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Bengal Chunav: बंगाल की चुनावी रणभूमि के संकेत, पिछली गलतियों से सबक ले कांग्रेस

Bengal Assembly Elections 2021 भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल के जनमानस और यहां की संस्कृति से संबंधित तमाम चीजों पर फोकस किया है जिससे यह कहा जा सकता है कि राज्य में उसकी स्थिति मजबूत हो रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 12:29 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 12:29 PM (IST)
Bengal Chunav: बंगाल की चुनावी रणभूमि के संकेत, पिछली गलतियों से सबक ले कांग्रेस
राहुल गांधी और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की तुलना करना उचित नहीं लगता।

आदर्श तिवारी। भारत की राजनीति में शुचिता किस तरह से गौण हो रही है, इसका आकलन करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे राजनेता समय-समय पर इसकी बानगी देने से पीछे नहीं हटते। किंतु राजनीति में दंभ और अहंकार बहुतायत मात्र में कांग्रेस के नेताओं में विद्यमान है, जिसका प्रदर्शन वह करने से नहीं चूकते। आखिर इस अहंकार के पीछे की मानसिकता क्या है? क्या कांग्रेस के युवराज आज भी इस मुगालते में हैं कि वह तथा उनका परिवार ही भारत की सर्वोच्च संस्था है? दरअसल गत दिनों एक प्रेस वार्ता के दौरान राहुल गांधी ने जिस अहंकार भरे लहजे में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के बारे में यह कहा कि कौन नड्डा? यह बताता है कि कांग्रेस सत्ता से बाहर क्यों है और आज भी जनता उसे खारिज क्यों कर रही है?

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राहुल गांधी और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की तुलना करना उचित नहीं लगता, क्योंकि नड्डा संघर्ष करते हुए आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष हैं, तो वहीं राहुल गांधी की एकमात्र योग्यता उनके राजनीतिक पदों पर आसीन होने की यह है कि वह नेहरू परिवार के वारिश हैं। दरअसल राहुल गांधी की समस्या यही है कि वह कुछ जानना समझना नहीं चाहते हैं। वह चाहते हैं कि सब कुछ उनके अनुकूल हो, वे जैसा चाहें वैसा ही हो, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ हो नहीं रहा है। ऐसे में इस तरह के बयान उनकी खीझ और निराशा को ही दर्शाते हैं।

अब मुख्य बात पर आते हैं कि नड्डा कौन हैं? वर्ष 1991 में जगत प्रकाश नड्डा भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष का दायित्व संभालते हुए सड़कों पर संघर्ष और आंदोलन कर रहे थे। राजनीति में सौम्यता और समझ से परिपूर्ण जेपी नड्डा पहली बार जब विधायक बने, उसी समय पार्टी ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष जैसा बड़ा दायित्व प्रदान किया। ऐसे तमाम दायित्वों का निर्वहन करते हुए आज नड्डा यहां तक पहुंचे हैं। उनकी सौम्यता ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। आज तक उनका कोई आपत्तिजनक बयान मीडिया में नहीं आया है। दूसरी तरफ राहुल गांधी प्रधानमंत्री से लेकर संवैधानिक संस्थाओं के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते और जब भी मीडिया के सामने आते हैं, अपनी राजनीतिक समझ के कारण हास्य का कारण बनते हैं। इसलिए इन दोनों की तुलना करना बेमानी होगी।

राहुल गांधी को सबसे पहले तो अपनी राजनीतिक समझ का विकास करना चाहिए जो वर्षो से विकसित नहीं हो पा रही है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं द्वारा पिछले काफी समय से मांग किए जाने के बावजूद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव को निरंतर टाला जा रहा है। आपसी फूट से बचाव के लिए भले ही कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने को तैयार हों, लेकिन उनमें से अधिकांश उनकी क्षमता के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। राहुल गांधी जेपी नड्डा के प्रति शायद इसलिए भी अनभिज्ञता प्रकट कर रहे होंगे, क्योंकि आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में पार्टी ने जिस तरह से अपनी तैयारी शुरू कर दी है, कांग्रेस उसके आगे कहीं भी टिकती हुई नहीं दिख रही है। लेकिन चुनाव-दर-चुनाव हार के बावजूद कांग्रेस अपने अतीत से सबक नहीं लेती जिसका परिणाम सर्वविदित है।

आज जिस तरह से जेपी नड्डा के नेतृत्व में बंगाल में भाजपा पूरी तैयारी के साथ चुनाव प्रचार में जुटी है, जिस तरह से उसने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समेत वहां के महापुरुषों के जन्म दिवस पर विशेष कार्यक्रमों का संचालन किया है, अपनी नीतियों का घर-घर जाकर प्रचार-प्रसार करना शुरू किया है, शायद उससे भी कांग्रेस के नेता भयभीत नजर आ रहे हैं और यह भी एक बड़ा कारण है कि वे बिना कुछ सोचे समझे बोल रहे हैं।

[रिसर्च एसोसिएट, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली]


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