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Artificial Heart के सहारे देश में जिंदा हैं 120 लोग, संतोष दूगड़ भी हैं इनमें से एक

artificial heart संतोष दूगड़ उन गिने-चुने भारतीयों में शामिल हैं जिन्‍हें आर्टिफिशियल हार्ट लगा है और जो एक दशक से ज्‍यादा बीत जाने के बाद भी जिंदा हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 11 Sep 2019 09:44 AM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 03:36 PM (IST)
Artificial Heart  के सहारे देश में जिंदा हैं 120 लोग, संतोष दूगड़ भी हैं इनमें से एक
Artificial Heart के सहारे देश में जिंदा हैं 120 लोग, संतोष दूगड़ भी हैं इनमें से एक

कोलकाता, जागरण संवाददाता। artificial heart कोलकाता महानगर के संतोष दूगड़ (63) पिछले एक दशक से मशीनी दिल के साथ जी रहे हैं। वे कृत्रिम हृदय के साथ इतने लंबे समय तक जीवित रहने वाले गिने-चुने भारतीयों में शामिल हैं। संतोष के शरीर में वर्ष 2009 में कृत्रिम हृदय का प्रत्यारोपण किया गया था। संतोष को वर्ष 2000 में पता चला था कि उन्हें हृदय रोग है जो अपने आखिरी चरण में पहुंच चुका है।

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'लेफ्ट वेंट्रीक्युलर असिस्ट डिवाइस

इसके बाद पड़े हार्ट अटैक के बाद संतोष ने डॉक्टरों की सलाह पर 'लेफ्ट वेंट्रीक्युलर असिस्ट डिवाइस' लगाया। इससे पहले उन्होंने स्टेम सेल थेरपी का सहारा लिया था लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। संतोष (63) इस समय देश के उन 120 मरीजों में से एक हैं जो इस डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह मशीन दिल की तरह ही काम करती है और उन मरीजों को लगाई जाती है जिन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है।

हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी

संतोष ने बताया कि वैसे तो सबसे अच्छा विकल्प हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी थी, लेकिन उन दिनो में ट्रांसप्लांट बहुत दुर्लभ था। इसके अलावा यह भी तय नहीं था कि मुझे हार्ट डोनर कब मिलेगा। संतोष को पहली बार 2000 में हार्ट अटैक आया था। उन्होंने एंजियोप्लास्टी करवाई, जो कुछ दिनों कारगर रही। लेकिन उसके बाद उनका हृदय ठीक से खून की पंपिंग नहीं कर पा रहा था। इलाज के लिए वह एम्स गए जहां स्टेम सेल थेरपी हुई पर वह भी ज्यादा दिन नहीं चली। फिर उन्हें हृदय रोग विशेषज्ञ पीके हाजरा ने कृत्रिम दिल लगवाने की सलाह दी।

असली दिल की तरह खून को पंप करता है 'हार्ट मेट 2'

इस मशीनी दिल का नाम 'हार्ट मेट 2' है, जो कमजोर दिल में खून पंप करने की क्रिया को संपन्न करता है। इसे मरीज के दिल के बगल में इंप्लांट किया जाता है। डॉ. हाजरा बताते हैं कि नाभी से एक पावर केबल बाहर आता है, जो एक बैग में रखे कंट्रोलर और बैट्री से जुड़ा रहता है। मरीज को समय-समय पर इसे चार्ज करते रहना पड़ता है। जब संतोष को यह मशीनी दिल अमेरिका से मंगवाकर लगाया गया था, उस समय इसकी कीमत लगभग 1 करोड़ रुपये थी। अब इसका नया वर्जन लगभग 54 लाख के आसपास है।

बैग लेकर चलना जरूरी है

डॉ. हाजरा ने बताया-'इस मशीन की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसके साथ एक बैग लेकर चलना पड़ता है। इसके अलावा चूंकि यह मशीन टाइटेनियम की बनी है इसलिए मरीज कभी एमआरआई नहीं करा सकता लेकिन ट्रांसप्लांट किए हुए दिल की तरह इसमें दवाएं नहीं खाते रहनी पड़ती। बहरहाल, संतोष इस मशीन को धन्यवाद देते हैं, जिसकी बदौलत वह सामान्य जीवन जी रहे हैं।


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