Bengal Politics: सियासी गहमागहमी के बीच 19 दिसंबर को भाजपा का दामन थाम सकते हैं शुभेंदु
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो सकते हैं शुभेंदु अधिकारी। 19 दिसंबर को दो दिवसीय दौरे पर बंगाल आ रहे हैं अमित शाह। मंच पर दिख सकते हैं शुभेंदु। शुभेंदु को भाजपा में शामिल होने से पहले दी गई जेड श्रेणी की सुरक्षा।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : तृणमूल के बागी कद्दावर नेता व विधायक शुभेंदु अधिकारी को लेकर जो अटकलें लग रही थी उस पर आगामी शुक्रवार को विराम लग सकता है। सूत्रों की मानें तो सब कुछ ठीक रहा तो शुभेंदु 18 दिसंबर, शुक्रवार को नयी दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री व कद्दावर नेता अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा का झंडा थाम सकते हैं। उसके अगले दिन अमित शाह शुभेंदु के गढ़ मेदिनीपुर पहुंच रहे है, जहां मंच पर शुभेंदु उनके साथ दिख सकते हैं। इससे पहले शुभेंदु विधायक के पद से इस्तीफा दे देंगे। इसी के साथ तृणमूल व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ 20 वर्षों का साथ खत्म हो जाएगा। अधिकारी के भाजपा में शामिल होने की खबर को इस बात से भी बल मिल रहा है कि केंद्र सरकार ने सोमवार को ही जेड श्रेणी की सुरक्षा देने का निर्णय ले लिया। वहीं दूसरी हल्दिया में एक सभा शुभेंदु ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम नहीं लिए बगैर उनपर जमकर निशाना साधा।
शुभेंदु के तृणमूल को छोडऩे की सिर्फ घोषणा ही बाकी है
दरअसल, पिछले माह शुभेंदु ने मंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले उन्होंने राज्य सरकार की ओर से मिली सुरक्षा लौटा दी थी। तृणमूल नेतृत्व ने उन्हें मनाने की पूरी कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। इस बीच शुभेंदु के करीबी स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं को तृणमूल ने पार्टी से निकालना शुरू कर दिया है। इसके बाद ही माने जाने लगा कि शुभेंदु के तृणमूल को छोडऩे की सिर्फ घोषणा ही बाकी है।
भाजपा में शामिल होने से पहले ही शुभेंदु की बैटिंग शुरू
नंदीग्राम आंदोलन के पोस्टर ब्वॉय रहे तृणमूल के बागी शुभेंदु अधिकारी ने भाजपा में शामिल होने से पहले ही लगता है कि भगवा टीम के पक्ष में उन्होंने बैटिंग शुरू कर दी है। एक ओर उन्होंने जहां नंदीग्राम आंदोलन को लेकर तो दूसरी ओर भाजपा को बाहरी कहने को लेकर हल्दिया पोर्ट के संस्थाप सतीश चंद्र सामंत का उल्लेखकर नाम लिए बिना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व तृणमूल पर निशाना साधा।
नंदीग्राम आंदोलन किसी पार्टी या व्यक्ति नहीं जनता का
नंदीग्राम के स्वतंत्रता सेनानी और हल्दिया बंदरगाह के संस्थापक सतीश चंद्र सामंत की 121वीं जयंती के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शुभेंदु ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम लिए बिना कहा कि नंदीग्राम आंदोलन किसी पार्टी या व्यक्ति का नहीं था। आंदोलन जनता का था, जनता जीत गई। पार्टी के लिए, पार्टी द्वारा, पार्टी के लिए ही आंदोलन क्यों होना चाहिए? उन्होंने कहा कि आज भी मुझे किसी पद का लालच नहीं है। उन लोगों की बात सुनो, जो मेरे खिलाफ साजिश रच रहे हैं। मंत्रालय छोडऩे के बाद भी लोग मेरी सभा में आते हैं। यह सभी लोग किसी दल के नहीं हैं।
विभिन्न धर्म समुदाय और राज्यों के लोग साथ रहते हैं
स्वतंत्र सेनानी सतीश का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद वह तमलुक लोकसभा क्षेत्र से पांच बार सांसद चुने गए। भाजपा नेताओं को ममता और उनकी पार्टी के नेता लगातार बाहरी बता रहे हैं। इस मुद्दे पर शुभेंदु ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री को नहीं लगता था कि सतीश बाबू एक बाहरी व्यक्ति थे। यह भारत है, विभिन्न धर्म समुदाय और राज्यों के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं।
देश के किसी भी हिस्से में बाहरी होने का तमगा नहीं
उन्हें देश के किसी भी हिस्से में बाहरी होने का तमगा नहीं दिया जाता। उन्होंने यह भी कहा कि वह व्यक्तिगत हमलों में विश्वास नहीं करते, जो लोग हमला कर रहे हैं, उन्हें मतदान के दौरान जनता बटन दबाकर जवाब देगी। तृणमूल के बड़े नेताओं पर कटाक्ष करते हुए शुभेंदु ने कहा कि ऐसे नेताओं की हालत बिनॉय कोन्नार, लक्ष्मण सेठ, अनिल बसु जैसी होगी।
कांथी दक्षिण विस सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित
2006 में तृणमूल के टिकट पर कांथी दक्षिण विधानसभा सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। 2007 के नंदीग्राम आंदोलन में शुभेंदु पोस्टर ब्वॉय बन गए। इसके बाद 2009 में तमलुक से सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद वह 2014 में पुन: सांसद निर्वाचित हुए। हालांकि 2016 में नंदीग्राम से विधायक चुने जाने के बाद उन्होंने सांसद पद छोड़ दिया और बंगाल के परिवहन मंत्री बने।
भाई दिव्येंदु तमुलक और पिता शिशिर कांथी से सांसद
उनका राजनीतिक करियर का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा था। परंतु, 2019 में लोकसभा चुनाव में भाजपा को जबर्दस्त जीत मिलने और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नियुक्ति के बाद पार्टी में जैसे ही ममता के सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी का कद बढ़ा वह क्षुब्ध हो गए और उसी का नतीजा है कि अब वह तृणमूल को अलविदा कहने जा रहे हैं। उनके भाई दिव्येंदु अधिकारी तमुलक और पिता शिशिर अधिकारी कांथी से तृणमूल के सांसद हैं।