हाई कोर्ट ने खुद पर लगाया एक लाख का जुर्माना, रेलवे जज को 12 साल बाद मिला इंसाफ Kolkata News
High Court fined. हाई कोर्ट ने अपने गलत फैसले को स्वीकार करते हुए खुद पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
जागरण संवाददाता, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपनी कोर्ट के एकलपीठ के फैसले को पलटते हुए एक रेलवे जज की सेवाएं बहाल करने का फैसला दिया है। साथ ही, हाई कोर्ट ने अपने गलत फैसले को स्वीकार करते हुए खुद पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने यह फैसला पिछले सप्ताह दिया है। अदालत ने कहा कि पिछले 12 साल के दौरान उनकी कुल सेलरी का 75 फीसद राज्य उन्हें तत्काल भुगतान करे। बता दें कि अनुशासनहीनता के आरोप में रेलवे जज मिंटू मलिक को दिसंबर 2007 में निलंबित कर दिया गया था और 2013 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी।
कोर्ट ने कहा, जज के साथ हुआ विश्वासघात : हाई कोर्ट ने मलिक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को खारिज करते हुए जुलाई 2014 में सिंगल बेंच के आदेश को पलट दिया। एकलपीठ ने फैसले में कहा था कि रेलवे जज मलिक के पास ट्रेन में देरी की जांच और ड्राइवर के केबिन में घुसने का अधिकार नहीं है। फैसले को पलटते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस फैसले से याचिकाकर्ता को झटका लगने के साथ ही उनके साथ विश्वासघात भी हुआ था। खंडपीठ के जजों ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उदंड रेलवे कर्मचारियों से बेइच्जती झेलने वाले जज की रक्षा करने की जगह उसे किसी गलत काम को रोकने की कोशिश करने के लिए कष्ट झेलना पड़ा।
जानें, क्या है मामला
रेलवे जज मिंटू मलिक 5 मई, 2007 को अपने कार्यस्थल पर जाने के लिए लेक गार्डंस से सियालदह जा रही ट्रेन पर बैठे। ट्रेन में यात्रा के दौरान उन्हें अपने सहयात्रियों से पता चला कि न्यू अलीपुर के पास अवैध सामान लोड करने की वजह से ट्रेन हमेशा लेट हो जाती है। मलिक को लगा कि उन्हें इस मामले की जांच का अधिकार है और वह पूछताछ के लिए ड्राइवर के केबिन में घुस गए। ट्रेन ड्राइवर के जवाब से असंतुष्ट जज मलिक ने ड्राइवर और गार्ड को सियालदह स्टेशन पर उनके कोर्टरूम में रिपोर्ट करने को कहा। उनकी अनिच्छा को भांपते हुए मलिक ने रेलवे पुलिस से दोनों की कोर्टरूम में पेशी को सुनिश्चित करने को कहा।
रेलवे कर्मचारियों ने बना लिया था बंधक
मलिक के इस एक्शन से रेलवे कर्मचारी (ज्यादातर मोटरमेन और ड्राइवर) उनके चैंबर के बाहर इकट्ठा होकर प्रदर्शन करने लगे। इस दौरान जज के चैंबर में तोड़फोड़ करते हुए उन्हें कई घंटे के लिए बंधक बना लिया गया। मामले कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपनी तरफ से इस मामले में एक रिपोर्ट के आधार पर मलिक को निलंबित करते हुए उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी। हाई कोर्ट की ऐडमिनिस्ट्रेटिव कमिटी ने जांच रिपोर्ट में मलिक को दोषी ठहराया। बाद में मलिक ने एक जनहित याचिका दाखिल की, लेकिन सिंगल बेंच ने इसे भी नामंजूर कर दिया। मलिक ने इस मामले में खुद पैरवी करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ में अपील की। मलिक ने कहा कि कोर्ट ने उनके दावों की अनदेखी की है। यही नहीं उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की पुष्टि के बारे में अनुशासनात्मक अथॉरिटी ने कोई वजह नहीं बताई।