्राम के लिए अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे रही है, क्योंकि उसे पता चल गया है कि चुनावी जंग में हर एक कदम फूंक-फूंककर रखना होगा। एक गलत कदम से खेल बिगड़ सकता है। बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा में 200 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य भाजपा नेतृत्व ने रखा है और बिहार चुनाव के बाद उसका पूरा ध्यान राजनीतिक रूप से अहम बंगाल पर है। भाजपा ममता सरकार पर आखिरी दौर का हमला शुरू करने के लिए बिहार चुनाव के संपन्न होने का इंतजार कर रही थी। अब जब नतीजे घोषित हो गए हैं तो वहां मिली जीत से नई ऊर्जा प्राप्त कर बंगाल फतह के लिए पूर्व में तैयार रणनीतियों में बदलाव कर उसे और धार दे रही है।
बिहार में जो हुआ, उससे और बेहतर बंगाल में हो, इस पर भाजपा जोर दे रही है। तृणमूल को घेरने के लिए भाजपा अब तक कुशासन, चिटफंड घोटाला, रंगदारी टैक्स, गिरती कानून-व्यवस्था, हिंसा, भ्रष्टाचार, नागरिकता कानून को लागू करने, घुसपैठ, केंद्रीय योजनाओं को लागू नहीं करना और राज्य सरकार द्वारा कोरोना से निपटने में कथित नाकामी को मुद्दा बना रही थी, लेकिन बिहार चुनाव के नतीजों से पता चला कि बेरोजगारी, मजदूरों के पलायन संकट का मुद्दा कई सीटों पर महत्वपूर्ण रहा, इसलिए इन मुद्दों पर भी जोर देने की जरूरत महसूस की जा रही है। वहीं तृणमूल नेतृत्व भी पीछे नहीं है। जैसे ही बिहार में रोजगार, नौकरी का मुद्दा उठा तो नतीजा आने के महज एक दिन बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कैबिनेट की बैठक में 16,500 शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ पुलिस में तीन और नई बटालियन गठित करने की घोषणा कर दी।
इससे पहले मतुआ संप्रदाय के 25 हजार शरणार्थियों को जमीन के पट्टे का दस्तावेज सौंपने के साथ-साथ विकास बोर्ड बनाने की घोषणा की थी। यही नहीं, भाजपा के राष्ट्रवाद का जवाब देने के लिए ममता बनर्जी बंगाली अस्मिता और संस्कृति को धार देकर उसे बाहरी पार्टी करार देने से भी नहीं चूक रही हैं। साथ ही, ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले नेताओं को अग्रिम पंक्ति में लाकर वह भाजपा के भ्रष्टाचार जैसे धारदार मुद्दों को भोथरा करने की कोशिश में जुटी हुई हैं।
[स्टेट ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]