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बड़ा कदम : बंगाल सरकार ने सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं का थैलेसीमिया टेस्ट किया अनिवार्य

बंगाल राज्य में थैलेसीमिया नियंत्रण योजना के नोडल आफिसर व एनआरएस मेडिकल कालेज के हेमाटोलाजी विभाग के प्रमुख डा तूफानकांत दलुई ने कहा कि जिनका बच्चा थैलेसीमिया से ग्रसित होता है वे ही समझते हैं कि यह कितना कष्टदायक होता है।

By Priti JhaEdited By: Published: Wed, 18 May 2022 03:08 PM (IST)Updated: Wed, 18 May 2022 03:27 PM (IST)
बड़ा कदम : बंगाल सरकार ने सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं का थैलेसीमिया टेस्ट किया अनिवार्य
बंगाल सरकार ने सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं का थैलेसीमिया टेस्ट किया अनिवार्य

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। गंभीर अनुवांशिक रोग थैलेसीमिया की रोकथाम की दिशा में बंगाल सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों एवं मेडिकल कालेजों में प्रत्येक गर्भवती महिला की थैलेसीमिया जांच अनिवार्य कर दिया है। महिलाओं के गर्भवती होने के 16 हफ्ते के भीतर यह टेस्ट कराना होगा। राज्य सरकार की ओर से इस बाबत जारी आदेश में कहा गया है कि राज्य को थैलेसीमिया मुक्त करने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों एवं नर्सिंग होम से भी अपील की है कि उनके यहां इलाज कराने आने वाली गर्भवती महिलाओं की भी थैलेसीमिया जांच अर्थात एचपीएलसी टेस्ट जरूर करें।

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बता दें कि बंगाल में प्रत्येक वर्ष औसतन 15 लाख महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं। राज्य सरकार ने अपने निर्देश में यह भी कहा है कि यदि कोई गर्भवती महिला निजी अस्पताल में इलाज करा रही है और वह सरकारी अस्पताल में थैलेसीमिया जांच कराना चाहती है तो यह सुविधा उसे मिलेगी। वह राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित 36 थैलेसीमिया कंट्रोल यूनिट में से कहीं भी जाकर जांच करा सकती है। इस संबंध में राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशक डा सिद्धार्थ नियोगी ने बताया कि सभी सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की थैलेसीमिया जांच अनिवार्य कर दी गई है। इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग की ओर से तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर भी लगाया गया था।

वहीं, राज्य में थैलेसीमिया नियंत्रण योजना के नोडल आफिसर व एनआरएस मेडिकल कालेज के हेमाटोलाजी विभाग के प्रमुख डा तूफानकांत दलुई ने कहा कि जिनका बच्चा थैलेसीमिया से ग्रसित होता है वे ही समझते हैं कि यह कितना कष्टदायक होता है। इसीलिए गर्भावस्था के समय ही थैलेसीमिया की जांच करा ली जाए और इसका इलाज किया जाय तो इसका इलाज और भी आसान हो जाएगा। इधर, राज्य के कई वरिष्ठ चिकित्सकों ने राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे जन्म लेने वाला बच्चा थैलेसीमिया ग्रसित है या नहीं, इसकी जानकारी पहले ही मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को शादी से पहले वर-वधू की भी थैलेसीमिया जांच को अनिवार्य करनी चाहिए। इससे बीमारी का और पहले पता चल जाएगा और इसकी रोकथाम में मदद मिलेगी।

बंगाल के लगभग 10 प्रतिशत लोग थैलेसीमिया से ग्रसित

आंकड़ों के अनुसार, देश में प्रति घंटे जन्म लेने वाले शिशुओं में एक थैलेसीमिया से ग्रसित होता है। वहीं, बंगाल के लगभग 10 प्रतिशत लोग थैलेसीमिया से ग्रसित हैं। हालांकि इनमें सभी को रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती। राज्य में लगभग 50 हजार रोगी थैलेसीमिया से गंभीर रूप से ग्रसित हैं। इनमें से 18 हजार रोगियों का नियमित रूप से रक्त बदलने की जरूरत होती है जबकि 26 हजार रोगियों को रक्त बदलने की जरूरत नहीं है। लेकिन इनके लिए नियमित रूप से इलाज कराना आवश्यक होता है। 


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