West Bengal Election 2021: मुर्शिदाबाद में 13 लाख बीड़ी मजदूरों के भविष्य पर ग्रहण
शमशेरगंज विधानसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी मिलन घोष कहते हैं कि कई बीड़ी कंपनियां सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की हैं। कोटपा कानून लागू होने के बाद इस व्यवसाय पर आने वाले संकट को देखते हुए नेताओं ने अपना दूसरा कारोबार शुरू कर दिया है।
डॉ. प्रणेश, मुर्शिदाबाद। मुर्शिदाबाद जिले के शहरों में भले ही समृद्धि झलकती हो पर गांवों की स्थिति दयनीय है। अधिकतर लोग अन्य प्रदेशों में जाकर मजदूरी करते हैं। ग्रामीण महिलाएं व बच्चे घरों में बैठकर बीड़ी बनाते हैं। इसी से उनकी दाल-रोटी चलती है। लेकिन विगत पांच साल में बीड़ी मजदूरों की स्थिति दयनीय हुई है। अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों की वजह की विदेशों में अब बीड़ी का निर्यात काफी कम होता है। इसके अलावा केंद्र व राज्य सरकार भी बीड़ी की खपत को हतोत्साहित कर रही हैं। इस वजह से बीड़ी की खपत लगातार घट रही है परिणामस्वरूप कंपनियों को उत्पादन में भी कमी करनी पड़ी है। मुर्शिदाबाद में बीड़ी के धंधे में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हैं लेकिन किसी ने समस्या के समाधान में रुचि नहीं दिखाई। दरअसल, बीड़ी की खपत को प्रोत्साहित किया नहीं जा सकता। इसलिए एकमात्र विकल्प इस धंधे में लगे मजदूरों को दूसरे रोजगार की ओर मोडऩा है। और ऐसा कोई विकल्प मुर्शिदाबाद में है ही नहीं।
विदेशों को होता था निर्यात : जानकारों की मानें तो पूरे देश में करीब एक करोड़ से अधिक बीड़ी मजदूर हैं। इनमें करीब 13 लाख अकेले मुर्शिदाबाद जिले में हैं। पूर्व में देश में उत्पादित बीड़ी का करीब 40 फीसद अरब देशों को निर्यात होता था, लेकिन अब वह घटकर पांच से सात फीसद रह गया है। वर्तमान में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, असम आदि राज्यों में यहां से बीड़ी भेजी जाती है। कड़े नियम-कायदे के कारण बीड़ी की खपत लगातार घट रही है। कोटपा (सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट एक्ट) कानून के बनने के बाद इस उद्योग की स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती गई।
सप्ताह में कहीं तीन तो कहीं चार दिन ही मिलता काम : वर्तमान में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में करीब 13 लाख बीड़ी मजदूरों में से कुछ को सप्ताह में तीन दिन तो कुछ को सप्ताह में चार दिन ही काम मिल पाता है। इस वजह से उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है। पश्चिम बंगाल में एक हजार बीड़ी बनाने पर मजदूर को मात्र 152 रुपये मिलते हैं। इसमें इस्तेमाल होनेवाली सामग्री कंपनी उपलब्ध कराती है। हालांकि, केरल में एक हजार बीड़ी बनाने पर 340 रुपये मिलते हैं। मंगलपुर की बीड़ी मजदूर गीता मंडल कहती है कि घर-परिवार चलाने के लिए बीड़ी बनाना पड़ता है। सरकार को वैकल्पिक इंतजाम करना चाहिए। उनके एक साथी मजदूर कहते हैं, इस बार उसे वोट देंगे जो यहां उद्योग-धंधे लगाए और हमें वहां मजदूरी मिले। मुर्शिदाबाद जिला बीड़ी मजदूर संघ के अध्यक्ष मो. आजाद कहते हैं कि वर्तमान में न्यूनतम मजदूरी 266 रुपया प्रतिदिन है, लेकिन बीड़ी मजदूरों को एक हजार बीड़ी बनाने पर मात्र 152 रुपये मिलते हैं। चार साल से इसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसके लिए वे लोग लगातार आंदोलन चला रहे हैं।
कोई सुध नहीं : शमशेरगंज विधानसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी मिलन घोष कहते हैं कि कई बीड़ी कंपनियां सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की हैं। कोटपा कानून लागू होने के बाद इस व्यवसाय पर आने वाले संकट को देखते हुए नेताओं ने अपना दूसरा कारोबार शुरू कर दिया है लेकिन मजदूरों की कोई सुध नहीं ले रहे हैं। भाजपा की सरकार बनने पर बीड़ी मजदूरों को अन्य कार्यों का प्रशिक्षण देकर उन्हेंं रोजगार से जोड़ा जाएगा।