दास्तां 13 कुनबों के उजड़ने की
1991 के बंगाल विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा को भारी जनादेश मिला। दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया।
प्रकाश पांडेय, कोलकाता : 1991 के बंगाल विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा को भारी जनादेश मिला। दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। बंगाल की सियासत के जानकार बताते हैं कि वाममोर्चा की जीत के साथ ही विपक्ष का संघर्ष तेज होने लगा था। सड़कों पर जुलूस निकल रहे थे। विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे। 21 जुलाई, 1993 को तत्कालीन युवा कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के नेतृत्व विरोध रैली निकाली गई। सुबह के 11 बजे होंगे। रैली में शामिल भीड़ आगे बढ़ रही थी। भीड़ रूकने को तैयार नहीं थी। बाध्य होकर पुलिस ने फायरिग शुरू कर दी थी। मौके पर ही 13 लोगों ने दम तोड़ दिया और सैकड़ों लोग जख्मी हुए। कलकत्ता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त तुषार तालुकदार के अनुसार उन्होंने राइटर्स व राजभवन के पास पुलिस बलों को तैनात कर रखा था। धारा 144 के तहत मेयो रोड क्रासिंग से आगे निषेधाज्ञा लागू कर दी गई थी, बावजूद इसके तीन स्थानों से रैली निकली। ममता के नेतृत्व में आ रही रैली में शामिल युवा कांग्रेस कार्यकर्ता टी बोर्ड के पास उग्र हो गए थे। बाध्य होकर पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी थीं। घटना के बाद मीडिया से मुखातिब हुए तालुकदार ने दावा किया था कि वह पुलिस फायरिग से अनभिज्ञ थे। जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया कि एक जूनियर अधिकारी कैसे फायरिग का आदेश दे सकता है और पुलिस ने क्यों तय मानदंडों का उल्लंघन किया? इसपर उन्होंने बस यह कहकर चुप्पी साध ली थी कि पूछताछ होगी।
उक्त घटना के बाद कोलकाता (तब कलकत्ता) पहुंचे तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने राज्य सरकार को पूरे घटनाक्रम की न्यायिक जाच करने का आदेश दिया था लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने किसी तरह की जाच का आदेश नहीं दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने पुलिस कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा था कि राइटर्स की घेराबंदी के प्रयास को विफल करने को पुलिस ने अच्छा काम किया है। हालाकि बाद में एक कार्यकारी जाच की गई थी। राइटर्स बिल्डिंग के संयुक्त प्रभारी सीपी कंवलजीत सिंह और डीसी वाजपेयी ने घटना की जाच की। 21 साल बाद इन अधिकारियों ने जाच आयोग को बताया कि कोलकाता पुलिस मुख्यालय लालबाजार व राइटर्स बिल्डिंग से फाइलें गुम हो गई हैं। गोलीकाड में ममता भी बुरी तरह जख्मी हुई थीं। उनके प्रति लोगों की सहानुभूति बढ़ती जा रही थी। 1997 में ममता ने काग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई, जिसका नाम तृणमूल काग्रेस रखा गया। 2011 में ममता के नेतृत्व में तृणमूल ने भारी मतों से जीत दर्ज करते हुए बंगाल की सत्ता पर कब्जा कर लिया। सत्ता में आने के बाद हर साल 21 जुलाई को महानगर में तृणमूल बड़े पैमाने पर शहीद दिवस रैली का आयोजन करती है।