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कांथी और तमलुक संसदीय सीटों पर विरासत की लड़ाई

-अधिकारी पिता-पुत्र पर तृणमूल का विश्वास कायम -तृणमूल विकास तो विरोधी परिवर्तन के आह्वान पर

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 11:55 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 11:55 PM (IST)
कांथी और तमलुक संसदीय सीटों पर विरासत की लड़ाई
कांथी और तमलुक संसदीय सीटों पर विरासत की लड़ाई

-अधिकारी पिता-पुत्र पर तृणमूल का विश्वास कायम

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-तृणमूल विकास तो विरोधी परिवर्तन के आह्वान पर लड़ेंगे चुनाव

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तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : पूर्व मेदिनीपुर जिले की दो संसदीय सीटों काथी और तमलुक में पिछले चुनावों की तरह ही इस बार भी लड़ाई राजनीतिक कम और विरासत की अधिक है। उक्त दोनों महत्वपूर्ण सीटों को लेकर तृणमूल काग्रेस का पिता-पुत्र शिशिर अधिकारी और दिव्येंदु अधिकारी पर विश्वास कायम है। इस बार भी वरिष्ठ तृणमूल नेता सह पूर्व मेदिनीपुर के जिलाध्यक्ष शिशिर अधिकारी काथी सीट से और उनके पुत्र दिव्येंदु अधिकारी तमलुक सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पिता-पुत्र की उम्मीदवारी से जिले में रोचक परिदृश्य उत्पन्न हो रहा है। फिलहाल अन्य किसी दल ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की है। 2000 में अविभाजित मेदिनीपुर से अलग होकर पृथक जिला बनने के बाद के परिदृश्यों में बेशक 16 विधानसभा सीटों वाले पूर्व मेदिनीपुर में करीब आठ साल तक माकपा समेत वामपंथी दलों का कब्जा रहा, लेकिन 2007 में हुए नंदीग्राम भूमि आदोलन ने इस जिले से माकपा समेत वामपंथी दलों की ऐसी जड़ें हिलाई कि समूचे राज्य से उनकी विदाई की पृष्ठभूमि तैयार हो गई। 2008 में हुए पंचायत और 2009 के लोकसभा चुनाव में जिले में तृणमूल का एकछत्र राज कायम हो गया। बेशक प्रदेश में माकपा का पराभव 2011 में हुआ। उस साल हुए विधानसभा चुनाव में जिले की सभी 16 विधानसभा सीटें तृणमूल की झोली में गई।

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जिले की खासियत

शिक्षा, कृषि व मत्स्य पालन के चलते पूर्व मेदिनीपुर काफी विकसित और संपन्न जिला माना जाता है। जिले के करीब 10 प्रखंड समुद्र व नदियों से घिरे हैं। इससे मत्स्य पालन से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है। जिले का काथी तहसील धान की खेती के साथ ही काजू व पान की पैदावार के लिए भी विख्यात है।

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राजनीतिक विशेषताएं

जिले की राजनीतिक तासीर कुछ ऐसी है कि जनता जिससे जुड़ाव बना लेती है, उससे लंबे समय तक निभाती है। करीब तीन दशकों तक जिले में वामपंथी आदोलन का प्रभाव रहा, लेकिन 2007 में नंदीग्राम में भूमि आदोलन और ग्रामीणों पर पुलिस फायरिंग की घटना को लेकर जनता माकपा से ऐसी रूठी कि फिर उसे नजदीक नहीं फटकने दिया। 2009 के लोकसभा चुनाव में तमलुक से शुभेंदु अधिकारी और काथी से शिशिर अधिकारी बतौर तृणमूल काग्रेस उम्मीदवार जीते। 2014 के चुनाव में भी इस सफलता का दोहराव हुआ। 2016 के विधानसभा चुनाव में हल्दिया माकपा तो तमलुक सीट भाकपा को मिली, लेकिन शेष 14 सीटें तृणमूल की झोली में गई। 2016 विधानसभा चुनाव से पहले शुभेंदु अधिकारी ने तमलुक संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में उनके छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी को तमलुक से कामयाबी मिली। 2018 में हुए पंचायत चुनाव में भी जिले में तृणमूल की सफलता का परचम लहराया।

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प्रतिद्वंद्विता की स्थिति

राजनीतिक संघर्ष के नजरिए से देखें तो जिले में भाजपा आज बिल्कुल उसी परिस्थिति में खड़ी है, जैसी 2007 से पहले तृणमूल की थी। तब इस जिला समेत राज्य में माकपा बेहद ताकतवर थी। प्रदेश में तृणमूल की सफलता की पटकथा नंदीग्राम से तैयार हुई थी। इसके बाद परिवर्तन का आह्वान ऐसा परवान चढ़ा कि समूचे राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया। भाजपा इस बार परिवर्तन के आह्वान के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। माकपा व काग्रेस समेत अन्य विरोधी दल भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए संघर्षरत हैं। वहीं तृणमूल को अधिकारी पिता-पुत्र के करिश्मे और अब तक किए गए विकास कार्यों पर भरोसा है।

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विकास, सुशासन, खुशहाली और शाति हमारी उपलब्धिया हैं। भाजपा का अस्तित्व केवल मीडिया में है। पाच साल तक जनता को धोखा देने वाली भाजपा के झासे में जनता कभी नहीं जाएगी यह मेरा दृढ़ विश्वास है।

-शिशिर अधिकारी, अध्यक्ष, तृणमूल काग्रेस, पूर्व मेदिनीपुर

जिला कमेटी

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विकास के तृणमूल के दावे में लेसमात्र भी सच्चाई नहीं है। कोई भी जिले का दौरा कर इसका अहसास कर सकता है। कार्यकर्ताओं के अभूतपूर्व उत्साह के बीच भाजपा चुनाव में तृणमूल को

कड़ी टक्कर देगी।

-दिलीप घोष, अध्यक्ष, प्रदेश भाजपा समिति


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