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बंगाल में विधायक और नेताओं की भाजपा से TMC में वापसी के बीच BJP में बड़ा बदलाव

बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया और उनके स्थान पर बालुरघाट से सांसद डा. सुकांत मजूमदार को प्रदेश की कमान सौंप दी गई। अगर उन्हें रोकने में सफल हो गए तो प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी बड़ी सफलता होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 01:08 PM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 04:13 PM (IST)
बंगाल में विधायक और नेताओं की भाजपा से TMC में वापसी के बीच BJP में बड़ा बदलाव
भाजपा से कई और विधायक तृणमूल में वापसी को तैयार बैठे हैं।

कोलकाता, स्टेट ब्यूरो। बंगाल में विधायक और नेताओं की तृणमूल कांग्रेस में वापसी हो रही है। मुकुल राय समेत चार विधायक तृणमूल में लौट चुके हैं। इस बीच केंद्रीय मंत्री का पद जाने से क्षुब्ध चल रहे सांसद बाबुल सुप्रियो ने भी तृणमूल का झंडा थाम लिया। इस उठापटक के बीच अचानक से बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष को पद से हटाते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया और उनके स्थान पर दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालुरघाट से सांसद डा. सुकांत मजूमदार को प्रदेश की कमान सौंप दी गई।

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ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि वर्ष 2016 में बंगाल में पहली बार तीन विधायकों को विधानसभा पहुंचाने, वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव में व्यापक हिंसा के बाद भी करीब छह हजार से अधिक वार्डो में जीत दर्ज करने, वर्ष 2019 में 18 सांसद लोकसभा भेजने और 2021 में 77 विधायक जीतने के बावूजद दिलीप घोष को क्यों हटाया गया? क्या इस बदलाव के जरिये भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने कुछ संकेत दिए हैं? इस सवाल का जवाब वक्त देगा, लेकिन दिलीप घोष बंगाल में भाजपा के लिए काफी फलदाई रहे हैं इससे शायद ही केंद्रीय नेतृत्व को एतराज होगा।

भाजपा को हालिया संपन्न विधानसभा चुनाव में पूरी कोशिश के बाद भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली। वैसे तो इस विफलता की कई वजहें रही हैं, लेकिन यह कहा जा रहा था कि राज्य नेतृत्व में बदलाव होगा। इसके लिए पिछले तीन माह में कई बार चर्चा शुरू हुई थी कि दिलीप घोष को हटाया जाएगा और उनके स्थान पर सुकांत मजूमदार या फिर देबश्री चौधरी या लाकेट चटर्जी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। उसी अनुसार ही सुकांत मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया और उन्होंने मंगलवार को दायित्व भी संभाल लिया।

हालांकि मजूमदार के लिए आगे की राह आसान नहीं है। उनके सामने सांगठनिक स्तर से लेकर नेताओं, विधायकों और सांसदों को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती है, क्योंकि एक बाद एक विधायक भाजपा छोड़कर तृणमूल में शामिल हो रहे हैं। बचे हुए विधायकों को तृणमूल कांग्रेस में जाने से कैसे रोका जाए और संगठन को मजबूत कैसे किया जाए, यह सबसे बड़ी चुनौती नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने है। अब देखना है कि वह इस चुनौती का सामना करते हुए तृणमूल के समक्ष किस तरह से संगठन को मजबूत करते हैं? उनकी परीक्षा दायित्व संभालने के साथ ही शुरू हो गई है, क्योंकि कई और विधायक तृणमूल में वापसी को तैयार बैठे हैं। 


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