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भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए, चीन और पाकिस्तान खुद को पहुंचाएंगे नुकसान : पूर्व वायुसेना प्रमुख

पूर्व वायुसेना प्रमुख अरूप राहा मानते हैं कि भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि चीन और पाकिस्तान तालिबान के साथ हाथ मिलाकर खुद को ही नुकसान पहुंचाएंगे।

By Vijay KumarEdited By: Published: Mon, 23 Aug 2021 08:31 PM (IST)Updated: Mon, 23 Aug 2021 08:31 PM (IST)
भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए, चीन और पाकिस्तान खुद को पहुंचाएंगे नुकसान : पूर्व वायुसेना प्रमुख
पूर्व वायुसेना प्रमुख ने कहा-'मुझे नहीं लगता कि भारत को वहां जमीन पर उतरकर परेशानी में पड़ना चाहिए।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : पूर्व वायुसेना प्रमुख अरूप राहा मानते हैं कि भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि चीन और पाकिस्तान तालिबान के साथ हाथ मिलाकर खुद को ही नुकसान पहुंचाएंगे। गलत उद्देश्यों के कारण चीन और पाकिस्तान की तालिबान नीति उनके लिए नुकसानदायक साबित होगी।

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पूर्व वायुसेना प्रमुख ने कहा-'मुझे नहीं लगता कि भारत को वहां जमीन पर उतरकर परेशानी में पड़ना चाहिए। अफगानिस्तान में सैन्य भागीदारी खतरनाक है। भारत को अमेरिकियों या नाटो बलों के भविष्य के ऐसे किसी भी कदम का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।' अफगानिस्तान के बारे में कहावत को याद दिलाते हुए उन्होंने कहा-'यह साम्राज्यों का कब्रिस्तान है। अमेरिका ने 2001 से 2021 के बीच अफगानिस्तान में अपने 2,000 से अधिक सैनिकों को खो दिया था।'

एक जनवरी, 2014 से 31 दिसंबर, 2016 तक भारतीय वायुसेना का नेतृत्व करने वाले राहा ने कहा-'अमेरिका ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अफगानिस्तान को खाली कर दिया है। चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि रूस जैसे देशों को भी लगता है कि उनका इस क्षेत्र में अच्छा समय होगा लेकिन ऐसा होने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि तालिबान उनकी एक भी नहीं सुनने वाला है। चीन विकास के नाम पर पैसे देकर उन्हें खुश करने की कोशिश कर रहा है। चीन शिनजियांग प्रांत में तालिबान के शामिल होने और वहां अपनी जिहादी संस्कृति में घुसपैठ की आशंका से सावधान हैं।

शिनजियांग में कम्युनिस्ट देश ने कथित तौर पर उइगर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया और उनका दमन किया।'उन्होंने आगे कहा-'दो से पांच साल के भीतर चीन शिनजियांग में जिहादी आंदोलन की तपिश महसूस करेगा, जो अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा साझा करता है। चीन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। उनसे पहले से ही तिब्बत, हांगकांग और ताइवान में समस्याएं है। जहां तक तालिबान का सवाल है तो दो से पांच साल में पूरी तरह से अफरातफरी मच जाएगी।'

तालिबान नेतृत्व के उस दावे को खारिज करते हुए किवे बदल गए हैं, राहा ने कहा-'वे बर्बर हैं और वही करेंगे, जो उन्हें सिखाया गया है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे संगठनों के पाकिस्तान में सक्रिय होने और तालिबान के अफगानिस्तान में एकजुट होने की सूरत में इस्लामाबाद को कठिन चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि अफगान लोगों के पास अच्छी ताकत और हथियार हैं लेकिन वे तालिबान से वापस लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।' उन्होंने कहा-'मुझे नहीं लगता कि बाहरी लोगों को इसमें बहुत अधिक शामिल होना चाहिए। अफगानों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने दें और वे तय करें कि वे क्या करना चाहते हैं और कैसे जीना चाहते हैं।'


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