सव्यसाची के विस क्षेत्र में तापस को मिली 'दीदी के बोलो' कार्यक्रम की कमान
तृणमूल से भाजपा नेता बने शोभन चटर्जी की तारीफ कर दिल्ली रवाना होने वाले विधाननगर के पूर्व मेयर और राजारहाट-न्यूटाउन के विधायक सव्यसाची दत्त से नाराज पार्टी ने दूरियां और बढ़ा ली है।
जागरण संवाददाता, कोलकाता : तृणमूल से भाजपा नेता बने शोभन चटर्जी की तारीफ कर दिल्ली रवाना होने वाले विधाननगर के पूर्व मेयर और राजारहाट-न्यूटाउन के विधायक सव्यसाची दत्त से नाराज पार्टी ने दूरियां और बढ़ा ली है। यही कारण है कि तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के निर्देश पर सव्यसाची के घोर विरोधी विधाननगर के डिप्टी मेयर तापस चटर्जी को राजारहाट-न्यूटाउन विधानसभा केंद्र में 'दीदी के बोलो' सूची के तहत जन संपर्क स्थापित करने की कमान सौंप दी गई।
नई जिम्मेदारी मिलने के बाद तापस चटर्जी ने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सव्यसाची के विधानसभा क्षेत्र में उन्हें 'दीदी के बोलो' कार्यक्रम को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। उन्होंने काम शुरु भी कर दिया और शनिवार को राजारहाट-विष्णुपुर एक नंबर ग्राम पंचायत अंतर्गत भटिंडा इलाके में एक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। तापस की मानें तो पार्टी की ओर से महत्वपूर्ण पांच लोगों की एक सूची भी सौंपी गई है, जिनके घर जाना है। वहां जाएंगे भी और इलाके के लोगों के बीच 'दीदी के बोलो' सूत्रों के तरह कार्ड भी आवंटित करेंगे, जिसमें किसी तरह की समस्या होने पर सीधे ममता बनर्जी से संपर्क करने का नंबर लिखा हुआ है। हालांकि इस बाबत पूछे जाने पर सव्यसाची ने कहा कि पार्टी के कोई वरिष्ठ नेता संवाददाता सम्मेलन कर उन्हें लेकर कोई बात कहते तो, वे विचार करते। पर नई जिम्मेदारी मिलने की जानकारी तापस दे रहे हैं, जिसकी वे परवाह नहीं करते हैं।
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सव्यसाची के करीबियों पर भी तृणमूल को विश्वास नहीं
सव्यसाची दत्त और तृणमूल के बीच बढ़ती दूरियों के चलते पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी को अब उनके (सव्यसाची) के करीबीयों पर भी भरोसा नहीं रह गया है। यही कारण है कि विधायक सव्यसाची दत्त की गैर मौजूदगी में राजारहाट तृणमूल के ब्लॉक अध्यक्ष प्रवीर कर द्वारा पहले ही 'दीदी के बोलो' कार्यक्रम शुरू करने के बावजूद तापस चटर्जी को नए सिरे से 'दीदी के बोलो' कार्यक्रम के प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गई है। राजनीतिक जानकारी की मानें तो प्रवीर पूर्व मेयर सव्यसाची के काफी करीबी बताए जा रहे हैं। तृणमूल को भय है कि अगर सव्यसाची भाजपा में शामिल हो गए, तो उनके पीछे-पीछे उनकी करीबी भी पार्टी छोड़ देंगे। ऐसे में उनका विकल्प खड़ा करना जरुरी हो गया है।