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बंगाल में एम्फन से हुए नुकसान के आकलन को जल्द आएगी केंद्रीय टीम, सेना कर रही मदद

Central team चक्रवात एम्फन के कारण बंगाल में भारी तबाही हुई है। इस तबाही का आकलन के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय जल्द ही बंगाल में एक टीम भेजेगा।

By Vijay KumarEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 07:19 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 07:19 PM (IST)
बंगाल में एम्फन से हुए नुकसान के आकलन को जल्द आएगी केंद्रीय टीम, सेना कर रही मदद
बंगाल में एम्फन से हुए नुकसान के आकलन को जल्द आएगी केंद्रीय टीम, सेना कर रही मदद

राज्य ब्यूरो कोलकाताः चक्रवात एम्फन के कारण बंगाल में भारी तबाही हुई है। इस तबाही का आकलन के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय जल्द ही बंगाल में एक टीम भेजेगा। केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को जानकारी दी गई कि चक्रवात से प्रभावित बंगाल के क्षेत्रों में समन्वय प्रयासों और बहाली के उपायों को जारी रखते हुए, राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति ने आज चौथी बार फिर से मुलाकात की। सरकार की ओर से बताया गया कि गृह मंत्रालय बंगाल में हुए नुकसान का आकलन करने के लिए एक केंद्रीय टीम भेजेगा।

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बता दें आपदा प्रबंधन में विशेषज्ञता रखने वाले एनडीआरएफ के दल चक्रवात से बुरी तरह प्रभावित हुए बंगाल में हालात पुन: सामान्य करने के अभियान में दिन-रात लगे हुए हैं। बल के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि एनडीआरएफ कर्मी राज्य में स्थिति सामान्य करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। राज्य में चक्रवात के कारण जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, कई मकान ढह गए हैं, पेड़ उखड़ गए हैं और बिजली के तार टूट गए हैं। बंगाल सरकार ने राज्य में क्षतिग्रस्त हुए आवश्यक बुनियादी ढांचों और सेवाओं को तत्काल बहाल करने के लिए सेना की मदद ली है और सेना शनिवार की शाम से जुटी है।

लॉकडाउन से संकट में टोटो जनजाति, सरकार से मदद की आस

कोलकाताः देश की 130 करोड़ से अधिक आबादी में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 1,600 की है। 32 लाख वर्ग किलोमीटर की जमीन के विशाल दायरे में वे केवल आठ वर्ग किलोमीटर के सीमित दायरे में रहते हैं। यह कहानी संकटग्रस्त आदिम जनजाति-टोटो और इसके इलाके टोटोपाड़ा की है। यह इलाका बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में भूटान सीमा के करीब है। प्रकृति की गोद में बसे टोटोपाड़ा तक पहुंचने के लिए करीब आधी दर्जन छोटी नदियों को पार करना होता है। इनमें एक नदी टोरसा भी है। दुनिया में सबसे कम आबादी वाली जनजातियों में से एक है। टोटोपाड़ा की टोटो जनजाति अपनी अनोखी भौगोलिक स्थिति के कारण लॉकडाउन की मार झेल रहा है। टोटो बंगाल के तीन विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों में से एक है। यह सभी सिर्फ एक ही जगह टोटोपाड़ा में रहते हैं।

भूटान की सीमा से सटे एक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित टोटोपाड़ा मदारीहाट से 16 किमी दूर है। इनके बीच में छह पहाड़ी नदियां हैं जो केवल मानसून में बहती हैं। भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में भूटान के हिमालयी राज्य में कई गरीब टोटो दिहाड़ी पर काम करते हैं। पंचायत प्रधान सुग्रीब टोटो का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण टोटोपाड़ा के प्रवासी मजदूर काम के लिए भूटान जाने में असमर्थ हैं और जो लोग लॉकडाउन से पहले भूटान गए थे वह वहां फंसे हुए हैं। उन्होंने कहा कि टोटोपाड़ा के निवासी पीडीएस में मिले चावल और आटे पर गुजारा कर रहे हैं। लॉकडाउन के कारण अन्य आवश्यक वस्तुएं गांव में नहीं मिल पा रही हैं। 

गांव के किसान सुपारी और अदरक जैसी नकदी फसलों पर निर्भर हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण वह मदारीहाट के थोक व्यापारियों को ये फसलें नहीं बेच पा रहे हैं। सुग्रीव टोटो ने कहा कि गांव को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मानसून के अलावा अन्य मौसम में टोटोपाड़ा के निवासी पानी लाने भूटान जाते हैं। कोरोना के खतरे के चलते अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी गई है। 

उन्होंने कहा कि गांव में लगाए गए चार हैंड-पंप में से दो काम नहीं करते हैं और लॉकडाउन के कारण इन्हें ठीक कराने का काम भी ठप हो गया है। एक अन्य निवासी रीता टोटो ने कहा कि टोटो लोगों को डॉक्टरी सुविधाओं के लिए भी कई मुश्किले उठानी पड़ा रही हैं क्योंकि गांव के इकलौते पीएचसी की हालत खराब है। लॉकडाउन के कारण स्थानीय लोग बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए मदारीहाट नहीं जा पा रहे हैं।


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