अजब 'ममता' की गजब कहानी! बेटे के लिए घातक बना मां का प्यार, मां से जुदा कर दिया जाएगा बेटा
यह कहानी बड़ी अजीब-व-गरीब है। एक मां पर मुकदमा हुआ है कि अपने बेटे पे उसकी 'ममता' बहुत है। सजा के तौर पर उस मां से उसका बेटा जुदा कर दिया जाएगा।
इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी। यह कहानी बड़ी अजीब-व-गरीब है। एक मां पर मुकदमा हुआ है। वह भी इसलिए कि अपने बेटे पे उसकी 'ममता' बहुत है। इसकी सजा के तौर पर उस मां से उसका बेटा जुदा कर दिया जाएगा। ऐसी कार्रवाई न चाहते हुए भी करने को शासन-प्रशासन मजबूर है।
यह ऐसा मुकदमा है जो किया किसी तीसरे पक्ष ने है। इस मुकदमे में हाकिम को हमदर्दी मां से भी है, बेटे से भी है, समय से भी है और समाज से भी है। इसीलिए हाकिम का हुक्म है कि बेटे को मां से जुदा कर दिया जाए। अब यह 'जुदाई' मां के लिए सजा होगी या बेटे के लिए या फिर दोनों के लिए, कहना मुश्किल है।
यह मामला यूं है कि शहर के समाजसेवी सोमनाथ चटर्जी को पता चला कि एक मां ने अपने इकलौते बेटे को अपने ही घर में कैद सा कर रखा है। वह उसे किसी से घुलने-मिलने नहीं देती। बच्चे को स्कूल, शिक्षा-दीक्षा, समाज सबसे अलग किया हुआ है। बस, अपने ही पहलू में समेटे रखे रहती है। उस बच्चे की उम्र लगभग 15 वर्ष हो चुकी है। उस पर मां की 'ममता' रूपी ऐसी 'बंदिश' लगी रही तो बच्चे की जिंदगी चौपट हो जाएगी। सो, सोमनाथ चटर्जी ने उस मां शास्वती (मामोन) भौमिक पर मुकदमा दायर कर दिया।
उन्होंने दार्जिलिंग जिला की अतिरिक्त प्रभारी, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (जलपाईगुड़ी) की मजिस्ट्रेट बेंच के समक्ष गत 20 अप्रैल को लिखित गुहार लगाई। मां की 'ममता' की 'कैद' से बेटे पृथ्वीराज भौमिक को रिहाई दिलाई जाए। उस बच्चे को उसकी जिंदगी दिखाई जाए। इस गुहार को संज्ञान में लिया गया।
अगले ही दिन, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (जलपाईगुड़ी) ने निर्देश देते हुए बाल कल्याण संस्था 'चाइल्ड लाइन' की काउंसलर सुचंद्रा मजूमदार को मेघनाथ सरणी (हाकिमपाड़ा) में उस मां-बेटे के घर भेजा। समझाने-बुझाने। मसला सुलझाने। मगर, बात बनी नहीं। काउंसलर बैरंग लौटने को मजबूर हुई। तब, 24 अप्रैल को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की मजिस्ट्रेट बेंच ने सिलीगुड़ी थाना प्रभारी को मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
चाइल्ड लाइन (दार्जिलिंग) व चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट (सिनी) को भी इस पूरी प्रक्रिया में सम्मिलित रहने को कहा गया। सिलीगुड़ी थाना प्रभारी के निर्देश पर अधीनस्थ पानी टंकी ट्रांजिट आउट पोस्ट (टीओपी) के सब-इंसपेक्टर देबब्रत खान ने जांच की व रिपोर्ट दी। वर्ष 2015 में अपने पिता प्रबीर भौमिक की मौत के बाद से नाबालिग पृथ्वीराज अपनी मां शास्वती (मामोन) भौमिक द्वारा घर में एक तरह से कैद सा रखा गया है।
उस बच्चे को कहीं जाने-आने, किसी से मिलने-जुलने की अनुमति नहीं है। अपने पति की मौत से अवसाद ग्रस्त शास्वती ने अपने बेटे पृथ्वीराज को समाज से बिलकुल अलग कर रखा है। यह बच्चे के भविष्य व जीवन के लिए हानिकारक है। अत: बच्चे के भविष्य व जीवन रक्षा हेतु आवश्यक कानूनी कार्रवाई जरूरी है। गत 29 अप्रैल को मिली इस रिपोर्ट के आधार पर सीडब्ल्यूसी की मजिस्ट्रेट बेंच ने सात मई के दिन उस मां को निर्देश जारी किया कि वह अपने बेटे के साथ 15 मई को सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत हो ताकि बच्चे के भविष्य को लेकर आवश्यक बातचीत की जा सके।
इसे लेकर निर्देशानुसार 'चाइल्ड लाईन' व 'सिनी' वालों ने भी उस मां से संपर्क की बड़ी कोशिश की मगर बात फिर नहीं बन पाई। तब, 30 मई को सीडब्ल्यूसी की मजिस्ट्रेट बेंच स्वयं उस मां के घर पहुंची। मगर, तब भी वह मां कुछ कहने-सुनने को राजी नहीं हुई।
अंतत: सीडब्ल्यूसी (दार्जिलिंग) की अतिरिक्त प्रभारी सीडब्ल्यूसी (जलपाईगुड़ी) की मजिस्ट्रेट बेंच ने बच्चे पृथ्वीराज को मां की 'ममता' की 'कैद' से 'आजाद' कराने की जरूरत महसूस की है। जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट-2015 के तहत उस बच्चे की 'आजादी' का आदेश जारी किया है। उसके तहत बुधवार छह जून को सुबह-सुबह शासन-प्रशासन, पुलिस व समाज की ज्वाइंट एक्शन टीम 'उस घर' में कार्रवाई करेगी।
मां से बच्चे को छुड़ा कर ले जाएगी। उसके बाद, नियम कहता है कि बच्चे के बालिग होने तक उसे सरकारी बाल सुधार गृह में रखा जाएगा। पर, तब तक, अकेली मां का क्या होगा? बच्चा क्या मां बिन रह पाएगा? क्या दोनों का एक-दूजे बिन गुजारा हो जाएगा? यह सब, अब, आने वाला वक्त ही बताएगा।